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एपर्इसी फाउण्डेशन का रहस्य
देश के चर्चित नामों को समेटकर रहस्यमयी बनी संस्था एशिया पैसिफिक एक्सचेंज एण्ड काँपरेशन फाउण्डेशन -एपर्ीइसी) लुम्बिनी अभियान में सक्रिय है इस संस्था ने नेपाल के दो विपरीत धु्रव वाले शख्सियत को अपनी संस्था में एक ही पद दिया है यह आर्श्चर्य किन्तु सत्य है माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड तथा पर्ूव युवराज पारस को इस संस्था का सह अध्यक्ष बताया गया है जबकि इस संस्था का सबसे अधिक अधिकार एक मात्र कार्यकारी उपाध्यक्ष को दिया गया है यह पद एक चिनियाँ नागरिक के पास है इस संस्था में जिनको सह-अध्यक्ष बनाया गया है उन में ५ अत्यन्त ही धनाढ्य हैं तो पाँच गैर चिनियाँ व्यावसायी हैं व्यवसायियों में तीन अमेरिकी, एक बिलायती और एक मलेशियाली नागरिक है इसमें नेपाल और थाइलैण्ड के एक-एक राजनीतिज्ञ है बाँकी बचे दो में एक कूटनीतिज्ञ व एक पर्ूव युवराज है
संस्था से जुडे व्यक्तित्व
पुष्पकमल दाहाल -प्रचण्ड- एपर्इसी के वेबसाइट में प्रचण्ड को नेपाल में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने वाली बडी  नेकपा माओवादी के अध्यक्ष के रूप में पहचान बताई है इसमें यह भी कहा गया है कि दाहाल पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने चीन की पहली विदेश यात्रा की थी साथ ही इसमें यह भी उल्लेख है कि नेपाल के प्रधानमन्त्री हमेशा ही भारत से अपनी विदेश भ्रमण की शुरुआत करते है और इस परम्परा को प्रचण्ड ने तोडा है



पारस शाहः– फाउण्डेशन के दूसरे सह-अध्यक्ष में पारस शाह का नाम उल्लेख है जिनकी नेपाल के युवराज के रूप में पहचान बताई गई है इस वेबसाइट में ज्ञानेन्द्र शाह को पर्ूव राजा के रूप में उल्लेख किए जाने के बावजूद पारस को नेपाल के अगले राजा के रूप परिचय दिया गया है इसमें कहा गया है कि संविधान के मुताबिक पारस ही नेपाल के अगले राजा होंगे

जिआओ कनानः– इस संस्था में चिनियाँ सरकार के एक मात्र प्रतिनिधि हैं ४७ वषर्ीय जिआओ चिनियाँ कम्यूनिष्ट पार्ट सदस्य है तथा चीन के राष्ट्रीय विकास तथा सुधार आयोग में पश्चिम क्षेत्रीय उप निर्देशक हैं विश्व बौद्ध शान्ति प्रतिष्ठान, व चीन की सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान समिति के भी वो उपाध्यक्ष है यूएन अर्न्तर्गत औद्योगिक विकास संगठन और विभिन्न चिनियाँ बैंक में भी काम करने का अनुभव है अक्सफोर्ड आर्थिक अनुसंधान में वरिष्ठ सल्लाहकार यूनिवर्सिटी अफ हाइफा, इजरायल के कार्यकारी निर्देशक सहित अन्य दर्जनों संस्था से वो आबद्ध हैं
लियाने चार्नीः- ७३ वषर्य चार्नी अमेरिकी रियल स्टेट टाइकून हैं १३० करोडÞ डाँलर के मालिक चानी को फोर्ब्स ने अमेरिका के ३०८ धनाढ्यों की सूची में रखा है पर्ूव अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के सल्लाहकार के रूप में इनकी पहचान बताई गई है सन् १९७८ में इजिप्ट और इजरायल के बीच अमेरिका में हुए पहले कैम्प डेविड शान्ति समझौता कराने में चार्नी ने महत्वपर् भूमिका अदा की इसके अलावा टेलीविजन कार्यक्रम प्रस्तोता, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता व यहुदी नेता के रूप में उनकी पहचान बताई गई है
जैक रोजेनः– अमेरिकी जुइस कांग्रेस के अध्यक्ष ५८ वषर्य जैक को अमेरिका के उत्कृष्ट पाँच प्रभावशाली यहुदी के रूप में सूचीकृत की गई है टेलीकाँम, स्वास्थ्य, सौर्ंदर्य प्रसाधन जैसे व्यवसाय में वो संलग्न है और कई अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अध्यक्ष भी हैं दुनियाँ के कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियों से उनके निकट के संबंध है

नियोन हिऊ किंगः– चिनियाँ मूल के किंग मलेशिया के १० सबसे अधिक घनाढ्यों में गिनती होती है १२० करोडÞ डाँलर के संपति के मालिक किंग का व्यवसाय हंगकंग, चीन, सिंगापुर, आँष्ट्रेलिया, कनाडा और इंगलैण्ड सहित कई अन्य देशों में भी है रिम्बुवान हाइजु ग्रुप के कार्यकारी अध्यक्ष किंग का चिनियाँ राष्ट्रपति व प्रधानमन्त्री से निकट का संबंध है
स्टिवन क्लार्क राँकफेलरः- अमेरिका के पर्ूव राष्ट्रपति नेल्सन राकफेलर के नीति स्टीवन अमेरिका स्थित पार्क एवेन्यू बैंक के निर्देशक है यूएन से भी सम्मानित हो चुके स्टीवन को माइक्रो क्रेडिट के ज्ञाता बताए जाते हैं
डा. रामजी संवारः- लन्डन स्थिति एसडीसी ग्रुप के संस्थापक अधयक्ष संवार ऊर्जा, निर्माण, सूचना प्राविधि क्षेत्र में अमेरिका, यूरोप तथा मध्य तथा सुदुर पर्ूर्वी देशों में अग्रणी है
काँलीन हेसल्टिनः– आँष्ट्रेलिया के वरिष्ठ कूटनीतिज्ञ हेसल्टिन १९८२ से १९८५ तक तथा १९८८ से १९९२ तक बीजिंग स्थित आँष्ट्रेलियन दूतावास में मिसन उपप्रमुख -डीसीएम) के पद पर कार्यरत थे सन् २००६ में हेसल्टिन को एपेक का कार्यकारी प्रमुख बनाकर सिंगापुर में नियुक्त किया गया था सन् २००१ से २००५ तक वो कोरिया के राजदूत भी थे
कोर्न डबरान्सीः– थाइलैण्ड के पर्ूव उपप्रधानमन्त्री डबरान्सी अक्टूबर २००२ से २००३ तक इस पद पर थे इस समय डबरान्सी थाईलैण्ड चीन मैत्री संघ के अध्यक्ष हैं कुशल राजनीतिज्ञ व सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी छवि बनाने वाले डबरान्सी दक्षिण पर्ूर्वी एशिया में लम्बे समय तक सक्रिय रहे हैं



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