भारत में जल संकट : योगेश मोहनजी गुप्ता
योगेश मोहनजी गुप्ता, मेरठ । प्रकृति के पंचतत्वों में से एक तत्व जल हमारे जीवन का आधार है। जल के बिना किसी के भी जीवन की कल्पना करना असम्भव है। जल की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कवि रहीम जी ने कहा है – रहिमन पानी राखिये बिना पानी सब सून। पानी गये न उबरै मोती मानुष चून। अर्थात् जल नहीं तो कुछ नहीं। जल की महत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विश्व में जितनी भी सभ्यता विकसित हुई वो किसी ना किसी नदी के किनारे ही विकसित हुई तथा अधिकांश प्राचीन नगर भी नदी के किनारे ही स्थित हैं।
भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है। अतः स्वभाविक है कि शुद्ध जल की आवश्यकता भी भारत को चीन के बाद सर्वाधिक होगी। परन्तु आज हमारा देश भारत शनै-शनै शुद्ध जल अर्थात् पीने के पानी की उपलब्धता के संकट की ओर बढ़ रहा है। जो देश विश्व में अत्यन्त पावन गंगा, यमुना, सतलुज, ताप्ती, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी, शारदा जैसी नदियों के लिए जाना जाता था, आज वही देश पीने के पानी के अकाल की ओर अग्रसर हो रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में लगभग 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है।
राजस्थानी राजाओं के द्वारा किया गया जल प्रबन्धन सम्पूर्ण भारत के साथ-साथ विश्व प्रसिद्ध हैं। राजस्थान के हिन्दू राजा जब शहर बसाते थे तो वहाँ पहले जल की व्यवस्था करते थे, जैसे – जयपुर में जल महल, उदयपुर भी झीलों के कारण सम्पूर्ण विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता है। राजस्थान के अन्य शहरों में भी अनेको झीलें बनाई गई थी। वहाँ के गांवों तथा शहरों में वर्षा जल को नियन्त्रित करने के लिए बागड़ी, नाड़ी, तालाब, बन्धा, जोहड़, सरोवर आदि का निर्माण होता था। इससे पता चलता है कि वो जल का कितना महत्व समझते थे। अतीत में राजस्थान से इतर अन्य प्रदेशों में भी वर्षा के जल को नियन्त्रित करने के लिए झोड़ अथवा तालाब आदि का बड़ी संख्या में निर्माण किया जाता था, जिसके जल से नागरिक सम्पूर्ण वर्ष अपने दैनिक क्रिया कलापों की पूर्ति करते थे। उस समय ट्यूब वैल, हैन्डपम्प अथवा समरसिबल आदि जल का अनावश्यक दोहन करने वाले साधन उपलब्ध नहीं थे। शनै-शनै समय परिवर्तन के साथ-साथ विज्ञान की प्रगति के फलस्वरूप जनता ने अपने पूर्वजों के मार्ग को भुलाकर पृथ्वी के जल का ट्यूबवेल और मोटर पम्पों के माध्यम से अनावश्यक रूप से दोहन प्रारम्भ कर दिया, जो कि एक अप्राकृतिक कार्य है। विज्ञान के प्रसार ने मनुष्य का जीवन इतना सरल बना दिया है कि उस सरलता के कारण मनुष्य अपने भविष्य की चिन्ता छोड़ चुका है। वर्तमान में मनुष्य ने पृथ्वी के जल का दोहन कर उसे बड़े-बड़े टेंको में एकत्र कर पाइप लाइनों द्वारा उसे घर-घर पहुँचा दिया है। जहाँ अतीत में एक बाल्टी पानी के लिए स्त्रियाँ 30-40 किलोमीटर तक पैदल जाती थी, वहीं आज जल की उपलब्धता घर-घर सहज ही हो गई है। जल की उपलब्धता आसानी से होने के कारण जो परिवार एक बाल्टी पानी में काम चलाता था, वो अब असीमित पानी का प्रयोग कर उसे बर्बाद कर रहा है। अब मनुष्य ने जल की सहज उपलब्धता के कारण जल संचय के विषय में सोचना बंद कर दिया है और अब उनका केवल एक ही ध्येय है कि पानी को किस प्रकार बर्बाद किया जाए।
संसार में हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है। इसी प्रकार प्रकृति भी अपनी बर्बादी से रुष्ट होकर स्वयं प्रतिक्रिया आरम्भ कर देती है और जब प्रकृति ऐसा करती है तो हाहाकार प्रारम्भ हो जाता है, जिसका सामना करना असम्भव होता है। प्रकृति का ऐसा ही रूप सर्वप्रथम चेन्नई में देखने को मिला, जहाँ पर पृथ्वी का जलस्तर लगभग शून्य हो चुका है। वहाँ की जनता के पास जल दोहन करने के लिए कुछ नहीं शेष है। वहाँ की स्थिती इतनी भयावह हो चुकी है कि वहाँ की जनता कई-कई दिनों के पश्चात नहाने के लिए भी तरस रही है। इस दिशा में अध्ययन कर रहें विशेषज्ञों का यह मानना है कि आगामी कुछ वर्षो में भारत के और कई बड़े शहर जैसे – दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, चण्डीगढ़ आदि, चेन्नई जैसी भयावह स्थिति तक पहुँच जाएंगे। यदि जल संरक्षण की दिशा में कोई ठोस उपाय नहीं किए गए तो शीघ्र ही भारत जल संकट की ओर अग्रसर हो जाएगा। यदि इसी प्रकार जल का अनावश्यक दोहन होता रहा तो स्थिति इतनी गम्भीर हो जाएगी कि पड़ौसी, पड़ौसी से जल के लिए युद्ध करेगा या थोडे़ से जल के लिए लोग लम्बी-लम्बी कतारों में खड़े होगें। जल को प्राप्त करना सभी की प्राथमिकता बन जाएगी।
अभी समय है भारत की केन्द्र और राज्य सरकार को भावी जल संकट के विषय में गहन चिन्तन करना ही होगा। प्रकृति से प्राप्त वर्षा के जल की एक-एक बूंद का संचय करना होगा। हमें अपने पूर्वजों से सीख लेकर हर गाँव और शहर में जलाशय बनाने होगें, जो जल का संचय करने के साथ-साथ कुछ समय पश्चात जनता के लिए पिकनिक स्पाट भी बन जाएगे। सरकार और निगम अपने-अपने नागरिकों को वर्षा जल के संचय के लिए अवश्य प्रेरित कर रहें हैं परन्तु यह बहुत छोटा सा प्रयास है। सीवर के जल को रिसाईकिल कर किचन गार्डन में कपड़े धोने एवं नहाने के लिए आसानी से पुनः उपयोग लाया जा सकता हैं। इससे भारी मात्रा में जल का पुनः उपयोग होगा और जल संरक्षण भी हो जाएगा।
निगमों और विकास प्राधिकरणों को पानी की पुरानी लीक करती हुई लाईनों को अविलम्ब ठीक करना होगा और नागरिकों को कम से कम जल का उपयोग करने के लिए शिक्षित करना होगा। जहाँ-जहाँ भी जल का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, यथा – स्कूल, काॅलिज, फैक्ट्रीयों, कार्यालयों आदि, वहाँ के लोगों को शिक्षित करना अतिआवश्यक है। जल संरक्षण के लिए भारत यदि अभी भी नहीं जागता है तो कभी नहीं जाग पाएगा, क्योंकि जब जल ही नहीं होगा तो उसका संरक्षण कैसे होगा। केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह जल संरक्षण के लिए जल संरक्षण मंत्रालय के नाम से एक स्वतंत्र निकाय बनाए, जिसका कार्य जल संरक्षण तथा जल की बर्बादी को नियन्त्रित करना होगा। प्रदूषित जल का उचित उपचार करके उसे पीने योग्य बनाना होगा। भविष्य में सरकार को जल प्रबंधन एवं शोध कार्यो के लिए निवेश बढ़ाना होगा।

चेयरमैन
आई आई एम टी यूनिवर्सिटी
मेरठ
भारत
*योगेश मोहनजी गुप्ता*
कुलाधिपति
आई आई एम टी यूनिवर्सिटी
मेरठ
