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दर्जन से ज्यादा एलबम निकाल चुके और २ सौ से ज्यादा गीतो में स्वर दे चुके गायक सुरेशकुमार मेलोडी किङ्ग के रुप में भी जाने जाते हैं। दार्जिलिङ् में जन्मे सुरेशकुमार,



गायक सुरेशकुमा

जीवन में जैस भोगा गया है, उसी को अपने गीतों में दिखाना चाहते हैं। उन के अधिकांश गीत प्रेम में आधारित हैं। उन्हीं गायक सुरेश कुमार के साथ हिमालिनी प्रतिनिधि जी. न्यौपाने द्वारा हर्ुइ बातचित का सारसंक्षेपः-
० कैसे-कैसे गीत आपने गाएं हैं
– मैंने जीवन जगत के बारे में ही गाए है। विशेष कर प्रेम-मिलन और विरह के गीत मैंने गाएँ है। श्रोताओं की भावना को ध्यान में रखते हुए जो गीत बनते हैं, गाए जाते है, वे मुझे बहुत भाते हैं। अभी तक मेरे तेरह सोलो एल्बम बाजार में आ चुके हैं। यिन में अधिकांश गीत विरह से सम्बन्धित हैं। इसके अलावा देशप्रेम और धार्मिक गीत भी मैंने गाया हैं।
० गायन क्षेत्र में रह कर परिवार को कैसे समय देते है –
– गायन मेरी रुचि का क्षेत्र है, इसलिए मेरा अधिकांश समय इसी में बीतता है। जिसके कारण परिवार को कम ही समय दे पाता हूँ। गायन के साथ मेरे एक प्रकार की खुशी और स्वार्थ भी जुडÞा है। इस स्वार्थ के कारण कभी तो लगता है कि मैं मेरे परिवार से दूर तो नहीं जा रहा हूँ – गीत-संगीत सम्बन्धी कार्यक्रम में सहभागी होने के लिए बाहर जाते समय मैं सोचता हूँ कि मेरे परिवार इससे ही दुःखी तो नहीं है। लेकिन यह मेरी बाध्यता है। जो हो, मैं परिवार को खुश रखने के लिए प्रयास करता हूँ।
० कलाकार होकर जीना कितना सहज है –
– अभी तो कलाकारिता में जातिवाद भी हावी हो रहा है। हम लोग एक-दूसरे जाति को सम्मान करते हंै, -ऐसा कहा जाता है। लेकिन व्यवहार में वैसा नहीं दिखाई देता। जिस का असर कलाकारिता क्षेत्र में भी पडÞ रहा है। दूसरी बात, कलाकार होने पर लखपति बन जाएंगे और चर्चित भी होंगे, ऐसी आमधारणा है। इसी धारणा के कारण कुछ पैसवाले कलाकार बनने में भी सफल हुए हैं। लेकिन ऐसी धारणा गलत है। अगर कोई प्रतिभावान कालाकार है तो वह अपने कलाकारिता के माध्यम से भी जीवन निर्वाह कर सकता हैं।
० काठमांडू की व्यस्त गलियों में संगीत यात्रा कैसे चल रही है –
– मैं थोडेÞ में भी खुश रह सकता हूँ। घमण्ड में फूलकर कुप्पा हो जाना मुझे अच्छा नहीं लगता। व्यस्तता की भीड में मैं अपने सन्तोष के लिए कुछ न कुछ ढूंढÞ लेता हूँ। जैसे सामाजिक काम में लगने पर मुझे सन्तोष मिलता है। समाज सेवा करने पर लगता है मैं कुछ कर रहा हूँ। स्वाभाविक रुप से गर्व की अनुभूति होती है। मैं चाहता हूँ, सामाजिक क्षेत्र में भी मेरी पहचान हो।
० सामाजिक कार्य में आप अपने को कैसे व्यस्त रखते है –
– गायन क्षेत्र ही मेरी सामाजिक सेवा है। गीत गाकर संकलित रकम को क्यान्सर तथा अन्य रोग से पीडिÞत रोगी की सेवा में लगाता हूँ। इस व्यस्त शहर में ऐसे सेवामूलक कार्य करते समय एक ओर आनन्द की अनुभूति होती है तो दूसरी ओर मरणासन्न लोग कुछ राहत अनुभव जरुर करते है।
० आप के कौन-कौन से गीत चर्चित हैं –
– ‘आइ मिस यू एभ्री सिङ्गल डे’, ‘प्रिय त्रि्रो सम्झनामा’, ‘तिमी मेरो जिन्दगीको किरण’, ‘आऊ-आऊ मेरो अङ्गालोमा’, ‘गाजलुले आँखा छोप्ने’ आदि दर्जनों गीत चर्चित हैं। इन में संगीत भी मैंने ही दिया है।
० क्या आप चलचित्र के लिए नहीं गाते –
– हाँ, मैंने ‘मृग तृष्णा’ नामक एक नेपाली कथानक चलचित्र में गीत गया है। तुलसी घिमीरे द्वारा निर्देशित उक्त चलचित्र में गीत कैसा हुआ वह मैंने देखा नहीं है। चलचित्र में पात्र के मनोभाव को ध्यान में रखकर गाना पडÞता है। इसलिए उस में कुछ समस्याएँ आती हैं। फिल्मों में गाने के लिए खुद प्रयास करना मुझे अच्छा भी नहीं लगता।
० गायकी की के क्षेत्र में प्रेम प्रस्ताव आते है –
– इस क्षेत्र में प्रेम प्रस्ताव बहुतेरे आते हैं। मैं खुद अपने को नियन्त्रित रखता हूँ, इसीलिए आज मैं इस जगह तक पहुँच सका हूँ। सामान्यतया बहुत सारे लोग मुझे चाहते है।
० गायकी के क्षेत्र में प्रवेश करनेवालों को आप क्या कहना चाहते है –
– वैसे कहने के लिए यह क्षेत्र आकर्ष है लेकिन इसके भरोसे जीवनयापन करना सहज नहीं है। इसका बाजार छोटा-मोटा है। नये कलाकार के लिए तो तीव्र प्रतिस्पर्धा मुँहबाए खडÞी है। स्थापित कलाकार के लिए तो जब अनेक समस्याएं है तो नये की बात ही क्या है ! लेकिन प्रतिभावान कलाकार अपनी राह बना सकता है।



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