व्यक्तित्व भूले बिसरे राजापुरी : खगेन्द्र गिरि ‘कोपिला’
आप से नहीं बिछडे जिन्दगी से बिछड़े हैं
हम चिराग अपनी ही रोशनी से बिछड़े हैं
इस से बढ के क्या होगा सानेहा मुकद्दर का ?
जिस से भी मोहब्बत की हम उसी से बिछड़े हैं
प्रकाश राजापुरी का जन्म विक्रम संवत् १९९६ साल के भाद्र २३ गते को बर्दिया जिले के राजापुर कस्बा मे हुआ था । उनकी जन्म मिती को इस्वी सन् में रूपान्तरण करके देखें तो सन् १९३९ का सेप्टेम्बर ८ तारीख होता है ।
प्रकाश राजापुरी का वास्तविक नाम मिठ्ठनलाल गुप्ता था । नैष्ठिक वैश्य परिवार में जन्म होने के कारण वे बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक भाव से ओतप्रोत थे । उन्होने पड़ोसी देश भारत के बहराइच में अपनी पढाई प्रारम्भ की । लखनऊ से उन्होने एम. ए. किया और त्रिभूवन विश्व विद्यालय से उन्होने बीएड भी किया । अध्ययन समाप्ति के पश्चात प्रारम्भ में वे शिक्षण पेशा में आबद्ध हुए । वे राजापुर व टीकापुर क्षेत्र में अंग्रेजी के अच्छे शिक्षक के रूप मे प्रख्यात थे । उनकी लिखी हुई अंग्रजी ग्रामर को लोग आज भी याद करते हैं ।
प्रकाश राजापुरी साहित्य सृजना के माध्यम से सामाजिक सद्भाव व मानवतावादी भाव का उद्बोधन करते थे । वे प्रेम के पुजारी थे । मानवीय प्रेम उनका स्वर था । उनकी शेरो शायरी में लोग अपने हृदय की आवाज ढुंढते थे । राजापुरी की इन पंतिmयों को देखेंः
फूल शबनम में डूब जाते हैं
जख्म मरहम में डूब जाते हैं
जब कोई आसरा नहीं मिलता
हम अपने गम में डूब जाते हैं
लम्बे समय तक वे राजापुर में अध्यापन कार्य में सक्रिय रहे । विक्रम संवत् २०४६ साल के परिवर्तन के पश्चात नेपाल में शिक्षण पेशा भी राजनीति से आक्रान्त हो गया । शिक्षक व विद्यार्थी काँंग्रेस व कम्युनिष्ट के खेमें मे बँट गए । परन्तु प्रकाश राजापुरी का विशुद्ध साहित्यिक हृदय न काँग्रेस बन सका न कम्युनिष्ट । अन्ततः उन्होंने सरकारी विद्यालय से त्यागपत्र दे दिया परन्तु वे शिक्षण कार्य से विमुख नही हो सके । उन्होंने राजापुर में अपना अलग बोर्डिङ स्कूल खोला । वहाँ भी उनको व्यापारिक पार्टनरों ने डुबा दिया । अन्ततः हिमालय बुक डिपो नाम का किताबों की दुकान खोलकर वे व्यापार करने लगे और साहित्य सृजना में केन्द्रीत हुए ।
राजापुरी की बहु भाषा में पकड़ थी । वे हर क्षेत्र में प्रतिभा सम्पन्न थे । वे कवि थे, गायक थे, कलाकार थे एवं कुशल उद्घोषक भी थे । बड़े–बड़े मुशायरा व नौटंकी संचालन हेतु उन्हे दूर–दूर से आमन्त्रण मिलता था । उन्होंने अपने साहित्यिक गुरु नसिरुद्धिन नासिर के साथ मिलकर २०२५ साल में राजापुर में ‘महेन्द्र बज्म ए अदब’ नामक साहित्यिक संस्था की स्थापना की । इसी मञ्च से वे मुशायरे, नाटक, कब्बाली, नौटंकी करवाते थे । इस संस्था ने उनको ‘राजापुर का प्रकाश’ की उपाधि दी जिसके उपरान्त उन्होंने अपना नाम प्रकाश राजापुरी रख लिया । भारत के मुशायरे में वे अपने को ‘प्रकाश नेपाली’ के नाम से प्रस्तुत करते थे । हिन्दी में भजन लिख कर साहित्य में प्रवेश करने वाले प्रकाश राजापुरी ने यूँ तो अवधी और अंग्रेजी में भी कविताएँ लिखी और उर्दू और नेपाली मे शेरोशायरी की परन्तु उनको लोकप्रियता प्राप्त हुई मुशायरा से । वे मुशायरा सञ्चालन करने मे निपुण थे ।
नेपालगंज—बहराइच सीमाक्षेत्र के साहित्यकारों को एक से दूसरे देश में आने–जाने का सिलसिला उन्होंने ही प्रारम्भ करवाया । वास्तव में प्रकाश राजापुरी अपने नाम व काम से नेपाल में अपने जन्मस्थल राजापुर का नाम रोशन कर रहे थे और प्रकाश नेपाली के नाम से भारत में नेपाल का साहित्य दूत का काम कर रहे थे । अपने जीवनकाल भर उनका यह योगदान अनवरत रहा ।
‘ठहरे हुए पानी में फेका न करो पत्थर
चाँद का अक्श है लहरों में बिखर जाएगा’
प्रकाश राजापुरी ने शुरू में हिन्दी मे ‘प्रकाश भजनमाला’ नाम का भजन संग्रह प्रकाशित किया । उस के बाद ‘सुख दुःख’ नाम का उर्दू गजलों का सङ्ग्रह प्रकाशित किया । उन्होने अंग्रेजी मे दो कविता कृतियाँ भी प्रकाशित की । पहला था ‘द सङ्स फर दी कन्ट्री नेपाल’ और दूसरा था ‘ट्वाइन्टी फाइभ फ्लावर्स’ । हिन्दी और अङ्रेजी में अपना साहित्यिक परिचय बनाने के पश्चात प्रेम प्रकाश मल्ल की प्रेरणा से वे नेपाली में भी गजल लिखने लगे । विक्रम संवत् २०६२ साल में उनका ‘जीवनको मुस्कान’ नाम का नेपाली गजलों का संग्रह प्रकाशित हुआ । उन्होने अवधी भाषा मे भी फुटकर कविता लिखी परन्तु कोई संग्रह प्रकाशित नही किया ।
वे राष्ट्रवादी भावनाओं के कवि थे । देशप्रेम व मानवता उनके हृदय में कूट–कूट कर भरी हुई थी । उनके नेपाली भाषा में लिखे हुए शेरों मे यह भावना सुन्दर प्रकार से प्रतिबिम्वित होती हैः
आकांक्षाको नभमा म किन उडें प्रकाश !
आखिर यसै धरामा झर्नु प¥यो मलाई ! !
जसले दियो मलाई नेपाली हुने गौरव
के भो ? त्यो धरानिम्ति मर्नु प¥यो मलाई ।
नेपाल के अवधी समाज ने दो ओजस्वी साहित्यिक प्रतिभा को जन्म दिया । एक कपिलबस्तु के भवानी भिक्षु थे दूसरे बर्दिया के प्रकाश राजापुरी हैं । भवानी भिक्षु को तो देश ने पहचाना, काठमाण्डु ने कदर भी किया । कुछ पद व सुविधा भी उन्हें प्राप्त हुआ । परन्तु प्रकाश राजापुरी जीवनभर सरकार व काठमाण्डु की दृष्टि से दूर ही रहे । राजनीति से निरपेक्ष रहने के कारण विशाल सृजनात्मक क्षमता व उर्वरता होते हुए भी प्रकाश राजापुरी सदा उपेक्षित ही रहे ।
२०६७ साल वैसाख १५ गते ७१ साल की उम्र में पड़ोसी देश भारत के बहराइच शहर के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया । उनका अन्तिम संस्कार नेपाल लाकर गृह नगर राजापुर के निकट कर्णाली नदी के तट में हुआ । उनको गुजरे हुए एक दशक हो गया है परन्तु उनकी साहित्यिक सृजनाएँ जन–जन के मन में विद्यमान हैं प्रेम का अनमोल सुगन्ध बटोरकर । उन की ये पङ्क्तियाँ राष्ट्रप्रेम को सजीव रूप से अभिव्यक्त कर रहे हैंः
कर्म र इतिहासमा सम्बन्ध छोडिजाऊ
याद र व्यक्तित्वमा अनुबन्ध छोडिजाऊ
रहोस् हर मस्तिष्कमा, जो महक युगौंसम्म
चमनमा तिमी यस्तो सुगन्ध छोडिजाऊ
जसलाई पढोस् दुनियाँ सगर्व र श्रद्धाले
इतिहासको पानामा त्यो निबन्ध छोडिजाऊ
(आदर्शमार्ग वार्ड नं.१ नेपालगंज)