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मधेस मे वीर शहिदो पे राजनीति कब तक होती रहेगी ? डि.के. सिंह

डि.के. सिंह (बारा)मधेस 17September 2018 | हाल के दिनो मे मधेस देश के चहइते राम मनोहर यादव जी मधेस द के लिए शहिद होने वाले पहले क्रान्तिकारी युवा है ? आय दिनो मे मधेस के कुछ राजनीतिक पार्टीया और किचेन कैविनेट वाले संगठन जो आए तो थे मधेस को अजादी दिलाने , संविधान मे मधेसीयो का हक दिलाने ,मधेस कि जनता कि भलाई कि बात करने पर इन लोगो ने पैसो के साथ समझौता कर अपनी सिद्धान्तको भुल गए । कुछ मधेसी पार्टी ने अपनी पार्टी नाम के साथ जुडे मधेस शब्द को हमेसा हमेसा के लिए मिटी मे दफना दिए | तो कुछ ने सरकार के साथ समझौता कर सरकारी भत्ता खाने के लोभ मे अपने चरित्र को दो मुहाँ साँप की तरह बना दिए । तो वहीं दुसरी और जो अपने आपको मधेस के मसीहा और भगवान बनने की खवाईस रखने वाले ने भी पैसे पाने के लोभ मे मधेसी युवाऔ को गुमराह कर देश विदेश से युवाऔ द्वारा कमाय गए रुपैया के कुछ हिस्सा चंदा के नाम पर मंगवाकर अपनी निजि जीवन मे उपयोग कर रहे है।

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इन सभी छोटे छोटे पार्टी और संगठनो के कुछ प्रमुख लोग मधेस के नाम पर अपनी सम्पत्ति तो जोड ली परन्तु जनता को इस्तमाल और गुमराह करना पेशा सा बना लिया है। इन सब बातो का तात्पर्य वीर सहिद राम मनोहर यादव जी से है ।इसलिए इन सब बातो का जिक्र करना उचित समझा हुँ।पहले से लेकर अभी तक का हमारे जितने भी क्रान्तिकारी वीर सहिद हुए उन्होंने मधेस और मधेसी जन्ता के लिए अपनी कुर्वानी दे दी बिना कुछ सोचे समझे लेकिन उन क्रान्तिकारीयो पर इन लोगो ने अपनी राजनीतिक रोटी सेकना सुरू कर दिया जो कि क्रान्तिकारीयो का अपमान करने का बराबर है।आज जितने भी वीर सहिद हुए है चाहे वो रमेश महतो हो या राम मनोहर यादव जी हो उनके परिवार के साथ उनकी कमी तो कोई पूरा नhi कर सकता पर उनके परिवार के साथ जरा सा कन्धे से कन्धा मिलाकर सभी मधेसी लोग चलेङगे तो थोडी बहुत उन सहिद परिवार को राहत महसुस होगी।अगर बात की जाए वीर सहिद के परिवार और बच्चे लोगो की तो उन सभी के परिवारिक जिम्मेवारी नैतिक रुप से इन स्वार्थी मधेसी नेता और स्व.घोषित मसिहा को लेनी चााहिए | लेकिन यहाँ तो जितने भी नेता हो या स्व.घोषित मसिहा सब के सब अपनी किमति दुकान को चमकाना चाहते है और बदले मे एन.जि.ओ. ,आइ.एन.जि.ओ के माध्यम से डटकर विदेशी मुद्राऔ को मंगाकर अपनि कैरियर को नई मुकाम तक पहुँचाना चाहते है।

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नोट:-राम मनोहर यादव जी के मौत को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक बहोत बडि सोची समझि साजिस के तहत कि गई है।कुछ नेताऔ के डुबते हुए कैरियर को नई मुकाम देने के लिए किया गया है।अगर ऐसा नही है तो वीर सहिदो के हक दिलाने के लिए कोई शान्तिपूर्ण धारणा प्रदर्शन /आमरण अनसन/चक्का जाम/सरकारी कार्यलय बन्द आदि जैसे मुद्दे को कोई संगठन या पार्टी अच्छे ढंग से क्यु नही किया ? जिसके बजह से मन मे कई सन्देह पैदा हो रहा है।

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लेखक:-मधेस विषयक शोधकर्ता एवं सामाजिक-राजनीतिक अभियन्ता है।

DK singh

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