वाह री जिन्दगी !
मुकुन्द आचार्य
यह जो है न
हमारी जिन्दगी
यकीनन यह है
खुदा की बन्दगी !
मगर
हम सबों ने मिलकर
इस में लवालब भर दी
गन्दगी !
बेशुमार गन्दगी !
नाकाबिलेबर्दाश्त बदबूदार गन्दगी !
वाह रे हम !
वाह री हमारी जिन्दगी !
आईए हम सब मिलकर
एक हाथ में दरियादिली
और दूसरे में नेकदिली
के झाडू लेकर
जिन्दगी की गन्दगी को साफ करें
गर कोई जानी दुश्मन भी हो तो
उसे तहे दिल से मुआफ करें
जिसे महसूस कर
आनेवाली नश्लें
कहने को मचल उठें
वाह री जिन्दगी !
प्यारी-प्यारी जिन्दगी !
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वो ताकत मेरे पास है
अपर्ण्ाा राँय
अपनी ना कोई पहचान है,
ना कोई इतिहास है।
आशाओं की, इच्छाओं की,
अधियारे में उम्मीद की,
इक जननी मेरे पास है।
लक्ष्य बस दिखता मुझे,
बाधा की अब चिन्ता नहीं।
कुछ कर गुजरने की चाह में,
जलता मेरा दिन रात है।
शान्ति की दरिया बहे
हवा का रुख भी साफ हो,
जगाऊँ इस जमाने को
मिटाऊँ इस अंधरे को
वह ताकत मेरे पास है।
मोडल मल्टिपल क्याम्पस, जनकपुर
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जिसने बहुत किया
उसने कहा, मैंने कुछ नहीं किया।
जिसने कम किया
उसने कहा, मैंने बहुत किया
जिसनेे कुछ नहीं किया
उसने कहा, मैंने कुछ नहीं किया।
काम ने अपना पैमाना छिपाया,
आदमी ने बता दिया।
-डा. हरिवंशराय बच्चन
‘पैमाना’ शीषर्क कविता से
बुरे दिन लखी ढिÞग कोयन आवम
सर-सम्बन्धी, भाई-भतीजा जो संग मौज मनायव।। -टेक
आये विपदिया कोई न पूछे, कन्नी काटी हुए पराये। बुरे दिन …
जब लगि रही जवानी दौलत
तिरिया पाँव दबावे।
गयी जवानी तिरिया रुठे,
मुँह हाथ चमकावे। बुरे दिन ….
सुनो ‘वरुण’ सुनाने आये,
यह रहस्य बतलावे।
मन से प्रभु का ध्यान करो,
सब विगडÞी बात बनावे।
बुरे दिन लखी ढिÞग कोयन आवम
सर-सम्बन्धी, भाई-भतीजा जो संग मौज मनायव।। -टेक
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गर नेता हो तो … !नेता वनके नेक न बना तो तेरा क्या इतिहास है –
बटवारे का जाल रचाया चारों तरफ उपहास है।।१।।
कल तक थे तुम अपनी जिद पर, मन पर न लगाम दिया
देश बनाना भूल गया, मानवता का अपमान किया।।२।।
अब जागृत जनता देख रही है तूं किसका पुजारी है
तुम अपने आपसे पूछो कौन बडा खिलाडÞी है।।३।।
नरक बनाकर देश नशाया, अब नहीं चलेगी मनमानी
नोकर हो तुम नब नेपाल के, देकर जा अपनी निशानी।।४।।
जब तक दम है, नहीं छोडूंगा चाहे तुम अपमान करो
जनता-जनार्दन की बात मान कर, उन का तुम सम्मान करो।।५।।
नरेश झा
अवकाश प्राप्त शिक्षक, श्री राजकीय संस्कृत मा. वि. मटिहानी, महोत्तरी