संविधान को बाइबल,कुरान,गीता बनाइएगा तो सब कुछ नाश हो जाएगा : राजेन्द्र महतो
पुरानी सोच त्याग करें, नया नेपाल का निर्माण अवश्य होगा
नश्लीय चिन्तन को हटाते हैं तो नेपाल बन जाएगा । नेपाली सोच ओर चिन्तन बनावें, नश्लीय सोच और चिन्तन से नेपाल नहीं बनेगा । इसके लिए संविधान में जो खामी है, उसको ठीक कर दीजिए । बस ! हम यही चाहते हैं ।
जितना हुम्ला और जुम्ला में रहनेवाले नेपाली को इस देश से प्यार है और मधेश में रहनेवाले लोग को भी उतना ही प्यार है अपने देश के प्रति, अपनी मातृभूमि के प्रति

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प्रस्तुतिः लिलानाथ गौतम,हिमालिनी पत्रिका ,मार्च अंक |

आज हम गणतन्त्र नेपाल के प्रथम संघीय संसद में हैं । इस संसद में निर्वाचित सभी सांसद तथा मान्यवर को राष्ट्रीय जनता पार्टी (राजपा) नेपाल और मेरी ओर से बधाई तथा शुभकामना देता हूं ।
आज का यह ऐतिहासिक क्षण बहुत ही महत्वपूर्ण क्षण है । यह भावुकता से भरा हुआ क्षण है । क्योंकि इस क्षण के लिए वर्षों से नेपाली जनता ने संघर्ष किया है । हमारे इस क्षण के लिए अपनी जान की आहुति देनेवाले ज्ञात–अज्ञात सभी वीर शहीदों के प्रति मैं हार्दिक श्रद्धासुमन व्यक्त करता हूं । आज का दिन मैं वीर शहीदों को समर्पित करता हूँ । विगत में लड़नेवाले शहीद दुर्गानन्द झा से लेकर शहीद रघुनाथ ठाकुर तक, आदरणीय रामराजा सिंह से लेकर श्रद्धेय गजेन्द्र नारायण सिंह तक को मैं स्मरण करता हूं । हमलोगों को यहां तक पहुँचाने में लाखों नेपाली जनता का योगदान रहा है । इसीलिए आज के दिन उन सभी योद्धाओं को, सभी वीर सपूतों को हम लोग स्मरण करना चाहते हैं ।
आज सबसे बड़ी खुशी की बात है कि, संघीयता देश में लागु हो चुका है । आज हम जिस रोष्टम से बोल रहे हैं, कभी इसी जगह से जब हम गणतन्त्र की बात करते थे तो हमारे ऊपर राष्ट्रद्रोह का आरोप लग जाता था । जब हम संघीयता की बात करते थे तो देश विखण्डन की बात होती थी और हम पर विखण्डनवादी का आरोप लग जाता था । हम समावेशी की बात करते थे तो साम्प्रदायिकता का आरोप लग जाता था । लेकिन आज खुशी की बात है, वही गणतन्त्र, वही संघीयता के वटवृक्ष के नीचे हम सब यहां बैठे हैं । और सुनहरे नेपाल की परिकल्पना कर रहे हैं । इसी गणतन्त्र और संघीयता के अन्दर, इसी समावेशी शासन के अन्दर सम्पूर्ण नेपालियों का कायाकल्प होगा, इसलिए आज का दिन हमारे लिए विशेष है और बहुत ही भावकुता से भरा हुआ है ।
अब नया इतिहास रचना है । नया इतिहास कैसे रचेंगे इसके लिए बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी, बहुत ही सतर्कता की आवश्यकता है । नया इतिहास रचना सहज नहीं है इसके लिए पुरानी सोच को त्यागना होगा, पुरानी मानसिकता का त्याग करना होगा । उसके लिए यह देश हम सब का देश है, इस भाव को समझना पडेÞगा । एक दूसरे की भावना समझनी होगी । एक दूसरे का मान और सम्मान करना पड़ेगा । हिमाल हो या पहाड़ हो, तराई हो या मधेश हो, सब को अपना समझना पडेÞगा । मधेशी, दलित, जनजाति, मुस्लिम, थारु हो, जो–कोई भी हो, सब को अपना समझना पड़ेगा । जब हम नयी सोच के साथ सम्पूर्ण देशवासी को अपना समझेंगे, उनकी पीड़ा को अपनी पीड़ा समझेंगे, तभी नया नेपाल का निर्माण होगा ।
प्रधानमन्त्री जी, यहां बैठे है, आपको बधाई देते हैं हम । नया जनमत आपको मिला है । देश का नेतृत्व आप सम्हाल रहे हैं । प्रचण्डजी को भी बधाई है । क्योंकि आप भी इस सत्ता के एक सहयात्री हैं । इसीलिए आप दोनों को नयी रचना करना है, उसके लिए विशेष रूप में बधाई है । इस जिम्मेवारी को आप आगे बढाएंगे, यह हम लोग उम्मीद करते हैं ।
मैं एक निवेदन करना चाहता हूं प्रधानमन्त्री जी ! जनता ने आप को अत्यधिक समर्थन दिया । वाम गठबंधन के नाम में बड़ी पार्टी बना दिया । अब आप दिल भी बड़ा बनाइए, यह निवेदन है । दिल बड़ा बनाकर सम्पूर्ण देश को उस दिल में समेटिए । और बनाइए, नेपाल को । आप दोनों नेता से यही विनम्र आग्रह है । जब यह होगा, तब इस देश में सामाजिक सद्भाव कायम रहेगा, इसके लिए हम कामना करें ।
आप ने कहा कि अब कितना लड़ाई–झगड़ा करेंगे ? अब हमे प्रगति करनी है । लड़ाइ–झगड़ा का दौर समाप्त हो गया । हां, मैं भी कहता हूं कि लड़ाई–झगडा समाप्त करेंगे तो समाप्त हो जाएगा । याद रखिए, करेंगे तब हो जाएगा, खुद नहीं होने वाला है । आपने संविधान निर्माण कर दिया, निर्वाचन हो गया । अब सब कुछ समाप्त हो गया, यदि यह मानकर चलेंगे तो लड़ाइ–झगड़े नए ढंग से शुरु हो जाएँगे । फिर नया द्वन्द्व शुरु हो जाएगा, क्योंकि कार्पेट के नीचे गन्दगी छुपा कर कमरा साफ नहीं होता है ।
हां, उस युग में हमें प्रवेश करना है, इस लड़ाइ–झगड़ा के युग से हमें देश को बाहर निकालना है । लेकिन यह कैसे निकलेगा ? थोड़ा गौर कीजिए, जब देश में प्रगति होगी, तब निकलेगा । कर्णाली से लेकर कञ्चनपुर तक की जनता को भूखमरी से मरना न पड़े, तब देश की प्रगति मानी जाएगी । दुर्गम पहाड़ी एरिया में सिटामोल अभाव के कारण नागरिकों की मृत्यु होती है तो इस को विकास नहीं माना जाएगा ।
विकास हमारी आवश्यकता है । जिसके लिए प्रकृति ने सारा पूर्वाधार दिया है नेपाल को । जलस्रोत, पर्यटन, कृषि, जड़ीबुटी आदि पूर्वाधार नेपाल में है । नेपाली जनता को वरदान के रूप में यह सब प्राप्त हुआ है । लेकिन उसका दोहन नहीं हो रहा है । आपने कहा कि यह करना है । हां, मैं भी कहता हूं करना ही है । लेकिन इसके साथ–साथ, किसी प्रकार का द्वन्द्व देश में न रहे, यह भी सोचना चाहिए । अगर किसी प्रकार का द्वन्द्व है तो उसको समाप्त करने की आवश्यकता है । इसके लिए ऐसा काम हमे नहीं करना चाहिए कि हम कुछ भी बोलते हैं तो दूसरे को ठेस पहुँचता हो । कुछ भी बोल दे तो दूसरे को पीड़ा पहुँचती है । हम कुछ भी गलत निर्णय करे तो दूसरे को ठेस पहुँचती है । हम ऐसी अभिव्यक्ति न दे, जिससे किसी नेपाली को ठेस पहुँचे । इसके लिए सभी की भावना को समझने की आवश्यकता होगी ।
यह विविधता से भरा देश है । परसो यहां जब शपथ ग्रहण हो रहा था । उस वक्त हमने देखा कि कैसा रंग–विरंगा सुन्दर नेपाल है । विविध संस्कृति से भरा हुआ देश है हमारा । अरे ! यही तो स्वीकार करना है हमें । यह देश किसी एक भाषाभाषी का देश नहीं है, किसी एक धर्म–समुदाय और जात–जाति का देश नहीं है । यह हम सब का देश है । यही तो समझना है, इसी सत्य को स्वीकार करना है । अगर इस को स्वीकार किया जाता है तो सभी समस्या का हल हो सकता है ।
किसी के पहचान के ऊपर ठेस पहुँचे, ऐसा काम भी हमें नहीं करना चाहिए । हम नेपाली हैं, नेपाली के साथ–साथ हम मधेशी भी हैं । हमे गर्व है मधेशी होने पर । लेकिन हम को ‘मधेशी’ कह कर ठेस पहुँचाया जाता है तो हमें पीडा होती है । इस बात को खयाल रखना चाहिए । धोती हमारी संस्कृति है, हमें गर्व है । अगर इसको लेकर ठेस पहुंचाने का काम होता है तो पीड़ा होती है । इसीलिए इन सम्वेदनशील बातों को हमें समझने की जरुरत है ।
हम सभी को उतना ही प्यार है अपने देश के प्रति, जितना हुम्ला और जुम्ला में रहनेवाले नेपाली को इस देश से प्यार है और मधेश में रहनेवाले लोग को भी उतना ही प्यार है अपने देश के प्रति, अपनी मातृभूमि के प्रति । हम सभी नेपाली हैं, हम सभी राष्ट्रवादी हैं । लेकिन राष्ट्रवाद की परिभाषा अपने में सीमित कर देना गलत बात है । यहां तो यह भी देखा जाता है । कोई कहता है हम सच्चे राष्ट्रवादी, और वह समझता है, दूसरे सब अराष्ट्रीय तत्व । ऐसा नहीं हो सकता । इस पीड़ा को, इस भावना को समझने की आवश्यकता है ।
जब गोरखा और सिन्धुपालञ्चोक में भूकंप आता है, तब पीड़ा हमारे दिल में भी होती है । लेकिन हम यह भी चाहते हैं– सर्लाही और सिरहा में जब आगलगी होती है तो, काठमांडू को भी पीड़ा होनी चाहिए । बस हमारी चाहत इतनी ही है । हम चाहते हैं कि एक दूसरे के दुख में, सुख में दिल खोलकर साथ रहें और साथ दें । एक दूसरे की पीड़ा को समझने का हम प्रयास करें । तब समस्या का सही समाधान निकलता है ।
काठमांडू में कुकुर पूजा होती है, उसका हम सम्मान करते हैं । हम चाहते है– हमारे मधेश में ईद, बकर ईद, दीवाली, छठ पर्व होता है, उसको भी उतना ही सम्मान मिले । बस ! मधेश के लोगों में जो भावना है, वह काठमांडू समझे, सिंहदरबार समझे, यही तो हम चाहते हैं । हमारा कहना इतना ही है, समस्या का समाधान भी यही है ।
आप ने ठीक कहा प्रचण्डजी ! अब विवाद बढ़ाने का समय नहीं है । मैं यह बात समझता हूं ।
प्रधानमन्त्रीजी ! आप को भी कहता हूं– अब विवाद बढ़ाने का समय नहीं है और इसको समाप्त किया जाए । नया युग में नेपाल प्रवेश कर रहा है, इस अवस्था में विवाद बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है । विवाद बढ़ना भी नहीं चाहिए । मैंने पहले ही कहा– इसके लिए एक–दूसरे की भावना को समझने का प्रयास हो । हम एक दूसरे की भाषा, संस्कृति, भेष–भूषा, उनके अधिकार, सम्मान, पहचान को समझे । उसके बाद विवाद कहाँ रहेगा ? इसीलिए विवाद बढ़ाने का समय नहीं है, विवाद को समाप्त करने का समय है । आज ही संकल्प लें– हम ऐसी भाषा का प्रयोग न करे, जो दूसरे को ठेस लग जाए, हम ऐसा कोई भी निर्णय न करे ताकि कोई समझे कि हमारा अधिकार समाप्त हो रहा है और हमारे अधिकार में कटौती हो गयी है, हमारे विरोध में कानून बन गया, हमारे विरोध में संविधान बन गया । जनता न समझें कि मिला हुआ अधिकार भी छीन लिया गया है, हमारे साथ धोखाधड़ी हो रही है । इस तरह की अनुभूति किसी को न हो । ऐसा संकल्प आज लेना चाहिए ।
अगर ऐसा होता है तो, सड़क आन्दोलन और विद्रोह की आवश्यकता नहीं होगी । समस्या का समाधान होगा तो संघर्ष और आन्दोलन किस बात को लेकर होगा ? क्यों होगा आन्दोलन ? समस्या रहेगी, तो आन्दोलन तो होगा । ‘मरता क्या नहीं करता’ की अवस्था में जब जनता पहुँचती है तभी वो उतरती है– सड़क पर । जब अत्याचार परकाष्ठा पर पहुँचता है तो नाका पर जाकर बैठने का अप्रिय निर्णय लेना पड़ता है । ऐसा नौबत अब न आए, इसके लिए हमे बिल्कुल सजग रहना चाहिए और इस विवाद को समाप्त करना चाहिए ।
अब समृद्ध नेपाल बनाना है, आप सब ने कहा । हां, समृद्ध नेपाल हमारा सपना है । नेपाल को समृद्ध तो बनाना ही पडेÞगा । नेपाली जनता को गरीबी से, अभाव से मुक्ति तो दिलाना ही पड़ेगा । लाखों–लाख हमारे युवा विदेश में रोजगार के लिए कब तक जाते रहेंगे ? हम लोग ऐसा वातावरण तैयार करें, ताकि हमारी युवा पीढ़ी को दरदर भटकना न पड़े । यह सब करने के लिए फिर मैं एक बार कहता हूं और बार–बार कहता हूं– नश्लीय चिन्तन और सोच को हटाना पड़ेगा । नश्लीय चिन्तन को हटाते हैं तो नेपाल बन जाएगा । नेपाली सोच ओर चिन्तन बनावें, नश्लीय सोच और चिन्तन से नेपाल नहीं बनेगा । इसके लिए संविधान में जो खामी है, उसको ठीक कर दीजिए । बस ! हम यही चाहते हैं ।
प्रचण्डजी ने कहा– प्रयास तो किया । हां, बिल्कुुल प्रयास किया, इसके लिए धन्यवाद है आप को । उस समय दो–तिहाई का चक्कर था, लेकिन दो–तिहाई पहुँचा नहीं । लेकिन अब चक्कर नहीं है, आप के पास दो तिहाई है । दो–तिहाई नजदीक में पहुँच गए हैं और हम लोग भी आप के साथ हैं । आप लोग अच्छे काम किजिए, हम लोग साथ देंगे । दो–तिहाई पहुँचाने के लिए हम लोग सहयोग करेंगे ।
प्रधानमन्त्री जी ! दिल खोल कर आगे बढि़ए । जनता की समस्या का समाधान कीजिए । संविधान को बाइबल–कुरान–गीता–महाभारत बनाइएगा तो सब कुछ नाश हो जाएगा । संविधान बाइबल–कुरान–गीता और महाभारत नहीं है ताकि एक बार दिया तो उस में कुछ परिवर्तन न हो । इससे पहले भी ६ संविधान नेपाल में बना है । यह ७ वां संविधान है । ७वां संविधान भी इससे पहले के ६ संविधान की तरह न हो । हम यही चाहते हैं । इसके लिए समय की मांग के अनुसार, जनता की चाहत अनुसार उसमें परिमार्जन करने की आवश्यकता होगी ।
जब वि.सं. २०४७ साल का संविधान बना तो कहा गया था कि कि इसमें कोई भी ‘फुलस्टाप’, ‘कोमा’ चेन्ज नहीं होगा क्योंकि यह दुनिया के लिए सर्वोत्कृष्ट संविधान है । लेकिन आज वह संधिवान नहीं है । इसीलिए संविधान में जो भी आवश्यक संशोधन करना है, उसको किया जाए ।
संघीय समाजवादी फोरम नेपाल के अध्यक्ष उपेन्द्रजी भी यही हैं, कल उनके साथ हमारी बात हो रही थी । वह कह रहे हैं कि संविधान संशोधन के लिए सम्झौता किया जाएगा । वह बताते हैं कि संविधान संशोधन हो जाएगा । लेकिन हम लोग कितने सम्झौता करें । एक कहावत है– चोर के लिए ताला क्या और बेइमानी के लिए केवला क्या ? चोर तो ताला फोड़ ही देता है । ममसुक बना कर कर्जा देने से भी बेइमान, बेइमानी करता है । हम लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ है । प्रधानमन्त्रीजी ! इसको समझ लीजिए ।
संविधानसभा चुनाव से पहले हम लोग आन्दोलन में थे, मधेशी मोर्चा आन्दोलन कर रहा था । हम कह रहे थे कि हमारी कुछ बात है, उस को सुनो । उस समय कहा गया कि संविधानसभा का चुनाव हो जाने दो, सबकुछ हो जाएगा । ०६४ साल फाल्गुन १६ गते का दिन हमें याद है । उस दिन ८ सुत्रीय सम्झौता हुआ था, हमारे साथ । उस वक्त प्रधानमन्त्री गिरिजा बाबु थे, अब वह इस दुनिया में नहीं हैं । उन्होंने ही सम्झौता किया था । सिर्फ गिरिजाबाबु ही नहीं, एमाले से माधव नेपालजी थे, १० वर्ष जनयुद्ध लडकर आए महान् नेता प्रचण्डजी भी बगल में बैठे थे । यही प्रमुख तीन नेताओं को साक्षी रखकर ८ सूत्रीय सम्झौता हुआ था । उस समय कहा गया–चलो भाई संविधानसभा का चुनाव होने दो, निर्वाचन होने के बाद जो संविधान बनेगा, उसमें आप को सब कुछ मिल जाएगा । लेकिन जब संविधान बनने का समय आया तो हमारे साथ कैसा व्यवहार हुआ, उस को याद किया जाए । हम लोग चिल्लाते रहे– उस सम्झौता को तो मानो । उसी सम्झौता के आधार में संविधान बनाओ । लेकिन हमारे साथ किया गया सम्झौतापत्र को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया ।
हम सड़क पर लड़ते रहे, गोली चलाई गई । सीने में गोली मार कर संविधान की घोषणा हुई । खून की नदियां बह रही थी, वीरगंज में । यहां दिवाली मनाया जा रहा था । संविधान में संशोधन के लिए ६ महीने तक कठोर संघर्ष करना पड़ा । हमारे दर्जनों सपूत शहादत हो प्राप्त हो गए । हजारों अपंग हो गए । ६ महीना तक बंद, हड़ताल, चक्काजाम करना पड़ा । यहां तक कि कठोर होकर हमे नाका पर जा कर बैठने के लिए बाध्य किया गया । इतनी गोली–बारी हुई, जिसके चलते हमे बहुत ही पीड़ा हुई थी ।
तो मेरा एक आग्रह है– सम्झौता तो हम बार–बार करते हैं, दर्जनों सम्झौता यहां हुआ है । मधेशी, दलित, जनजाति, थारुओं ने आन्दोलन किया और हर बार दर्जनों सम्झौता हुआ । इसलिए प्रधानमन्त्री जी ! अब कार्यान्वयन में न आनेवाला सम्झौता नहीं कीजिए । क्योंकि कितना सम्झौता करते रहे हम ? और कितना धोखा खाते रहे ? इसलिए सम्झौता नहीं भी किया जाए कोई बात नहीं । लेकिन पूरे दिल से प्रतिबद्धता व्यक्त कर दीजिए– कल ही संसद् में संविधान संशोधन प्रस्ताव ला दीजिए । दो तिहाई आप के पास है, कांग्रेस के सभापति देउवा जी भी बोल कर चले गए हैं कि हम भी संविधान संशोधन के लिए तैयार है । वह तो पहले से ही तैयार थे । प्रचण्डजी पहले से ही तैयार हैं । अब देश की जिम्मेदारी आप के कंधे पर आया तो उम्मीद है कि देश को आप को आगे बढ़ाना है । देश की समस्या का समाधान करना है । सम्पूर्ण नेपालियों को साथ लेकर चलना है । हिमाल, पहाड, तराई–मधेश, मधेशी, दलित, जनजाति, मुस्लिम थारु सब को लेकर चलना है । आप कोई एक जात के नेता नहीं हैं, सम्पूर्ण नेपाली के नेता हैं । आप को सिर्फ दिल से प्रतिबद्धता व्यक्त करनी है, कल प्रस्ताव आ जाएगा तो परसो पारित हो जाएगा ।
इसीलिए नयी रचना कीजिए । विगत में जो धोखाधड़ी होती आयी, उस में ब्रेक कीजिए, उसको तोडि़ए । आप कहिए– नहीं हम करेंगे, हम वचन देंगे और उसको लागू भी करेंगे । क्रमभंगता करनेवाले नेता प्रचण्डजी भी हमारे सामने है । क्रमभंगता इनका स्वभाव है । आज विगत में जो धोखाधड़ी होती आई है उसका क्रमभंग कीजिउ । हम आप के साथ हैं । पूरे तहे दिल से साथ में है । आप आगे बढि़ए, हर ढंग का सहयोग आप को मिलेगा । अब विरोध के लिए विरोध करने की जरुरत नहीं है और नेपाल को नया युग में प्रवेश करना है । नेपाल को गरीबी से मुक्ति दिलानी है । यहां की लाखों जनता जो विदेश में पलायन हो रहे हैं, उनको रोकना है । जो गए हैं, उन लोगों को वापस लौटाना है । वैसे तो कोई लौटेगा नहीं जब तक यहाँ विकास नहीं होगा । १०–२० वर्ष विकास की गतिविधि में अगर हम लोग लग जाएं तो फिर नेपाल दुनियां के अमीर राष्ट्रों में से एक बनेगा । इसके लिए १५–२० वर्ष तो लगेगा ही । उसके लिए यह लड़ाई–झगड़े को खत्म कीजिए । दिल को बड़ा कीजिए । जनता ने बड़ी पार्टी बना दिया, आप अपने दिल को बड़ा बना दीजिए और पूरे नेपाल को समेट लीजिए । बस यही आप को सुझाव है, शुभकामना है ।
अन्त में, जैसे हम निर्वाचित हो कर आए हैं, वैसे ही कैलाली निर्वाचन क्षेत्र नं. १ से रेशमलाल चौधरी भी जनता के अपार मत से निर्वाचित होकर आए हैं । उनके ऊपर कोई दोष है, कोई अपराध का आरोप है, लेकिन प्रमाणित नहीं हुआ है । आरोप तो किसी के ऊपर कोई भी लगा देता है । यह कोई नई बात नहीं । सिर्फ आरोप लगने से कोई अपराधी नहीं हो जाता । इसीतरह उनके ऊपर भी कोई आरोप लगा है । कितना सही अथवा गलत ! बाद में उसकी बात करेंगे । मेरा सिर्फ इतना ही कहना है कि जनता के अत्याधिक बहुमत से निर्वाचित कैलाली क्षेत्र नं. १ के सांसद् रेशमलाल चौधरी को इस संसद् में होना चाहिए । कैसे ? इस संसद में जनता का प्रतिनिधि भाग ले, इसके लिए आवश्यक व्यवस्था मिलाने का प्रयास हो । यह आप से आग्रह करते हैं, मांग करते हैं । इसके लिए सरकार की ओर से आवश्यक वातावरण मिलाया जाए । इसी आग्रह के साथ आप सभी निर्वाचित सांसद मित्रों को फिर से बधाई और सफल कार्यकाल की शुभकामना । धन्यवाद ।
(फाल्गुन २१ गते आयोजित संघीय संसद् के प्रथम बैठक में राष्ट्रीय जनता पार्टी (राजपा) नेपाल के नेता राजेन्द्र महतो द्वारा व्यक्त वक्तव्य का संपादित अंश ।)