अपनी बेबसी को ख़ामोशी में दबाये बैठा है मन : पूनम पंडित
‘कितने तूफानों को सीने में छुपाये बैठा है मन ,
कितने अश्कों को मुस्कानों में सजाए बैठा है मन।
इस खामोशी को कोई ‘ खता ‘ ना समझ लेना ,
अपनी बेबसी को ख़ामोशी में दबाये बैठा है मन।
कहने को तो बहुत कुछ है इसके पास भी ,
अपने ज़ज्बातों को सीने में छुपाये बैठा है मन।
रिश्तों की मर्यादाएँ कहीं टूट ना जाए ,
अपने अल्फाजों को होंठों में दबाए बैठा है मन।
सब्र का इसके , अब और इम्तहाँ ना लेना ,
‘सब्र के पैमाने’ को बामुश्किल दबाये बैठा है मन।
ये ‘ ज़ाम सब्र का ‘ गर छलक जो गया ,
आ जाए ना कयामत , सैलाब रोके बैठा है मन।


— पूनम पंडित —



