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सच्चिदानन्द चौबे,हिमालिनी, अंक अगस्त ,२०१८ 
श्री पं. योगेश्वर मिश्र वैद्य देश के एक प्रतिभा सम्पन्न, समाजसेवी, शिक्षाप्रेमी कुशल राजनीतिक, देशभक्त, प्रशासक एवं पत्रकार हैं । नेपालगन्ज (बांके) से प्रकाशित प्रथम हिन्दी पत्रिका के सम्पादक थे । आपका जन्म संवत १९७२ साल श्रावण महीने में नेपालगन्ज के –गोसाई गांव में एक



श्री पं. योगेश्वर मिश्र

कर्मकाण्डी ब्राहमण कुल में हुआ था । आपकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई बाद में आपने हिन्दी भाषा में विशारद संस्कृत में मध्यमा और आयुर्वेद में आचार्य प्रथम खण्ड की परीक्षा उत्तीर्ण की । आपको पढने के लिए भारत के लखनऊ भेजा गया परन्तु घरेलु परिस्थितियों के कारण इन्हें अध्ययन छोड़कर वापस आना पड़ा । भारत की स्वतन्त्रता क्रान्ति का प्रभाव इन पर किशोरावस्था से ही पड़ा और उसका प्रतिफल यह हुआ कि ये आजीवन राणा शासन का विरोध करते रहे । इसके कारण इन्हें देश निर्वासन का भी दण्ड मिला – कई बार संदिग्ध क्रिया –कलापों के कारण आपको हिरासत में लिया गया परन्तु आप अपने कार्य में दृढता के साथ लगे रहे । आपकी डायरी का मैंने अध्ययन किया जिसमें आपने कई खण्डों में उसे विभाजित किया है ।
(१) प्रथम खण्ड– समाज सेवा ः–
आपको अपने देश में उच्च शिक्षा हासिल करने का सुअवसर प्राप्त नहीं हुआ इससे खिन्न होकर आपने सर्वप्रथम देशवासियों को शिक्षित बनाने के लिए संकल्प लिया पर इसके लिए सबसे पहले विद्यालय निर्माण की बात उठी उसके लिए आर्थिक एवं बौद्धिक सहयोग की आवश्यकता थी । अतः इन दोनों चीज का निराकरण इन्हें तब मिला जब इनकी भेंट समाजसेवी शिक्षाप्रेमी कृष्ण गोपाल टण्डन से हुई । उन्होंने बताया कि श्रीमती औतारदेई चौधराइन ने एक विद्यालय स्थापना करने की इच्छा व्यक्त की है अतः आप अगर इस कार्य में अपना सहयोग दें तो यह कार्य सुसम्पन्न हो सकता है । ये दोनों लोग औतारदेई चौधराइन से मिले चौधराइन ने इन्हें जगह और भवन निर्माण के लिए पर्याप्त धन दिया । फलस्वरूप विद्यालय निर्माण हुआ और उसका विधिवत एक आमसभा करके सं. १९९२ वसंत पंचमी के दिन जनरल मेघराज शमशेर की अध्यक्षता में उद्घाटन हुआ । पं. योगेश्वर मिश्र इस विद्यालय के प्रथम प्रधानाध्यापक बनें इन्हें मासिक तलब रु. ५०÷– पर नियुक्त किया गया । परन्तु जव इसकी स्वीकृति के लिये सरकार से निवेदन किया गया तो सरकार ने इस विद्यालय में अपना प्रधानाध्यापक नियुक्त कर भेज दिया परन्तु चौधराइन, टण्डन और वैद्य जी के घोर विरोध के कारण उसे वापस
जाना पड़ा और उसके बाद विद्यालय अनिश्चित काल के लिए बन्द हो गया ।
राणा शासन के अवसान काल में टण्डन जी लोकसभा के मनोनित सदस्य होकर काठमाण्डू जब गये और उनके सद्प्रयास से विद्यालय का पुनर्उद्घाटन हुआ । विद्यालय प्रायमरी से लेकर डिग्री कालेज तक पहुंच गया । इस विद्यालय का नाम औतारदेई चौधराइन के स्व. पति लक्ष्मी नारायण वैश्य के नाम से नारायण विद्यालय रखा गया, नारायण माध्यमिक, नारायण इन्टर कालेज और फिर नारायण डिग्री कालेज हुआ जो कालान्तर में नाम परिवर्तन के कारण नेपालगन्ज स्थित महेन्द्र बहुमुखी क्याम्पस बना । इसके सञ्चालन में औतारदेई चौधराइन, कृष्णगोपाल टण्डन, राम गोपाल टण्डन, राम प्रसाद ढेवा, शिव प्रसाद बाजपेई एवं पं. योगेश्वर मिश्र वैद्य जी का प्रमुख सहयोग रहा । विद्यालय के दूसरी बार प्रधानाध्यापक दान बहादुर सिंह बनाए गए और विद्यालय पूर्णरूप से भौतिक साधनों से सम्पन्न हुआ दानवीर कप्तान फत्तेजंग शाह जी की महती कृपा से । इसमें सरदार सोम प्रसाद उपाध्याय, सरकार वक्स चौधरी एवं कप्तान साहब का बहुत बड़ा देन है ।
(२) इस पुनीत कार्य के पश्चात आपका ध्यान नगर में छात्राओं के अध्ययन अध्यापन की ओर गया । इसके लिये नगर के कुछ समाजसेवी शिक्षापे्रमियों की मीटिंग बुलाई गई और अपना प्रस्ताव सबके समक्ष रखा गया सभी लोगों ने इस प्रस्ताव का जोरदार स्वागत किया । विद्यालय की स्थापना हुई पर विद्यालय द्वय की सञ्चालक समिति एक ही रही । रामगोपाल टण्डन औतारदेई चौधराइन, शिव प्रसाद बाजपेई, गोमती प्रसाद, श्री डि. विश्वजंग गोवद्र्धन चौबे आदि लोगों ने अपनी पूर्ण सहमति जनाई और इसके प्रारम्भिक सञ्चालन में अपना योगदान दिया । परन्तु इस कार्य में सक्रिय होेने के नाते इन्हें सरकार से देश निष्कासन का नोटिस मिली और ये घर छोड़कर बहुत दिनों तक रुपईडीहा या बाजार में अन्यत्र गुप्त निवास करते रहे बाद में राणा शासन के अन्त हो जाने पर आपने अपने दम पर बड़ा हाकिम शेर बहादुर शाही के हाथों से “सरस्वती विद्यालय” का उद्घाटन कराया इसमें सहयोग देनेवाले कर्मचारी विशेष, बलभद्र खरेल तथा सुवेदार लक्ष्मीराज उपाध्याय थे । इस विद्यालय के सञ्चालन के लिए लोगों ने पर्याप्त आर्थिक सहयोग किया । अब प्रश्न था विद्यालय निर्माण के लिए जगह का सो टण्डनजी के सद्प्रयास से निर्माण स्थल की भी समस्या हल हो गई उन्होंने नगर के एक लब्ध प्रतिष्ठित धनी शिक्षापे्रमी रामगुलाम शाहू को इस कार्य के लिये सहमत कर लिया और आप दोनों टण्डनजी और वैद्यजी के अनुरोध एवं सक्रियता के कारण रामगुलाम शाहू भवन निर्माण के लिये स्थल से लेकर सम्पूर्ण विद्यालय निर्माण में आनेवाला व्ययभार अपने ऊपर ले लिया । विद्यालय में प्रयोग होनेवाली लकड़ी के लिए तत्सामायिक ए.आई. जी. पी. श्री तीर्थबहादुर शाह ने २ हजार फुट लकड़ी की व्यवस्था कराई । नगरवासियों ने इन दोनों दान दाताओं का दिल खोलकर प्रशंसा की । विद्यालय के उस समय के शुभचिन्तकों में राम गुलाम शाहू और वैद्य जी के अतिरिक्त बड़ा हाकिम बद्री बिक्रम थापा, कृष्णगोपाल टण्डन, केदारनाथ टण्डन, लाला ओंमकारमल, रामचरन लाला, राम प्रसाद बैश्य, श्रीजंग शाह एवं भुनेश्वर बाजे आदि थे । विद्यालय चल निकला आज वही विद्यालय टेन प्लस टू के रूप में चल रहा है ।
(३) इन दो महत्वपूर्ण कार्य संपादन के पश्चात् आप एकबार तौलिहवा गए वहां पर आपने एक सार्वजनिक पुस्तकालय देखा जिसे देखकर इनको यह बात बहुत खटकी कि इतने छोटे स्थान में पुस्तकालय है परन्तु हमारा नगर जो हर तरह से सु–सम्पन्न है उसमें एक भी पुस्तकालय नहीं अतः वहां से वापस आने पर इन्होंने फिर कुछ शिक्षा पे्रमियों की बैठक बुलाकर ये प्रस्ताव रखा । सबने इस प्रस्ताव का हार्दिक स्वागत किया जिसमें कुछअध्ययनशील व्यक्तियों ने जिसमें, महाबीर प्रसाद गुप्त, मूलचन्द आजाद, गोवद्र्धन प्रसाद चौबे, शिव प्रसाद बाजपेई, बासुदेव शर्मा, पूर्णराज उपाध्याय, आदि लोगों ने पुस्तकालय के लिए पुस्तक संकलन किया प्रारम्भ में दो हजार पुस्तकें संकलित हुईं जिन्हें आलमारी में रखवाने के लिए पं. भगवती प्रसाद द्विवेदी को नियुक्त किया गया । इसकी अस्थायी स्वीकृति भी मिल गई, पे्रम सद्भाव के रूप में खोले गए इस पुस्तकालय का नाम ‘पे्रम पुस्तकालय’ रखा गया । प्रारम्भ में यह पुस्तकालय श्रीधर शर्मा के घर पर चलता रहा, फिर किशुन लाल हलवाई के घर के ऊपरी मंजिल चलता रहा । इस समय इसके प्रबन्धकर्ता छोटेलाल गुप्त थे । बाद में पुस्तकालय निर्माण हेतु कुछ धनराशि मिली, परन्तु उसका नाम महेन्द्र पुस्तकालय हो अतः इस पे्रम पुस्तकालय का नाम परिवर्तन करके लाला उद्दीलाल की जगह पर इस भवन का निर्माण योगश्वर मिश्र वैद्य के अथक परिश्रम से सम्भव हुआ ।आज वह पुस्तकालय सभी संसाधनों से सम्पन्न है ।
(४) चौथा शिक्षा प्रसार क्षेत्र में आपने एक कड़ी और जोड़ी आपकी पोस्टिंग जब उदयपुर में हुई तो वहां पर भी आपने वहां के कुछ शिक्षापे्रमी के सहयोग से एक मिडिल स्कूल एवं पुस्तकालय की स्थापना कराई उनके सहयोगियों में विशेष साथ देने वाले थे, हरीप्रसाद उपाध्याय, कप्तान तुलबहादुर, वहीदार पुष्पराज एवं हरीप्रसाद मालसुब्बा थे ।
राजनीतिक प्रकरणः–
यहां से आपकी जीवन शैली में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ । आप प्रारम्भ से राणा शासन के विरुद्ध रहे और कांग्रेस के एक समर्पित सक्रिय सदस्य थे । आप अपने राजनीतिक काल में मातृका प्रसाद कोइराला, बी.पी. कोइराला, ंएवं भारतीय राजनेताओं से बराबर मिलते रहे । आपने कई बार राणा सरकार को अपने सुझाव पत्र भेजे परन्तु कोई प्रतिक्रिया न होने पर आप सेवाग्राम सावरमती आश्रम में गांधी जी से मिलने गए गोबिन्द वल्लभ पन्त, के . एम. मुन्शी आदि से भेंट किया उन्हें राणा शासकों के अत्याचार, शोषण एवं मधेशियों के प्रति उपेक्षित व्यवहार की एक झलक अपनी एक बुलेटिन प्रशारित कर बताई । उन्होंने इन्हें सहयोग करने का आश्वासन दिया ।
भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन खतम हो गया भारत स्वतन्त्र होने पर डा. राम मनोहर लोहिया जो समाजवादी पार्टी के नेता थे उनसे पे्ररणा पाकर नेपाल में बी.पी. कोइराला राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना की जिसका उद्घाटन कलकत्ते में २८ जनवरी सन् १९४७ को हुआ इस उद्घाटन समारोह में “योगेश्वर मिश्र वैद्य” भाग लेने गए । विराट नगर में हुए मजदूर आन्दोलन के लिए कृष्ण प्रसाद उपाध्याय नेपालगन्ज आकर आपसी सहयोग मांगा और आपने उनका पूरा सहयोग किया । आप पश्चिमी संघर्ष समिति सभापति चुने गए । आपकी मीटिंग घरवारीटोल में वासुदेव शर्मा के घर होती रही और कार्यालय रुपईडीहा में वनाया गया । आपने राणाशासन की नीति परिवर्तन के लिए “सत्याग्रह” किया जिसे श्री ३ पदम शमशेर के आश्वासन पर स्थगित करना पड़ा ।
आपने राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद मातृका प्रसाद कोइराला को नेपालगन्ज बुलाया परन्तु यहां उनके प्रवचन में बैण्ड लगा दिया गया अतः उक्त कार्यक्रम बार्डर के उस पार रुपईडीहा में आयोजित किया गया जिसमें कोइराला जी के बाद सबसे जोशपूर्ण भाषण ‘योगेश्वर मिश्र वैद्य’ जी का था ।
दूसरा कांग्रेस का अधिवेशन काशी में हुआ यहां मातृका प्रसाद कोइराला बाबू ने अपना त्यागपत्र दे दिया और सभापति पद पर दिल्ली रमण रेग्मी चुने गए इस अधिवेशन में आप की भी उपस्थिति रही इस समिति में बामदेव शर्मा बने । तीसरा अधिवेशन फिर कलकत्ता में हुआ जिसमें सभापति टंक प्रसाद आचार्य चुने गए । बी.पी. कोइराला के जेल से छूटकर आने पर उनके और रमण रेग्मी के वीच सैद्धान्तिक दरार पड़ गई । आप रमण रेग्मी, वामदेव शर्मा और पुष्पलाल जी को साथ लेकर बढ़नी तथा सोहरतगढ स्थानों पर गए और आम सभाओं का आयोजन कराया वाद में रमण रेग्मी जी बनारस चले गए आप लोगों के कार्यकलापों का प्रभाव राणा सरकार पर पड़ा और उन्होंने कुछ सुधारों की घोषणा की जिसे “वैधानिक कानून” के नाम से जाना जाता है । इसी समय इन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया ।
कांग्रेस पार्टी के कुछ मूल संस्थापक लोग अपनी पार्टी के लिए चन्दा मांगने कलकत्ता पहुंचे वहां श्री महावीर शमशेर, सुवर्ण शमशेर एवं हिरण्य शमशेर से ये लोग मिले । उन लोगों ने एक नई ‘नेपाल डेमोक्रेटिक कांग्रेस’ का सूत्रपात किया इसके प्रमुख कार्यकर्ता सूर्य बहादुर उपाध्याय एवं महेन्द्र बिक्रम शाह थे । विशेश्वर गुट भी इसी में शामिल हो गया । इसमें गणेशमान सिंह भी आ गए ।
“वैधानिक कानून” को स्वीकृति नहीं मिली आप इस सिलसिले में श्री ३ प्रधानमन्त्री मोहन शमशेर से बात की तो उन्होंने इन्हें ‘आडीटर’ पद पर कार्य करने के लिए आफर दिया जिसे इन्होंने सवसे सलाह कर स्वीकार कर लिया । आपका अभिनन्दन हुआ । परन्तु कुछ दिनों के पश्चात प्रधानमन्त्री मातृका प्रसाद कोइराला एवं गृहमन्त्री बी.पी.बाबू के द्वारा यह पद निरस्त्र कर दिया गया ।
अतः आपने राजनीति से यहीं पर वैराग्य ले लिया और नाका– टोला में अपना एक प्रेस खोला जिसमें आपकी साप्ताहिक मातृभूमि पत्रिका प्रकाशित होने लगी । यह पत्रिका साहित्यिक कम राजनैतिक अधिक थी तथा पूर्ण रुपेण हिन्दी में ही सम्पादन होता था पर इसे भारतीय पत्रिकाओं के सामने बाजार न मिल सका और कुछ दिनों के वाद यह पत्रिका बन्द हो गई उनकी सन्तति में कोई इतना संपादकीयता में दक्ष नहीं निकला जो उसे निरन्तरता दे सकता । आपके द्वारा लिखे बहुत से लेख हैं जो इस पत्रिका के माध्यम से जन चेतना फैलाने में सहायक हुए स्थानाभाव के कारण उन लेखों को यहां जगह नहीं दे पा रहा हूं फिर किसी अंक में उन्हें प्रकाशित कराने का प्रयास करुंगा ।
देश के एक प्रतिभा सम्पन्न, समाजसेवी, शिक्षाप्रेमी कुशल राजनीतिक, देशभक्त, प्रशासक एवं पत्रकार जिसने इस नगर से अशिक्षा का अन्धकार दूर कर नया मार्ग दिखलाया वह एक साधारण बीमारी के वाद बिक्रम सम्बत २०२९ साल चैत्र १२ गते को इस धरा को छोड़कर संसार से विदा हो गया उस दिवंगत आत्मा को शत् –शत् प्रणाम करते हुए श्रद्धाञ्जली अपर्ण करता हंू ।
संदर्भः– योगेश्वर मिश्रजी की डायरी में उल्लेख संदर्भो के आधार पर
(लेखक अवधी सांस्कृतिक विकास परिषद् बांके, नेपालगंज के अध्यक्ष हैं ।)



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