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नेकपा की सरकार ने विरोधियाें को दुश्मन के रूप मे ं लेना शुरु कर दिया है । परंतु आज के दिन में नेकपा के भीतर ही वाक युद्घ या कहें तो शक्ति प्रदर्शन वाली शीत युद्घ ने जन्म ले लिया है

हिमालिनी, अंक अक्टूबर, 2018 । पिछले वर्ष हुए तीनाें तह के चुनाव के दौरान वामपंथियों ने नेपाली जनता को उम्मीद और सपनों की दुनिया दिखाई थी । तत्कालीन नेकपा एमाले और माओवादी केन्द्र एक ही बैनर के तले सिर्फ चुनावी अभियान मे ही नहीं दिखे अपितु एक ही चुनाव चिन्ह का प्रयोग किया था । माओवादी केन्द्र ने तो अपने आपको नेकपा एमाले मे विलय ही कर लिया । नेपाली जनता ने भी दो पार्टियों के एकीकरण को बहुत सकारात्मक ढंग से लिया था । चुनावी राजनीति का भरपूर फायदा उठाने मे भी सफल रहे नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (नेकपा) । भारत विरोधी, मधेश विरोधी जैसै अवयवाें से निर्मित अन्धराष्ट्रवाद के आवरण मे दो तिहाई बहुमत लाने मे सफल नेकपा की सरकार आज देश में आज अराजकता को बढ़ावा दे रही है । आम लोगों में यह चर्चा होनी शुरु हो गयी है कि अगर यह सरकार वर्तमान तरीके से ही आगे बढ़ी तो देश मे न की सिर्फ अधिनायकवाद अपितु देश अपराधियाें का अखाड़ा बन सकता है । सरकार गठन के कुछ ही महीने बाद सरकार ने यातायात लगायत बिभिन्न क्षेत्र मे रहे सिन्डिकेट तोड़ने का प्रयास प्रारम्भ किया था जिसको जनता का भरपूर सहयोग मिला था । सोना घोटाले की छानबीन भी प्रारम्भ हुई । परंतु एक भी मसले को निकास देने मे यह सरकार असफल रही

हुआ यह की देखते ही देखते देश मे महिला हिंसा, बलात्कार, तस्करी जैसी आपराधिक घटनाआें की संख्या बढ़ने लगी जो लगातार जारी है । इतर बिचारो से परहेज रखने लगी नेकपा की सरकार ने विरोधियाें को दुश्मन के रूप मे ं लेना शुरु कर दिया है । परंतु आज के दिन में नेकपा के भीतर ही वाक युद्घ या कहें तो शक्ति प्रदर्शन वाली शीत युद्घ ने जन्म ले लिया है । हालाँकि यह कोई अकल्पनीय प्रगति नहीं है । कहा जाता है कि जहाँ संगठन मे व्यक्ति हावी हो तो संगठन मे रहे लोकतान्त्रिक विचारधारा वाले कार्यकर्ताओं में विद्रोही भावना उत्पन्न होना लाजमी होता है । आज नेकपा के भीतर भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है । नेकपा के वरिष्ठ एवं पूर्व प्रधानमन्त्री माधव नेपाल ने भरी संसद मे रोस्टम से खुद की पार्टी की सरकार का विरोध किया । उन्होंने कहा कि देश डूबने की कगार पर आ खड़ा है । देश में हत्या, हिंसा और बलात्कार की घटनाएँ दिनानुदिन बढ़ रही है । इतना ही नही उन्होंने चाय के बहाने पार्टी कमिटी की बैठक भी रखी थी अपने नेतृत्व में । और जमीनी स्तर के नेकपा कार्यकर्ता खासकर जो माधव नेपाल के समीप के हैं उन्हें भी ओली तानाशाह दिखाई देते हैं । प्रदेश स्तर हो या स्थानीय सरकार में ओली समीप रहे नेता एवं कार्यकर्ता में दम्भ ही दम्भ नजर आ रहा है ।

राजनीति के इस बिन्दु मे सबसे मजे में हैं नेकपा के पुष्पकमल दहाल । और उनका कसरत भी देखने लायक है । बामदेव गौतम और माधव नेपाल से दिल्लगी वैसे ही नही बढ़ी है नेता दहाल की । खुद ही छापामार युद्घ के इतिहास रचयिता रह चुके पुष्पकमल इस बार नेकपा पर धावा बोल दे तो आश्चर्य नही लगना चाहिए । समय समय पर ओली सरकार की आलोचना करना पुष्पकमल का धर्म नही अपितु रणनीतिक वाक् के रूप में लेना चाहिए । पार्टी के एकल मुखिया बनने की चाहत पुष्पकमल मे होना अस्वभाविक नहीं हो सकता । जनयुद्घ काल से लेकर पिछले समय तक एकलौते ढंग से पार्टी चलाने का स्वाद चखे दहाल कैसे भला किसी के नेतृत्व तले रह सकते हैं ?
जिस वक्त माधव नेपाल का क्रियाकलाप नेपाल में जारी था उस वक्त देश के प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली कोस्टारिका में थे । अर्थात विदेश भ्रमण में । परंतु स्वघोषित विद्वान और नेपाल मे राष्ट्रवाद के एकल व्याख्याकर्ता ओली ने वहीं से निशाना साधा और माधव नेपाल को जबाव देने से पीछे नही पड़े । मतलब उनका सारा कन्सन्ट्रेसन था नेपाल में । उसमें भी पार्टी के आन्तरिक मामले मे केन्द्रीयकृत ।

अब आगे क्या ?
देश अभी प्रतिपक्ष विहीन है । राजनीतिक मुद्दो पे विपक्ष कहलाने वाली नेपाली कांग्रेस के भीतर रहे विवादों के कारण् विपक्ष की भूमिका खेलने में असफल है । कभी गोबिन्द केसी का आन्दोलन तो कभी किसी दूसरे के एजेण्डों को अपना एजेण्डा समझ कर आन्दोलन करने से ज्यादा उनकी औकात आज के दिन में कुछ नही है । देश मे अभी बढ़ रही राजनीतिक स्वेच्छाचारिता और अपराध बढ़ोत्तरी का एक दोषी कांग्रेस भी है ।
और जैसा कि अभी नेकपा के भीतर विवादाें का बबंडर जारी है । स्वभाविक रूप में कार्यकर्ता निराश हैं । कार्यकर्ता निराश होने का मतलब होता है पार्टीद्वारा निर्देशित योजना जनता तक लागु न होना । और वैसा न होने पर आम जनता में निराशा की परिधि बढ़ जाती है और लोग आन्दोलित हो जाते हैं । तो क्या दो तिहाई वाली सरकार जनता ने चुनने के बाद भी देश मे विद्रोह ही होना था ? ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए । जमीनी सतह पर लोगाें से बात करके यह पता चलता है कि कुशल नेतृत्व की क्षमता रहे पुष्मकमल दाहाल को पार्टी का नेतृत्व ले लेना चाहिए । प्रधानमन्त्री बनकर देश चलाने का अनुभव वरिष्ठ नेता माधव कुमार नेपाल के पास भी है । अब वक्त आ गया है की ओली एण्ड कम्पनी के इतर रहे नेकपा के नेताआें को ओली के विकल्प की तलाश शुरु कर देनी चाहिए । और अभी तक जनता को कुछ नही दे पाने वाली ओली सरकार को भी बस पार्टी सुदृढ़ीकरण में लगना चाहिए । क्योंकि जनता को सपना दिखाना आसान होता है । और सपना अगर पूरा नहीं हुआ तो वही जनता विद्रोही हो देश को अस्थिर बना देती है । बल कामरेड पुष्पकमल और माधव के हाथ में है । चाहे तो वे देश को डूबने से बचा सकते हैं ।



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