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क्या विभाजन से बच गया नेकपा ? : लीलानाथ गौतम


हिमालिनी  अंक जुलाई 2020 ।आषाढ़ १४ गते मदन भण्डारी जयन्ती के अवसर पर सत्ताधारी दल नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (नेकपा) की ओर से एक कार्यक्रम आयोजित था । कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि भारत उनको प्रधानमन्त्री से हटाना चाहता है और इसके लिए पार्टी के ही नेतागण सरकार के विरुद्ध प्रयोग में आ रहे हैं । ओली का संकेत पुष्पकमल दाहाल प्रचण्ड और माधव नेपाल समूह की ओर था । प्रधानमन्त्री ओली द्वारा व्यक्त विचार राजनीतिक वृत्त में आलोचना का विषय बन गया । सिर्फ अन्य पार्टियों के भीतर ही नहीं, स्वयम् नेकपा के भीतर भी ओली–कथन विरुद्ध आवाज उठने लगी, यहां तक कि प्रधानमन्त्री ओली समूह में रहे नेतागण भी कहने लगे कि प्रधानमन्त्री का कथन ठीक नहीं है ।

इसी बीच पूर्व प्रधानमन्त्री तथा नेकपा अध्यक्ष प्रचण्ड ने ओली से कहा कि आप को भारत नहीं, हम लोग हटाना चाहते हैं । यही से विकसित दो समूह के आरोप–प्रत्यारोप के कारण राजनीतिक वृत्त में नेकपा पार्टी विभाजन, सरकार द्वारा संकटकाल घोषणा, संसद विघटन, मध्यावधि चुनाव जैसे विषयों में बहस होने लगी । लगता था कि लम्बे समय से जारी नेकपा–विवाद अब क्लाइमेक्स पर पहुँच गया है । राजनीतिक विश्लेषक कह रहे थे कि अब नेकपा में विभाजन निश्चित है । सिर्फ राजनीतिक विश्लेषकों के बीच में ही नहीं, स्वयम् प्रधानमन्त्री ओली और अध्यक्ष प्रचण्ड द्वारा सार्वजनिक अभिव्यक्ति ने भी स्पष्ट संकेत दिया था कि अब वे लोग एक ही पार्टी में नहीं रह सकते ।
विवादों के बीच में ही पार्टी सचिवालय बैठक आयोजन किया गया, फिर स्थायी समिति बैठक भी आयोजन किया गया । सचिवालय बैठक हो या स्थायी समिति बैठक, दोनों में प्रधानमन्त्री ओली अल्पमत में पड़ गए । प्रधानमन्त्री ओली की इच्छा विपरित बैठक आयोजन किया गया था, बैठक के पक्षधर प्रचण्ड–माधव समूह का एक ही उद्देश्य था कि ओली को प्रधानमन्त्री और पार्टी अध्यक्ष दोनों पद से हटाना है । इसके लिए ४५ सदस्यीय स्थायी समिति में ३० सदस्य प्रचण्ड–माधव समूह में हो गए, अर्थात् ओली विरुद्ध स्पष्ट बहुमत दिखाई दी । इतना होते हुए भी प्रचण्ड–माधव समूह ओली को नहीं हटा पाये । इसके पीछे कई कारण है, उसमें से महत्वपूर्ण एक कारण है– नेपाल की राजनीति में हरदम बिकनेवाला भारत–विरोधी राष्ट्रवाद ।

हां, प्रधानमन्त्री ओली ने खुद को बचाने के लिए भारत विरोधी राष्ट्रवाद को भरपूर उपयोग किया है । ओली ने स्पष्ट रूप में कहा था कि उनको भारत हटाना चाहता है और उसके लिए पार्टी के नेतागण ही प्रयोग में आ रहे हैं । विशेषतः पार्टी अध्यक्ष प्रचण्ड की ओर संकेत करते हुए उन्होंने ऐसा कहा था । उधर भारतीय टीभी चैनलों में भी प्रधानमन्त्री केपीओली के विरुद्ध काफी प्रचार–बाजी हो रही थी, ओली समूह के लिए उक्त प्रचार–बाजी ‘राम–वाण’ साबित हो गया । ओली समूह की ओर से प्रचारबाजी शुरु होने लगा कि प्रचण्ड भारतीय एजेण्ड बनकर चलखेल कर रहे हैं ।

उन लोगों ने यहां तक कहा कि भारतीय गुप्तचर विभाग में कार्यरत कर्मचारी प्रचण्ड को प्रधानमन्त्री बनाने के लिए नेपाल आ गए हैं । ओली पक्षधरों की इसी प्रचारबाजी को देखते हुए कई राजनीतिक विश्लेषकों ने प्रचण्ड को ‘भारतीय दलाल’ के रूप में प्रस्तुत करना शुरु भी कर दिया । इसीलिए खुद के पक्ष में बहुमत सदस्य होते हुए भी प्रचण्ड–माधव नेपाल समूह ओली को प्रधानमन्त्री से हटाने की मानसिकता से पीछे हटने के लिए बाध्य हो गए । क्योंकि प्रचण्ड नहीं चाहते हैं कि उनके ऊपर ‘भारतीय दलाल’ का आरोप लग जाए । लेकिन प्रचण्ड, माधव और झलनाथ भारतीय गुप्तचर से नहीं चीनी राजदूत के संपर्क में थे, कुछ ही दिनों के बाद ओली समूह का आरोप गलत साबित हो गया ।

बाजार में एक और हल्ला भी आया– प्रचण्ड–माधव समूह राष्ट्रपति पर महाअभियोग लगानेवाले हैं, महाअभियोग लगने के बाद राष्ट्रपति पद निष्क्रिय हो जाएगा और उपराष्ट्रपति को क्रियाशील कर प्रचण्ड–माधव समूह अपने स्वार्थ सिद्ध करने जा रहे हैं । उस समय ओली को लग रहा था कि अब प्रचण्ड–माधव समूह स्थायी कमिटी में रहे बहुमत सदस्यों के सहयोग से उनको प्रधानमन्त्री पद से बर्खास्त करेंगे और इसके लिए सभामुख और उप–राष्ट्रपति का सहयोग लिया जाएगा । क्योंकि सभामुख और उपराष्ट्रपति दोनों पूर्व माओवादी अर्थात् प्रचण्ड पक्षधर थे । कहा जाता है कि इसी डर से प्रधानमन्त्री ओली खुद पार्टी विभाजन की मनःस्थिति में पहुँच गए थे, जिसके चलते वह प्रतिपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के सभापति शेरबहादुर देउवा से मिलने के लिए गए थे । देउवा से मिलने के बाद चर्चा होने लगी कि प्रधानमन्त्री ओली पार्टी विभाजन कर रहे हैं और कांग्रेस के सहयोग से नयी सरकार बनाने की तैयारी में हैं । इधर प्रचण्ड–माधव समूह ‘भारतीय दलाल’ आरोपित होकर पार्टी विभाजन करने के पक्ष में नहीं थे । इसीलिए उन लोगों ने ओली को पुनः वार्ता के लिए दबाव दिया और तत्काल ओली को रोक लिया । इसतरह अन्तिम क्षण में आकर नेकपा विभाजन रुक गया है । वार्ता के दौरान ही स्थायी समिति बैठक कुछ दिनों के लिए स्थगित की गई है, इसमें तत्काल के लिए दोनों पक्ष राजी हो गए ।

आज आकर ओली समूह के भीतर नया विश्लेषण हो रहा है । वे लोग कहते हैं– ओली के सामने प्रचण्ड–माधव समूह ने आत्मसमर्पण किया है । उन लोगों का मानना है कि प्रचण्ड–माधव समूह की भारत–परस्त धार पराजित हो गयी है और ओली की राष्ट्रवादी धार ने जीत हासिल की है । लेकिन प्रचण्ड–माधव समूह इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है । उन लोगों का मानना है कि ओली को पार्टी विभाजन करने से हम लोगों ने रोक लिया है । स्मरणीय है, जब प्रचण्ड–माधव समूह ने प्रधानमन्त्री और पार्टी अध्यक्ष दोनों पद से इस्तीफा देने के लिए कहा, तब प्रधानमन्त्री ओली ने स्पष्ट कहा कि वह दोनों पद से हटनेवाले नहीं है, जो करना है कीजिए । जब ओली अपनी जिद पर कायम रहे, तब प्रचण्ड–माधव समूह भी सोचने के लिए बाध्य हो गए थे । चर्चा तो हो रही थी कि स्थायी कमिटी बहुमत से ओली को प्रधानमन्त्री से हटाया जाएगा, अगर ऐसा किया जाता था तो पार्टी विभाजन होना निश्चित था ।

ओली को प्रधानमन्त्री से हटाने के लिए विशेषतः अध्यक्ष प्रचण्ड अधिक सक्रिय थे । पार्टी एकीकरण होते वक्त किए गए सहमति अनुसार प्रचण्ड प्रधानमन्त्री होना चाहते थे, लेकिन पार्टी विभाजन नहीं चाहते थे । इसी बीच में नेकपा के भीतर चर्चा होने लगी कि अगर पार्टी विभाजन हो भी जाएगा तो आज प्रचण्ड समूह में दिखाई देनेवाले माधव नेपाल, झलनाथ खनाल, वामदेव गौतम जैसे नेता ओली समूह में ही जाएंगे । अर्थात् पूर्व एमाले ओली के पास और पूर्व माओवादी प्रचण्ड के पास होने की संभावना थी, जो प्रचण्ड के स्वार्थ के बिल्कुल विपरित हो जाता था । इसी बीच में नेकपा एमाले नामक पूर्व एमाले पार्टी पंजीकरण के लिए निर्वाचन आयोग में निवेदन भी दी गई । जिसके चलते प्रचण्ड समूह डरने लगे । अन्ततः प्रचण्ड तत्काल के लिए स्थायी समिति बहुमत से ओली को हटाने के लिए पीछे हट गए ।
इसीतरह पार्टी विभाजन को रोकने के लिए एक और पक्ष भी महत्वपूर्ण है । वह है– ओली और प्रचण्ड–माधव समूह में क्रियाशील नये पीढ़ी के नेतागण । जितना भी आरोप–प्रत्यारोप और संबंध में तिक्तता क्यों ना हो, दोनों गुटों के नये पीढ़ी और कार्यकर्ता पार्टी विभाजन के पक्ष में नहीं थे । पार्टी विभाजन रोकने के लिए नेकपा में स्थापित तीसरे समूह की सक्रियता उल्लेखनीय है । ओली और प्रचण्ड–माधव समूह में रहे कुछ नेता इकठ्ठा होकर कहा कि पार्टी विभाजन जैसे भी रोकना है, इसके लिए हम लोग कुछ भी करेंगे । इसी कथन के साथ नई पीढ़ी के कई युवा नेता काठमांडू, चितवन और झापा में पार्टी एकता के लिए अनशन पर बैठ गए । हां, इसी बीच में ओली और प्रचण्ड पक्षधर के कुछ कार्यकर्ता सड़क प्रदर्शन में उतर आए थे । उन लागों ने अपने–अपने नेताओं की पक्षधरता के साथ नारे–बाजी भी किया । लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उन लोगों को रोका गया । इन सारी घटना के बाद दोनों पक्ष पार्टी विभाजन पर सोचने के लिए बाध्य हो गए ।
जहां तक प्रचण्ड–माधव समूह ने ओली समक्ष आत्मसमर्पण करने की बात है, उसको देखना बाकी ही है । क्योंकि बैठक अधूरी है, अर्थात् स्थायी समिति बैठक में पुनः विचार–विमर्श होना बाकी है । कई नेता केन्द्रीय कमिटी बुलाने के लिए भी मांग कर रहे हैं । क्षणिक ही सही, ओली–प्रचण्ड आरोप प्रत्यारोप में नहीं हैं, दोनों नेता आपस में खुसुर–फुसर भी कर रहे हैं । जिसको देखते हुए प्रचण्ड पक्षधर कई नेताओं ने कहा है कि इसतरह दो नेता आपस में खुसुर–फुसुर करना है तो क्यों पार्टी में ‘महाभारत’ सिर्जना की गई ? उन लोगों का मानना है कि अब इसतरह पार्टी चलनेवाला नहीं है । स्थायी समिति बैठक से हो या केन्द्रीय कमिटी बैठक बुलाकार प्रधानमन्त्री ओली को पद से हटाना ही होगा । हां, आज भी बहुमत पक्षधर नेकपा के नेता ओली के पक्ष में नहीं है । उन लोगों का मानना है कि ओली के कारण ही पार्टी बदनाम हो रही है, अगर फिर भी उनको प्रधानमन्त्री में कायम रखेंगे तो आगामी चुनाव में भारी असर पड़नेवाला है । इसतरह पार्टी में ओली विरुद्ध बहुमत होते हुए भी प्रचण्ड–माधव समूह ओली को हटा पाएंगे या नहीं ? यह देखना बाकी है ।
प्रधानमन्त्री ओली ने पिछली बार कहा है कि पार्टी के भीतर जो विवाद है, वह आन्तरिक और स्वाभाविक भी है और प्रजातान्त्रिक अभ्यास भी । हां, कुछ हद तक तो यह सही भी है । अगर ऐसा है तो नेकपा विवाद के कारण ही समग्र राजनीति प्रभावित नहीं होना चाहिए । लेकिन प्रभावित हो रहा है । सिर्फ राजनीति में नहीं, सरकार संचालन संबंधी प्रक्रिया में भी सवाल खड़ा हो रहा है, प्रजातान्त्रिक मूल्य–मान्यता के प्रति आशंका की जा रही है । संवैधानिक विज्ञों का मानना है कि संवैधानिक प्रावधान और अभ्यास के विरुद्ध भी खेल हो रहा है । अगर नेकपा के आन्तरिक विवाद पार्टीगत है तो सरकार में उसको नकारात्मक प्रभाव क्यों पड़ रहा है ? यह अह्म प्रश्न है ।
ठीक है, नेकपा विवाद पार्टी का आन्तरिक विवाद है । लेकिन वही विवाद अगर पार्टी विभाजित करता है, वही विवाद देश में आपातकाल लगाने के लिए प्रेरित करता है, वही विवाद संसद् विघटन की ओर ले जाता है तो यह सिर्फ पार्टीगत विवाद ही नहीं हो सकता । यह तो आम जनता के लिए सरोकार का विषय है । हां, वर्तमान सरकार देश और जनता के लिए प्रभावकारी है या नहीं ? मूल प्रश्न यही है । अब नेकपा संबंद्ध नेता–कार्यकर्ताओं के इसमें सोचना होगा । क्योंकि ओली को हटाकर अगर कोई प्रधानमन्त्री बनते हैं तो वह नेकपा से ही बननेवाले हैं । इसीलिए आन्तरिक विवाद के नाम में जितनी बहस करें, उसका प्रभाव आम जनता में पड़ रहा है, स्वयम् नेकपा के लिए भी यह स्वथ्यकर नहीं है ।



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