हाई प्रोफाईल अपहरण
नेपाल-भारत के पेशेवर अपराधी साथ साथ
भारत से पंजाब के मन्दीप सिंह चले तो थे अपने घर से कनाडा जाने के लिए लेकिन पंजाब से दिल्ली, मुर्म्बई, आसाम कोलकाता होते हुए नेपाल के तर्राई के एक गांव में आकर उनकी यात्रा ठहर गई थी। अपनी सूझबूझ और दिलेरी की वजह से मन्दीप अपहरणकारियों के चंगुल से तो आजाद हो गए लेकिन इस अपहरण के बाद दोनों देशों की पुलिस की नींद उडÞ गई। अपहरण के बाद प्रति दिन नए-नए मामले सुलझते और उलझते जाने से पुलिस के लिए एक नयां सिर्रदर्द पैदा हो गया था। अपहरण का मामला अब किसी एक देश का ममला नहीं रह गया और ना ही इसमें छोटे मोटे गिरोह का ही हाथ था। मन्दीप सिंह के अपहरण के बाद पुलिस इस बात को लेकर अधिक बेचैन थी कि भारत और नेपाल दोनों ही देशों के अपराधियों ने इसके लिए आपसी तालमेल कर गठजोडÞ कर लिया था जो कि आने वाले दिनों में उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है।
वैसे तो उत्तर प्रदेश और बिहार से अपहरण कर नेपाल में छिपाए जाने या नेपाल में अपहरण कर भारत में जाकर फिरौती की मांग संबंधी कई केस की गुत्थी आए दिन पुलिस सुलझाती रहती है लेकिन अब बिहार उत्तरप्रदेश के अलावा पंजाब के भी मामले मिलने और मुर्म्बई कोलकाता आसाम के रास्ते अपहृत को नेपाल पहुंचाना एक नई परेशानी की ओर संकेत करता है। मन्दीप अपहरण केस के बाद ही पुलिस को हाईप्रोफाईल अपहरण मामले की तार अब किसी ना किसी रूप में नेपाल से जुडÞे होने की ओर हमेशा ही अंदेशा बनी रहेगी। मन्दीप अपहरण मामले की गुत्थी अभी भी सुलझी नहीं है लेकिन इस हाईप्रोफाईल केस में भारत और नेपाल के पेशेवर अपराधियों के बीच मजबूत गठजोडÞ से पुलिस परेशान जरूर है।
आखिर कैसे हुआ मन्दीप का अपहरण और कैसे कनाडा जाने के बजाए वो नेपाल के मोरंग जिले में पहुंचे और कैसे अपराधियों को चकमा देते हुए भागने में सफल हुए आईए जानते हैं अपहरण की पूरी कहानी खुद अपहृत मन्दीप सिंह की जबानी-
रंजीत सिंह हमारे पडÞोस में रहते थे। यूरोप के कई देशों में रहकर वापस आए रंजीत सिंह ३५ वर्षके हैं। वीजा संबंधी समस्या होने के बाद यूरोप से वापस आने की बात रंजीत ने हमारे परिवार को बताई थी। वो बार बार मुझे कहता था कि मेरी अच्छी खासी पहुंच हैं अच्छा चैनल है लिंक काफी है इसलिए मैं तुम्हें विदेश भेज सकता हूं। मेरी भी कनाडा जाने की बहुत इच्छा थी और इस बात को रंजीत अच्छी तरह से जान गया था। वो जब भी मुझसे या मेरे परिवार से मिलता हमेशा ही विदेश भेजने की बात करता रहता था। काफी दिनों के बाद मैं भी उसकी बातों से प्रभावित हुआ और उसके विदेश भेजने की बात पर मैं विश्वस्त हो गया।
३० जून को मैं घर से कनाडा जाने के लिए निकला। मैंने दो ब्रिफकेश लिया एक बडÞा सूटकेश भी था मेरे पास। पहले मुझे दिल्ली ले जाया गया। एक दिन वहां रखने के बाद मुझे मुर्म्बई ले जाया गया। मुर्म्बई में मुझे संगम होटल में ले जाकर रखा। वहीं पर रंजीत ने मुझसे दो अपरिचित युवकों से मिलवाया। उनमें से एक का नाम राकेश था दूसरे का नाम मुझे अभी याद नहीं आ रहा है। मुझसे कहा गया कि अब मुझे कोलकाता जाना है वहां से मुझे विमान में बिठाकर कोलकाता ले गए। वहां मुझे कहा गया कि मेरा पासपोर्ट और वीजा दोनों ही तैयार है और वहीं से विदेश के लिए रवाना होना है। कोलकाता पहुंच कर बिना मुझसे पूछे या जानकारी दिए मेरे लिए बागडÞोगरा का टिकट थमा दिया गया। और मुझे जबर्दती ही बागडÞोगरा जाने वाली छोटी विमान में बिठा दिया गया। कोलकाता एयरपोर्ट से ही मुझे पूनम नामक एक लडÞकी के साथ बागडÞोगरा तक ले जाया गया था।
बागडÞोगरा एयरपोर्ट पर पहुंच कर वहां मुझे एक मारूति वेन में रखा गया। रखा गया या जबरदस्ती मुझे उसमें धक्का देते हुए बिठाया गया। पूनम और मैं जैसे ही बागडÞोगरा एयरपोर्ट पर पहुंचे, वहां हमें तीन और आदमी मिले, जिन्होंने मुझे मारूति वैन की पिछली सीट पर बैठा कर रखा। मुझे बीच में बैठा दिया गया और मेरे अगल बगल दो और लोग बैठे थे। आगे की सीट पर भी एक आदमी था और एक डÞर््राईवर भी था।
कुछ देर आगे निकलने के बाद मेरे साथ मारपीट की गई और मेरी आंखों पर पट्टी बांध दिया गया। मेरे हाथ पैर भी बांध दिए गए और मुझे वैन की डिक्की में बिठा दिया गया। करीब दो घण्टों तक कच्ची रास्ते पर चलने के बाद एक स्थान पर पहुंचते ही मेरे साथ फिर से मारपीट की गई। मुझे एक छोटे कमरे में बन्द कर दिया गया और वहां पर ४-५ बच्चों को मेरी रखवाली के लिए रखा गया था। एक दिन बाद एक लैपटाँप लेकर आए मेरी कनपट्टी पर बन्दूक रख कर अपने घर पर फोन करने को कहा। उनके कहे अनुसार मैंने अपने घर पर बताया कि मैं कनाडा पहुंच गया हूं और इसके बाबत रंजीत सिंह को पैसे दे दें। इसके बाद वो मेरी किडÞनी बेच कर और मुझे मार डÞालने की योजना बनाने लगे।
फिर कुछ दिन बाद अचानक मेरे पास कुछ लोग आए और उसी दिन मुझे कनाडा पहुंचाने की बात कहते हुए मुझे अपने साथ ले गए। २० मिनट चलने के बाद गाडÞी अचानक रूक गई। मैंने अपने पैण्ट के भीतरी जेव में अपना परिचय पत्र छिपा कर रख लिया था ताकि मरने के बाद मेरी पहचान हो सके। अपहरणकारियों ने मेरे पाँकेट में एक कागज रखा जिस पर पंजाबी में नेपाल के कुछ स्थानों का नाम लिखा हुआ था। उन्होंने मुझे हिदायत दी थी कि यदि रास्ते में किसी पुलिस वाले ने कुछ पूछा तो इन्हीं स्थानों का नाम बताना है। उन नामों में मुझे कटारी का नाम याद है।
आगे कुछ दूर चलने के बाद पुलिस की चेकिंग के लिए गाडÞी रोकी जाने लगी। पुलिस वालों को देख कर मुझे थोडÞी हिम्मत मिला। मैंने सोच लिया मरना तो है ही क्यूं ना एक बार आखिरी कोशिश की जाए। मैंने वैन की गेट पर जोडÞ से मारा। गेट अचानक खुल गया। हाथ पैर की डोरी को तोडÞने के लिए जोर से दम लगाया तो वह भी टूट गया। वैन के गेट से मैं बाहर कूदा। मैं जिस एप्पल का आईफोन प्रयोग कर रहा था वह आईफोन, पाँकेट मनी के रूप में घर से लाए तीन हजार अमेरिकी डÞाँलर और ब्रिफकेश सभी उन्हीं के कब्जे में हैं।
