स्याही सिसकती, जलती है, औ तभी कलम भी चलती है : उषा चैनवाला
* चाल कलम की*
माने न माने यह गलती है,
कभी कभी ही कलम चलती है ।
किसी की ख़ाली थाली में,
रोटी जब कम होती है ।
विवश कुछ न कर पाने से,
आँखें जब नम होती हैं ।
तब पीड़ा आग उगलती है,
औ तभी कलम भी चलती है ।
खा जाते बच्चों का दूध,
नेता बेशरमी से जब ।
या हमें बनाते पंडे-
मूरख हठधर्मी से जब ।
इक वहशी नज़र निगलती है ,
औ तभी कलम भी चलती है ।

या फिर कोई अकेला ही,
दुर्भाग्य से लड़ता है ।
चलें गोलियाँ सीमा पर,
और सुहाग उजड़ता है ।
घायल कविता निकलती है,
औ तभी कलम भी चलती है ।
बैंकों को लूटे कोई,
अरबों का क़र्ज़ लेकर ।
भाग जाये छोड़ कर फिर,
देश को ही मर्ज़ देकर ।
स्याही सिसकती, जलती है,
औ तभी कलम भी चलती है ।
मानें न मानें यह गलती है ।
