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क्षेत्रीय विकास और कनेक्टिभिटी पर हुआ बिम्सटेक शिखर सम्मेलन : अमरेन्द्र यादव

अमरेन्द्र यादव,हिमालिनी, अंक सितंबर,२०१८
नेपाल की राजधानी काठमाण्डु में १८ सुत्रीय घोषणापत्र जारी करते हुए बिम्सटेक अर्थात् बंगाल की खाडी बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग उपक्रम ९द्यबथ या द्यभलनब िक्ष्लष्तष्बतष्खभ ायच ःगतिष्(क्भअतयचब ित्भअजलष्अब िबलम भ्अयलयmष्अ ऋययउभचबतष्यल० का चौथा शिखर सम्मेलन अगस्ट ३१ सम्पन्न हुआ । दो दिवसीय सम्मेलन में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना, भुटान के अन्तरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार छिरिङ वानचुक, म्यांमार के राष्ट्रपति विन मिन्ट और थाइल्याण्ड के प्रधानमन्त्री पारुत छानोछा सहभागी हुए थे ।
नेपाल सरकार और नेपाल के प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली के लिए सबसे खुशी और सन्तोष की बात यह है कि बिम्सटेक का चौथा शिखर सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमाण्डु मे सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ, वो भी शान्ति, सद्भाव और गर्मजोशी के साथ ।
पृष्ठभूमि और इतिहास
जून १९९७ में थाइलैंड के राजधानी बैंकाक में घोषणापत्र जारी करते हुए बिम्सटेक को अस्तित्व में लाया गया था । बंगाल की खाडी क्षेत्र के सात देश बांग्लादेश, भुटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाइलैंड बिम्सटेक के सदस्य राष्ट्र हैं । बिम्सटेक के हेडक्वार्टर बांग्लादेश के राजधानी ढाका में है । इस से पहले विभिन्न सदस्य राष्ट्र में तीन सम्मेलन हो चुका है । पहला सम्मेलन ३१ जुुलाई २००४ में थाईलैंड, दूसरा १३ नवंबर २००८ में भारत, तीसरा २०१४ में म्यांमार मे आयोजित हो चुका है । इस क्षेत्रीय संगठन में सहभागी सात देशों की आबादी १.५ अरब है जोकि दुनिया की आबादी का लगभग २२ फीसदी है । इन सात देशों का सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) २५ हजार अरब डालर से भी ज्यादा है ।
बिम्सटेक का १४ मुख्य उद्देश्य है जिसमें बंगाल की खाडी के किनारे दक्षिण एशियाई और दक्षिण पुर्व एसियाई देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक शामिल है । साथ ही निवेश, टेक्नोलाजी, पर्यटन, मानव संशाधन का विकास, कृषि, मत्स्य पालन, परिवहन, संचार, कपड़ा और चमड़ा शामिल है । बिम्सटेक का सब से महत्वपूर्ण उद्देश्य कहा जाय तो बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित दक्षिण एसियाई और दक्षिण पुर्ण एशियाई देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग स्थापित करना है ।
किस ने क्या कहा ?
बिम्सटेक सम्मेलन को अध्यक्षता करते हुए नेपाल के प्रधानमंत्री ओली ने विश्वास व्यक्त किया कि सभी सदस्य देश इस क्षेत्र में शान्तिपूर्ण, समृद्ध और स्थायी विकास स्थापित करना चाहता है । प्रधानमंत्री ओली ने इस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए आपसी लगानी और व्यापार अभिवृद्धि करने पर जोर दिया । उन का मानना था कि सदस्य देशों द्वारा डिजिटल और भौतिक पुर्वाधार में निवेश बढोत्तरी कर के आर्थिक समृद्धि हासिल किया जा सकता है ।
इसी तरह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस क्षेत्र के सभी देशों के बीच साझा सभ्यता, इतिहास, कला और संस्कृति का अटूट सम्बन्ध होने की बात बतायी । ‘सभी सदस्य देश कृषि प्रधान मुल्क है और सभी सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जुझ रहे है’ यह कहते हुये प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि अनुसन्धान शिक्षा पर जोर दिया । बिम्सटेक के युवाओं को प्रोत्साहन करने के लिए युवा सम्मेलन, अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध धर्मावलम्बी सम्मेलन और बिम्सटेक वाटर सपोर्ट जैसे आयोजन निकट भविष्य में करने की बात मोदी जी ने कही ।
उद्घाटन समारोह में ही बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शिखर सम्मेलन को सदस्य राष्ट्रों के व्यापार और आर्थिक विकास के लिए केन्द्रित करने पर जोर दिया । हसीना ने आगे कहा कि सदस्य देशों बीच नया विद्युत प्रसारण लाइन का निर्माण और उर्जा क्षेत्र में परस्पर सहयोग होना आवश्यक है । आपसी सहयोग, व्यापार प्रवद्र्धन, जनस्तर में सम्पर्क स्थापना करने पर भी उन्होंने जोर दिया ।
इसी तरह भूटान के अन्तरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार छिरिङ वानचुक ने बिम्सटेक के विगत दो दशक के प्रयासों से सदस्य देशों बीच राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध सुधरने की बात कहा । वानचुक ने भी समृद्ध भविष्य के लिए सभी सदस्य देशों के बीच आर्थिक निवेश, व्यापार प्रवद्र्धन और विस्तार में जोर दिया ।
इसी तरह उद्घाटन सत्र में ही सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना, म्यांमार के राष्ट्रपति विन मिन्ट और थाईलैंड के प्रधानमंत्री पारुत छानोछा ने भी सदस्य राष्ट्रों के बीच आपसी हित, व्यापार प्रवद्र्धन, लगानी एवं अपराध और आतंकवाद नियन्त्रण के लिए सहकार्य करने पर जोर दिया ।
अवसर और चुनौतियां
सदस्य देशों का कुल जनसंख्या और भूगोल के हिसाब से देखा जाए तो बिम्सटेक बहुत बडा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है । संसार का २२ फीसदी से ज्यादा नागरिक इन देशों में बसते है । कुल मिलाकर इन देशों का अर्थतन्त्र भी बहुत बड़ा है । इसलिए सदस्य राष्ट्रों के नेता द्वारा इस संगठन के निरन्तरता और प्रगति के लिए थोड़ा भी प्रयास किया जाए तो बिम्सटेक को अंतराष्ट्रीय पहचान ही नहीं, इस से सदस्य देशों के आपसी हित और आर्थिक समृद्धि में बहुत बड़ा योगदान मिलेगा ।
सन् २०१६ में भारत के गोवा में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में बिम्सटेक सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख और सरकार प्रमुख को आमन्त्रित सदस्य के रूप में सहभागी होने का अवसर मिला था । और उस सहभागिता से बिम्सटेक के सदस्य देशों को ब्रिक्स जैसे बड़े अन्तराष्ट्रीय संगठन से साझेदारी करने का अवसर मिला था । भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के अगुवाई में बिम्सटेक के सदस्य देशों को ब्रिक्स सम्मेलन में जो सहभागी होने का जो आमन्त्रण मिला था उस से बिम्सटेक और इस के सदस्य देशों को अपने आयाम को विस्तार करने में बहुत बड़ा अवसर मिला था ।
अनेक अवरोध के बीच विश्वव्यापीकरण का विकल्प नही है । व्यापार और लगानी के माध्यम से आय उत्पादन और रोजगारी विस्तार आज के विश्व अर्थतन्त्र का मूल आधार बन गया है । बिम्सटेक सदस्य देशों के लिए भी यही आधार है । इसीलिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बिम्सटेक के लिए विविध क्षेत्र का पहचान और विस्तार किया जा सकता है । बिम्सटेक के सदस्य देशों के लिए व्यापार, प्रविधि, यातायात, पर्यटन, उर्जा और मत्स्य पालन आपसी सहकार्य और सहयोग का बहुत बड़ा माध्यम हो सकता है । इसीतरह कृषि, स्वास्थ्य, गरीबी निवारण, प्रतिआतंक, संस्कृति का संरक्षण, मौसम परिवर्तन और जनसम्पर्क जैसा क्षेत्र को भी आपसी सहयोग और सहकार्य का मुद्दा बनाकर बिम्सटेक सदस्य देशों का बहुआयामिक विकास किया जा सकता है ।
बिम्सटेक सार्क का विकल्प नहीं
क्या बिम्सटेक दक्षिण एसियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) का विकल्प है ? क्या सार्क को निस्तेज करने के लिए बिम्सटेक को आगे लाया जा रहा है ? ऐसे सवाल खासकर पाकिस्तान में २०१६ में होने वाले सार्क सम्मेलन स्थगित होने बाद उठते आ रहे हैं । पाकिस्तान में बसे आतंकवादी संगठनद्वारा भारत में हुए आतंकवादी हमला के विरोध में भारत ने इस्लामावाद २०१६ मेंं होनेवाले उन्नीसवां सार्क सम्मेलन में सहभागी होने से इन्कार किया । और सदस्य देशों ने भी उसका साथ दिया । तभी सार्क सम्मेलन स्थगित है ।
इस के अलावा जब २०१६ में ही भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन की मेजमानी की और सार्क के बजाय बिम्सटेक सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों और सरकार प्रमुखों को ब्रिक्स के गोवा सम्मेलन में आमंत्रित किया गया । उसी वक्त से यह आरोप लगने लगा कि भारत ने सार्क के विकल्प में बिम्सटेक को सार्क के विकल्प में खड़ा कर रहा है । मगर अन्तर्राष्ट्रीय मामला के जानकारों का मानना है कि सार्क पिछले ३० सालों से एक तरह से निष्किय ही रहा है । केवल सम्मेलनों का नियमित रूप से होना सार्क के जीवित होने का प्रमाण नहीं है ।
बिम्सटेक का जहां तक सवाल है तो कुछ जानकारों का कहना है कि सार्क के जरिये भारत दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और व्यापार कर रहा था, मगर बिम्सटेक के बाद दक्षिण–पूर्वी एशिया में भी भारत ने आपसी सहयोग और व्यापार को आगे बढ़ाया है ।
नेपाल में भी भारत विरोध पर टिकी कथित राष्ट्रवादी तत्वों ने भी पाकिस्तान को अलग थलग करने की साजिश की तहत बिम्सटेक को आगे बढ़ाये जाने की आरोप कुछ दिन पहले से लगाते आ रहे हैं । मगर चौथा सम्मेलन के आयोजक रहे देश के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने साफ तौर पर बारबार कहा कि बिम्सेटक सार्क का विकल्प नहीं है । बल्कि सार्क और बिम्सटेक एक दूसरे का परिपूरक और सहायक बन सकता है ।
१८ सुत्रीय घोषणापत्र का महत्व
चौथा बिम्सटेक सम्मेलन १८ सुत्रीय काठमाण्डु घोषणापत्र जारी करे हुए सम्पन्न हुआ । घोषणापत्र में जिन–जिन मुद्दों को समाहित किया गया है, सदस्य देशों ने इन सब मुद्दों को सही तरीके से कार्यान्वयन किया जाए तो इन कम विकसित देशों के विकास में कारगर सिद्ध हो सकता है । क्षेत्रीय सहयोग के विशेष अवधारणा के साथ शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था और इसी तरह के उद्देश्यों को पूर्ति करने वाले मुद्दों को घोषणापत्र में शामिल किया गया है । सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग, व्यापार और निवेश की अभूतपूर्व सम्भावनाएं है । सभी सदस्य राष्ट्र प्राकृतिक स्रोतसाधन, जलसम्पदा, जैविक विविधता, और सांस्कृतिक सम्भाव्यता में बहुत अमीर और सम्पन्न है ।
परंतु आर्थिक और सामाजिक हिसाब से बिम्सटेक के ज्यादातर देश पिछड़ापन के शिकार हैं । जलवायु परिवर्तन के शिकार सभी सदस्य राष्ट्र हो रहे हैं । सभी सदस्य देश काठमाण्डु घोषणापत्र के साझा प्रतिबद्धताओं पर अडिग होकर सामुहिक रूप से काम करे तो सभी सदस्य देशों की गरीबी और पिछडापन कम हो सकता है । इस के अलावा भौतिक पूर्वाधार का विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और गरिबी निवारण के लिए ठोस रणनीति बनाकर सदस्य देशों को काम करना होगा ।
सात सदस्य राष्ट्रों द्वारा भूराजनीतिक सीमाओं को लांघकर १८ सुत्रीय घोषणापत्र में हस्ताक्षर किया गया है । निश्चित समय सीमा में घोषणापत्र में सम्मिलित प्रतिबद्धताओं का कार्यान्वयन नहीं हुआ तो अपेक्षाएं निराशा में तबदील होने में देर नहीं लगेगी । इसलिए घोषणापत्र में उल्लेखित साझा प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए सभी सदस्य राष्ट्र को अत्यन्त गम्भीरता और सजगता से एक कार्यतालिका बनाकर काम करना होगा । और अंत में सदस्य देशों के बीच सामुहिक सैन्य अभ्यास और अपराध नियन्त्रण के लिए होने बाले बहुआयामिक कार्यगत एकता से अन्य मित्र राष्ट्र त्रसित न हो जाए इस तरफ भी थोड़ा ध्यान देना आवश्यक है ।

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