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हिंदी जन-मन एवं तंत्र की भाषा होनी चाहिए- डा.चंद्रमणि ब्रहमदत्त

हाल ही में हिमालिनी दिल्ली ब्यूरो प्रमुख एस.एस.डोगरा ने प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ चंद्रमणि ब्रह्मदत्त जी से लम्बी वार्ता की. प्रस्तुत है बातचीत के अंश:
प्र: आपका लेखन के प्रति रुझान कब और कैसे विकसित हुआ?
मुझे विरासत में मिला क्योंकि मेरे पिताजी को भी लिखने का शौक रहा है घर का परिवेश उस तरह का रहा कि यह मुझे विरासत में मिला निसंदेह यह जो सारी चीजें हैं यह तभी हो पाती है जब कोई कोई ना कोई आपके आसपास या घर मैं होता है और मैं इस बारे में बड़ा सौभाग्यशाली रहा हूं कि यह चीज मुझे विरासत में मिली और इसको मैं आगे ले जाने का प्रयास कर रहा हूं लेखन के रूप में लेकिन लेखन के चीज को हमने कोशिश की कि आगे बढ़ाई जाए सभी को साथ लेकर चला जाए और तरीके से बढ़ाया जाए और जहां जो कमियां थी उनको दूर करने का प्रयास किया आज भी हमें ऐसा लगता है कि कहीं कोई कमी है तो हम उसको दूर करने का प्रयास करते हैं
प्र: आदर्श समाज निर्माण में साहित्यकार की क्या भूमिका हो सकती है?
आदर्श समाज के निर्माण में साहित्य क्या भूमिका हो सकती है निसंदेह बड़ी महत्वपूर्ण बात है कि जैसा समाज होगा तो जाहिर सी बात है कि ऐसा ही साहित्य होगा और जैसा साहित्य होगा ऐसा समाज होगा समाज की दुर्दशा और दशा को बनाने में सुधारने में साहित्य का और साहित्यकार का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है किस समय किस काल में कैसा साहित्य लिखा जा रहा है किस तरह का साहित्यिक आ जा रहा है वह एक साहित्यकार के ऊपर निर्भर है और समाज उसका कितना आत्मसात कर रहा है यह समाज पर निर्भर है लेकिन एक आदर्श समाज के निर्माण में साहित्यकार की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है वह अपनी कलम से उस तरह की रचना करता है या उस तरह से चलता है कि जिससे समाज सही तरीके से चल सके और जिससे समाज में रहने वाले लोगों के प्रतिमान स्थापित हो सके आदर्श स्थापित हो सके

प्र: अपनी लिखी पुस्तकों का ब्यौरा दें-किस विषय पर आपने अधिक लिखा है?
लेखन के आरंभिक काल में अगर देखा जाए तो मैंने छोटी-छोटी कहानी और कविता से शुरुआत की लेकिन पहली पुस्तक के रूप में मेरी पहली पुस्तक क्रांति की लपटे थी उसके बाद सिलसिला यूं ही चलता रहा उसके बाद कुछ उपन्यास आए कुछ कहानी संग्रह कुछ कविताएं आई जैसे उनके नाम लेना चाहूंगा मारिया रज्जो समय के पद चिन्ह पल-पल कर रहा है विद्रोह बुलंदशहर के साहित्यकार और हिंदी साहित्य कोश इतिहास कोश दर्शनशास्त्र कोश बायोग्राफी सोनिया जी की राहुल जी की मनमोहन सिंह जी की दीनदयाल उपाध्याय जी की और अभी कई पुस्तकें निकट भविष्य में आपके हाथों में होगी

प्र: आपको किन भारतीय साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त हुआ ?
डोगरा साहब मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं जिस गांव में पैदा हुआ या यूं कहें जिस क्षेत्र में पैदा हुआ वह साहित्यकारों की जन्मभूमि है जहां पर मेरे शहर में खुर्जा में श्री राधेश्याम जी कुंवर सुखलाल आर्य मुसाफिर अशोक चक्रधर धनंजय सिंह जी दीक्षित दनकोरी संतोष आनंद जी शिशुपाल सिंह निर्धनजी जगदीश चंद्र माथुर डॉक्टर चंद्रपाल शर्मा कुमार विश्वास जैसे अनेक अनेक उच्च कोटि के साहित्यकार वहां पर पैदा हुए उनकी बहुत लंबी लिस्ट है और जब मैं वहां से दिल्ली आया तो आचार्य निशांतकेतु जी प्रोफेसर नामवर सिंह जी सर बहुत सारी लंबी लिस्ट है लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी सर्वेश चंदौस आदरणीय मंगल नसीम जी बहुत सारे साहित्यकार हैं
प्र: आपके द्वारा स्थापित साहित्य संस्थाओं के नाम बताएँ ?
संस्थाओं की अगर हम बात करें तो स्थापित संस्थाओं की संख्या कम से कम 30 के आसपास में है लेकिन यहां पर साहित्यिक संस्थान की बात हो रही है तो दो संस्थान जो कि मेरे द्वारा स्थापित है श्री नामवर सिंह जी के नेतृत्व में नारायणी साहित्य अकादमी की स्थापना 5 फरवरी 1993 में की गई और इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल की स्थापना सन 2010 में की गई

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प्र: आपके द्वारा विश्व पुस्तक मेले में भागीदारी तथा अन्य साहित्य आयोजनों पर प्रकाश डालिए
विश्व पुस्तक मेला जो कि नेशनल बुक ट्रस्ट के द्वारा प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है उसमें हम लोगों की क्या भूमिका होती है क्याभागीदारी होती है जैसा कि आप जानते हैं कि इस विश्व पुस्तक मेला में हम पहले नारायणी साहित्य अकादमी की तरफ से पहले जब 2 वर्ष मैं मेला लगता था तो हम कार्यक्रम करते थे हिंदी भाषा अन्य भाषाओं के लिए और उसके बाद इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल से हिंदी भाषा और अन्य भाषा बोली के लिए समान रूप से काम करते हैं यहां पर भाषाएं बोली में कोई भेद नहीं है हम पूरा प्रयास करते हैं कि भाषा के साथ जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं उन पर काम किया जाए और जो भाषा अनुसूची में शामिल नहीं भी हैं उन पर भी काम किया जाए उनका प्रचार प्रचार किया जाए ऐसा प्रयास करते हैं और उसी के साथ हम विश्व पुस्तक मेला में साहित्यकार सम्मान समारोह और सर्वभाषा कवि सम्मेलन का भी हमेशा आयोजन करते हैं जिससे पूरे भारतवर्ष के जो हमारे साहित्यकार हैं वरिष्ठ साहित्यकार हैं भाग लेते हैं विशेष रूप से हम इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल में अपनी बहनों को सर्वोपरि रखते हैं
प्र: आपकी हिंदी एवं भारतीय क्षेत्रीय भाषाओँ के विकास में राष्ट्रव्यापी टीम का उल्लेख करिए
डोगरा साहब, मैं आपको एक बात स्पष्ट कर दूं कि इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल में जितने हमारे प्रदेश हैं उनकी जो प्रदेश अध्यक्ष हैं हमारी सारी बहनें है उन बहनों के तहत प्रत्येक राज्य में कमेटी गठित हैं जो कि अपना अपना काम कर रही है हमने एकबात कहीं इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल किसी भाषा किसी बोली किसी धर्म किसी संप्रदाय किसी का विरोधी नहीं है हम सभी को सामान्य रूप से साथ लेकर चलते हैं चलेंगे जैसे आप देखें कि अगर दक्षिण में हमारी बहनें काम कर रही हैं तो दक्षिण की जो मूल भाषा जैसे तमिल है कन्नड़ है मलयालम है तेलुगु है उनके साथ साथ हिंदी को भी हम लेकर चल रहे है उत्तराखंड में हम जा रहे हैं तो जौनसारी हैं गढ़वाली है कुमाऊनी उनके साथ हम हिंदी को साथ लेकर चल रहे हैं जम्मू में जाएंगे तो उर्दू के साथ हैं हम राजस्थान में तो हिंदी के साथ-साथ राजस्थानी में हरियाणा में हरियाणवी के साथ है तो मैं कहना चाहता हूं कि जैसे हिमाचल में हम जा रहे हैं डोगरी भाषा के साथ है पंजाब में हम पंजाबी भाषा के साथ हैं हम वहां की जो मूल भाषा है हम उसको बराबर साथ लेकर चल रहे हैं कहीं पर भी विरोध वाली कोई स्थिति नहीं है कि हमने किसी भाषा किसी बोली को किसी व्यक्ति पर थोपा हो हमें मां मौसी की तरह भाषा बोली का सम्मान करना चाहिए किसी भी भाषा को हम जितना ज्यादा सीखे वह हमारी योग्यता है हम अगर मान ले कोई व्यक्ति 4 भाषा सीख जाता है या उससे ज्यादा सीख जाता है और ज्यादा से ज्यादा भाषा सीख सकते हैं तो हम क्या कर रहे हैं कि हम अपनी जो हमारी सारी टीम हैं हम उस टीम के साथ-साथ जहां भी सारे राज्यों में हमारी बहनें प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपनी कमेटी के रूप में काम कर रही हैं वहीं पर वहां की जो मूल भाषा है बोली है हम उसको लेकर भी हिंदी के साथ काम कर रहे हैं
प्र: ऑनलाइन साहित्यिक आयोजन का क्या भविष्य है ?
जैसी स्थिति हो जैसा समय हो हमें उसके साथ से चलना पड़ता है और चलना भी चाहिए क्योंकि 2020 का जो समय था वह ऐसा समय था कि कार्यक्रम फेस टू फेस नहीं हो सकते थे मंच पर नहीं हो सकते थे तो विकल्प के तौर पर ऑनलाइन आयोजनों की व्यवस्था की गई लेकिन मेरा व्यक्तिगत मत है कि जो आनंद और जो रस कार्यक्रम को रूबरू करने में हैं मुझे ऐसा लगता है व्यक्तिगत रूप से ऑनलाइन कार्यक्रम करने में नहीं है हां हम ऑनलाइन कार्यक्रम से अपनी बात का बहुत दूर तक पहुंचा सकते हैं साथ ही साथ पहुंचा सकते हैं इससे एक फायदा यह जरूर है लेकिन यह मेरा अपना निजी विचार है लेकिन ऑनलाइन कार्यक्रम की आपने स्थिति जरूर देखी होगी कि हम अपनी बात को देश दुनिया तक पहुंचा रहे थे लेकिन सुनने वालों की और देखने वालों की यानी श्रोताओं और दर्शकों की संख्या नगण्य थी जोकि मुझे व्यक्तिगत रूप से ठीक नहीं लगी

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प्र: आज युवा पीढ़ी विदेशी भाषाओँ को सीखने के प्रति विशेष रूचि रखती है क्या इससे हिंदी भाषा का भविष्य संकट में जान पड़ता है ?
आज की युवा पीढ़ी विदेशी भाषाओं को पढ़ने के प्रति ज्यादा रुचि रखती है इससे हिंदी भाषा पर संकट हो सकता है हां इस प्रश्न को हम दो तरह से देखते हैं कि हमारे रोजगार की भाषा क्या है स्पष्ट बात कहिए कि आखिर हमारे रोजगार की भाषा क्या है युवाओं को हाथ में काम चाहिए रोजगार चाहिए या तो हिंदी हमारे कुछ अन्य देशों की तरह हमारे कामकाज की भाषा होती हमारे रोजगार की भाषा होती तो ज्यादा अच्छा होता चीन में चाइनीस भाषा को देखिए रसिया में रसिया भाषा को देखिए बहुत सारे ऐसे देश हैं जिनकी अपनी भाषा है लेकिन हमारे यहां पर आप देख रहे हैं आज भारतीय संविधान मैं आठवीं अनुच्छेद के अनुसार 22 भाषाएं हैं उसके बाद भी बहुत सारी भाषाएं उस सूची में आने के लिए संघर्ष कर रही है पक्ष या विपक्ष में कुछ भी नहीं कहूंगा लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि जो भाषा रोजगार की भाषा है कामकाज भाषा है खाना खाने की भाषा है उसको तो सीखना ही पड़ेगा यहां बात यह नहीं है कि हिंदी भाषा क्या प्रभाव पड़ेगा या नहीं पड़ेगा आदमी को ज्यादा से ज्यादा भाषा सीखनी चाहिए चाहे भारतीय भाषाएं हो चाहे विदेशी भाषाएं व्यक्ति कितनी भाषाएं जानता है लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि क्यों हम विदेशी भाषाओं की तरफ आकर्षित हो रहे हैं मुझे ऐसा लगता है कि रोजगार कामकाज की जो भाषा है हम उसकी तरफ स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं मैं उनके कारणों में नहीं जाना चाहूंगा कि आज भी अगर हम दक्षिण भारत में देखें पूर्वोत्तर भारत में देखें जम्मू कश्मीर में पंजाब में जाकर देखें तो वास्तविक तौर पर हिंदी भाषा की स्थिति कोई ज्यादा अच्छी नहीं है क्योंकि हमने हिंदी भाषा को रोजगार कामकाज की भाषा में नहीं रखा है अगर हिंदी भाषा को कामकाज की भाषा बनाया तो संभव है कि हम हिंदी भाषा को भविष्य के संकट से उबार सकते हैं हमने अगर आज भी हिंदी भाषा पर जोर दिया तो आज भी इसका भविष्य निकट भविष्य में उसका समाधान हो सकता है मैं किसी भी भाषा को सीखने सिखाने का विरोधी नहीं हूं भाषाएं प्रत्येक व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा आनी चाहिए चाहे वह विदेशी भाषा हो हिंदी भाषा हो सभी का अपना अपना रोल होना चाहिए स्वाभिमान सभी के साथ चाहिए गर्व के साथ होना चाहिए हिंदी भाषा को सितंबर माह में या 13 सितंबर को याद करके सरकारी कागजों में लिखकर जो व्यवस्था हो रही है हमें वह नहीं चाहिए जब तक हिंदी रोजगार कामकाज की भाषा नहीं होगी तब तक हिंदी के संकट को कोई नहीं बचा पाएगा ऐसा मेरा मत है

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प्र:हिंदी भाषा को राष्ट्रव्यापी स्तर पर लोकप्रिय बनाने तथा इसके प्रचार-प्रसार-विकास एवं उत्थान के लिए आप अपने सुझाव सुझाएँ
जब तक भारत में एक राष्ट्र एक भाषा एक विधान नहीं होगा तब तक बात नहीं बनेगी हम समस्त भाषाओं को साथ लेकर चलें लेकिन बहुत सारे राष्ट्रों की तरह हमें हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना ही होगा राष्ट्रभाषा के साथ-साथ वह हमें रोजगार और कामकाज की भाषा भी बनानी होगी जब तक रोजगार की भाषा कामकाज की भाषा हिंदी नहीं होगी तब तक वास्तविक रुप से इसका स्थान नहीं हो सकेगा हालांकि देश में बहुत सारी साहित्यिक संस्थाएं हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए काम कर रही हैं हम भी इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल के तहत हिंदी औरअन्य जो हमारी भाषा एवं बोलियां हैं सभी के लिए हम काम कर रहे हैं लेकिन स्पष्ट तौर पर वर्तमान का युवा इसकी तरफ आकर्षित होगा जब यह उसके कामकाज की भाषा होगी कार्यकी भाषा होगी और रोजगार की भाषा होगी जब युवाओं को यह लगने लगेगा कि हमारा भविष्य हिंदी भाषा पर निर्भर है तो तभी से युवा मानने लगेगा की आज से मुझे हिंदी भाषा के प्रसार प्रचार के लिए कार्य करना है दूसरा सरकारी दफ्तर में सरकारी प्रतिष्ठान पर ज्यादा से ज्यादा हिंदी के शब्दों का बढ़ावा दिया जाए पत्र लेखन में हिंदी भाषा का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाए और जो भी सार्वजनिक स्थान है उनका नामकरण स्पष्ट रूप से हिंदी भाषा में किया जाए

प्र: भारतीय होने नाते हिंदी भाषा का हमारे जीवन में क्या महत्व है
जिस तरह हम दुनिया के किसी भी कोने में रहे अपनी मां को नहीं भूल सकते अपनी जन्मभूमि को नहीं भूल सकते अपनी माटी को नहीं भूल सकते उसी तरह अपनी भाषा को भी नहीं भूल सकते जिस तरह हमारे अपने जीवन में हमारी मां का महत्व है हमारी जन्मभूमि का महत्व है वही महत्व एक भारतीय नागरिक होने के नाते हम सभी के जीवन में हिंदी भाषा का होना चाहिए हम सभी भाषा सभी बोलियों के हिमायती हैं हम किसी के विरोधी नहीं हैं लेकिन हमारा ऐसा मत है कि राष्ट्र की एक ऐसी भाषा जरूर होनी चाहिए जो राष्ट्र के प्रति व्यक्ति को लिखना पढ़ना बोलना आनी चाहिए इससे बड़ा महत्व और हमारे जीवन मैं क्या हो सकता है हिंदी जन जन की भाषा हो हिंदी मन मन की भाषा हो हिंदी तंत्र की भाषा हो.

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