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एक आदर्श राजा आदर्श समाज और आदर्श राज्य की स्थापना करने वाले प्रभु श्रीराम’ केवल राम नहीं वल्कि तुलसी के राम हैं।



कभी कभी मेरे मन में रह रह कर यह विचार आते हैं कि यदि इस युग में तुलसी दास जी जैसा कवि न होता तो क्या होता।
राम राज्य की स्थापना करने वाले समाज का निर्माण कौन करता।
समाज के लिए आदर्श स्थापित कौन करता। कैसे निर्माण होता उत्तम चरित्र का मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने जिस रामराज्य की स्थापना की तुलसी दास जी ने उस परिकल्पना को अपने काव्य के द्वारा समाज को देकर मानव जाति पर जो उपकार किया है उसके लिए सम्पूर्ण सृष्टि उनकी आभारी रहेगी।

क्योंकि आदिकवि बाल्मीकि जी ने प्रभु श्रीराम का वर्णन देववाणी संस्कृत में किया जो आज के समय में वाचन व रुचिकर नहीं है जितना आनंद तुलसी दास जी द्वारा रचित प्रभु श्रीराम के सुन्दर चरित्रों को पढ़ने और सुनने में आता है।

तुलसी दास जी ने प्रभु श्रीराम को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। अपने भगवान श्रीराम का
बालक के रूप
विद्यार्थी के रूप
भक्त के रूप में
पुत्र के रूप में
भाई के रूप में
पति के रूप में
सखा के रूप में
स्वामी के रूप में
सेवक के रूप में
संन्यासी के रूप में

इन सभी रूपों के अलावा जिस जिस ने जिस जिस रूप में श्रीराम को देखा तुलसी ने अपने प्रभु श्रीराम को उसी रूप के साक्षात दर्शन कराए।

जाकी रही भावना जैसी।
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।।

तो वहीं तुलसी समस्त संसार को सीता राम मय स्वरूप में देखते हुए कहते हैं
सीय राम मय सब जग जानी।
करहुं प्रणाम जोर जुग पानी।।

कवि तुलसी ने संसार सागर से पार पाने के लिए श्री राम नाम रूपी वैतरणी का वर्णन करते हुए भव सागर से पार जाने का सुन्दर मार्ग दिखाया है
वो कहते हैं
जासु नाम सुमिरत एक बारा।
उतरहिं नर भव सिंधु अपारा।।

तुलसी दास जी राम को ही अपना सब कुछ मानते हुए कहते हैं

मोरे प्रभु तुम गुरु पितु माता।
तुमहिं छोडि कह पद जल जाता।।
वहीं तुलसी हर कार्य में प्रभु श्रीराम की इच्छा को मानने हुए कहते हैं

प्रभु की कृपा भये सब काजू।
जन्म हमार सफल भये आजू।।

जो जीवन भर अपने स्वामी से कोई मांग नहीं करता वह आदर्श तुलसी दास जी मे है वह केवल चरणों की सेवा का वरदान चाहते हैं।
मोहि न चाहिए कबहुं कुछ,
प्रभु सन सहज स्नेह।।

सेवक सो जो करे सेवकाई।

सेवक सुख चह मान भिखारी।

तुलसी दास जी ने प्रभु श्रीराम को अपना स्वामी, सखा, माता पिता, गुरु व संसार के सभी रिश्तों को राम जी से जोड़ दिया
इसीलिए तुलसी दास जी कहते हैं
उमा राम सम हित जग माहीं।
गुरु पितु मातु बंधु कोऊ नहीं।।

तुलसी दास जी ने प्रभु श्रीराम को अपना स्वामी माना वहीं आदर्श राजा आदर्श समाज और आदर्श राज्य की परिकल्पना को साकार करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के सुन्दर चरित्रों को महाकाव्य के रूप में देकर मानव जाति पर विशेष उपकार किया है
जिस राम राज्य की परिकल्पना तुलसी ने की वह
बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि जप जेतनेहिं काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के काज।।

तुलसी ने प्रभु श्रीराम के रूप में परमब्रह्म परमात्मा के सुन्दर स्वरूप के दर्शन कराए हैं

तुलसी के राम

नील सरोरुह नील मणि,नील नील घन श्याम।
तन परि हरि सोभा निरखि, कोटि कोटि सत काम।।

तुलसी जब राम के स्वरूप का वर्णन करते हैं तो उनके सामने करोड़ों करोड़ों कामदेव भी लज्जा को प्राप्त होते हैं।

जब एक भक्त अपने आदर्श स्वामी श्री राम जी के बालक,सखा, भाई, माता पिता, गुरु और मर्यादा पुरुषोत्तम राजा के रूप में सुन्दर व आदर्श चरित्र संसार के समक्ष प्रस्तुत करता है।
वैसा हर किसी के बस की बात नहीं है।
संसार में इस प्रकार की अनन्य भक्ति भावना तुलसी के अलावा कहीं दूसरी जगह नहीं मिल सकती।

राम के स्वरूप में स्वामी और तुलसी के रूप में भक्त यह अनूठा और अद्भुत संयोग ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम चन्द्र जी को

‘तुलसी के राम’ के रूप में अवतरित करता है।

कवि दिनेश सिंह सेंगर
अम्बाह मुरैना मध्यप्रदेश, भारत

 



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