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मधेश के लोग कहीं यह न कहने लगे कि साथियों ! मधेश का नाम ही मत लेना : कैलाश महतो

कैलाश महतो, परासी | हिन्दी शब्दकोष के अनुसार हिजड़ा एक वह व्यक्ति होता है,
“ऐसा व्यक्ति जिसमें शारीरिक दृष्टि से स्त्री–पुरुष दोनों के कुछ कुछ गुण, चिह्न, लक्षण एक जैसे हों, ऐसा व्यक्ति न पूर्णतः पुरुष होता है न स्त्री । संभोग अथवा मैथुन करने की क्षमता से रहित व्यक्ति, नपुंसक, क्लीव ।”
२०७४ कार्तिक १६ गते विहीबार का दिन । मधेश के जीवन में श्राप श्रींखला के घृणित दिन । गुलामों की दुनियाँ में हिजडो की मर्दानगी की दिन ।
वि.सं. १८२३ और १८२५ के अवधि में कीर्तिपुर और कान्तिपुर के लोग दहशत में जी रहे थे । लोग कहते थे कि अपने राज्य रक्षा की बात मत करना, वरना पृथ्वीनारायण शाह आ जायेगा और नाक, कान तथा ओठ काट डालेगा । कौन कहता है कि जंग बहादुर संसार से विदा ले चुका है ? वह आज भी है । उसने तो और अपनी संख्या बढा ली हैें अनेक बदले हुए चेहरों में । हिन्दी फिल्म शोले के खलनायक किरदार अमजद खान ने कहा है कि लोग उसके नाम से काँपते हैं, और इसिलिए रोने व झगडने बाले बच्चों की माँयें उनसे कहा करती है कि चुप हो जा बेटे, नहीं तो गब्बर आ जायेगा । नेपाल के राजनीति में वि.सं.१९०३ के बाद राजदरबार तथा भाइभारदारों के बीच भी यह चर्चा रहा कि चुपचाप राणाओं के अन्दर राजनीति करो, वरना जंग बहादुर आ जायेगा । अब मधेश के लोग कहीं यह न कहने लगे कि साथियों !, मधेश का नाम ही मत लेना । वरना मधेशी नेता आ जायेगा, आन्दोलन करबा डालेगा, नेपाल से सम्झौते करेंगे, भोट मागैगे, सरकार बनायेंगे और मुद्दा ही बेच डालेंगे । मधेश अधिकार का नारा दे देगा । तुम्हें उसके नारे लगाने रोडपर जाना होगा, स्कूल बन्द करने होंगे, बाजार बन्द करना होगा और टायर बालने होंगे । पुलिस से भिडना होगा और उसके गोलियों का शिकार होना होगा । मधेश मधेश मत बोलो । बोलना ही हो तो नेपाल बोलो, काँग्रेस और एमाले बोलो । माओवादी और राप्रपा बोलो । मधेश नहीं, हिमाल, पहाड और तराई बोलो ।

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हिजडा शब्द सुनने में भले ही आम लोगों को थोडा अटपटा लगते हों, पर यह शब्द एक ऐसे मानव का चित्र प्रस्तुत करता है, जो किसी एक तरफ के पक्ष में नहीं होते । वह पूर्ण मानव होता है । वह न पूर्ण पुरुष होता है न पूर्ण स्त्री होती है । न वह पुरुष के रुप में घमण्ड करता है, न स्त्री के रुप में शर्म महशुश करती है । वह वेदाग और विन्दास होता है । उसका न किसी से दुश्मनी, न किसी से वैर होता है । उसका सबके साथ दोस्ती होती है । वह सबके लिए जीता है । हाँ, प्रकृति ने उसके साथ एक अन्याय यह जरुर की है कि वह किसी भी रुप में प्राकृतिक रुप में किसी को जन्म नहीं दे सकते । यही कारण है कि लोग उसे हिजडा, किन्नर आदि नाम से जानते हैं । मगर वह किसी का कोई बिगार नहीं करता । वही उसकी महानता होती है ।

जिसे दुनियाँ हिजडा कहती है, वह तो प्रकृति के गल्ती या छल के कारण नपुंसक बन जाता है । मगर मधेश का कल्याण करने का मर्दानगी दिखाने बाले नेता तो अपने आप में नपुंसक, निरीह और क्लीव हो गये हैं । वे तो उन समाजसेवी और लोक की कल्याण चाहने बाले प्राकृतिक हिजडों के ठीक उल्टा समाज को धोखा देने में अपने को मर्द समझ रहे हैं । न जाने ये नपुंसक मधेशी नेता और कितने इमानदार और नेक मधेशी नेतृत्वों को भी अपने रंङ्ग में रंङ्गने बाले हैं !

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मधेश में जो राजनीति हो रही है, वह हिजडों की प्रतिरुप की है । हिजडों के साथ में रहकर बाजा बजाने बाले जो मर्द होता है, वो शायद बेहाया कहलाते हंै । उसका कोई प्रतिष्ठा नहीं होता, उसका सिर्फ काम होता है डोल बजाना । वो हिजडों का सहायक होता है । वह हिजडों के अनुसार जीता है । उसका जीवन सिर्फ पैसा होता है । उसका एक ही उद्देश्य होता है हिजडों के कला और मेहनत से कमाये रुपयों और सम्पतियों पर हाथ फेरना । उसके लिए वह हिजडों का भी हिजडा बन जाता है । दिखने में वह पूर्ण पुरुष होता है, पर वह हिजडों के भी दलाली करता है । खास में वह हिजडों को भी धोखा देने में ही दावपेंच लगाता रहता है । हिजडे तो अपने कमाईयों से गरीब तथा असहायों की सेवा करते हैं । वे कर्म करते हैं । मगर उनके साथ रहकर ढोल, झाल तथा तासा पिटने बाले मर्द के रुप में दिखने बाले पुरुष सिर्फ और सिर्फ चोर दृष्टि से ही उनके कमाइयों को देखता है और बेचारे किन्नरों को ठगने में मशगुल रहता है ।

मधेश के कुछ हिजडे लोग मधेश के नामपर राजनीति कर मधेशियों को दिन प्रति दिन गुलाम बनाने की अवस्था तैयार करने में ही अपनी मर्दानगी समझ रहे हैं । मधेशी जनता जिस तरह नेपाली पार्टियों के झण्डे अपने कँधोंपर लादकर गर्व के साथ रोडबाजी कर रही है, इससे यह प्रमाणित होता है कि मधेश गुलामी की हद पार कर रही है । मधेश की जो दुनियाँ है, वह गुलामों की है, और उन गुलामों की दुनियाँ में हिजडों की मर्दानगी आसमाँ को छू रही है । हिजडों के साथ रहने बाले बेहायाओं से भी निम्न स्तर पर मधेशी नेताओं ने अपने को गिरा ली है । दूसरों के द्वारा बनाये हुए घरों में घुसने, दूसरे की जूठा चाटने और थुके हुए थुकों को चाटने समेत को अपनी मर्दानगी समझने बाले मधेशी नेताओं से मधेश को सचेत होना अपरिहार्य होता जा रहा है ।

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एक गृहिणी मधेशी महिला को माने तो मधेश आजादी की मुद्दा संघीयता के नामपर हुए मधेश आन्दोलन के समापन के साथ ही कमजोर हो गया । उन महिला का सवाल है कि मधेशी जनता किस नेता पर विश्वास करें ? मधेशी नेता को जिताकर भी कोई काम नेपाली शासक और प्रशासक के मर्जी बगैर नहीं हो सकता तो नेपाली पार्टियों के साथ ही रहकर डाइरेक्ट नेपाली नेता तथा उसके प्रशासकों से ही अपान काम क्यूँ न करायें ? संघीयता के मुद्दे मधेशी नेताओं को बिकाउ बना सकता है तो आजादी का नारा आजादी चाहने बालों का बिकने का रास्ता क्यों नहीं बना सकता जैसे सवालों से घिरा मधेश गुलामी को ही अपना भाग्य मानने को विवश है ।

उस महिला का विश्लेषण और सवाल पूणतः गलत न होते हुए भी मधेश इस बात से वाकिफ है कि मधेश में होने जा रहे प्रदेशिय तथा संसदीय निर्वाचनों के बाद जो अवस्थायें निर्माण होने बाले हैं, वह केवल और केवल स्वतन्त्र मधेश के लिए ही होंगे । लोगों का यह भी मानना है कि शायद ही मधेश में अब नेपाली निर्वाचन आयोग का कोई निर्वाचन हो । आने बाले पाँच वर्षों में मधेश में नेपाली शासन का अन्त्य और मधेश देश का पूनस्र्थपना अब निश्चित है ।

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