देश व दुनिया से अलग इस रूप में पूजते है शिव को महाशिवरात्रि महापर्व पर हिमाचल वासी
महाशिवरात्रि महापर्व हिंदुओ का सबसे लोकप्रिय व प्रमुख महापर्वों में से एक है । देश के विभिन्न भागों में जहां महादेव को लिंग रूप में एवं विग्रह रूप में पूजा अर्चना की जाती है वहीं हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में चन्दोआ ( सैईं ) के प्रतीक के रूप में महादेव को सजाकर पूजन करने की पुरातन परम्परा रही है ।
महाशिवरात्रि से एक दिन पहले 5 कुपुओं को ईशान कोण में स्थापित किये जाते है । उनको कुमकुम से विलेपन किया जाता है ।
महाशिवरात्रि वाले दिन प्रातः काल कुपुओं को शुद्ध जल से स्नान करवाकर उन्हें शुद्ध किया जाता है । तदुपरांत एक मोटे पक्के धागे में इन कुपुओं को पिरोया जाता है । कुपुओं के बीच में पाजे वृक्ष की पत्तियां एवं जौ के छोटे-छोटे कंद जोड़े जाते है । जो एक निष्कल शिवलिंग का प्रतीक माना जाता है । जब यह तैयार हो जाता है तो इसे फर्श पर ऊंचाई में एक छिद्र के माध्यम से धरातल की ओर लटकाया जाता है । जो आकाश व पाताल इन दो लोकों के ( प्रथम बार शंकर जी जब शिवलिंग रूप में कोटि सूर्य की कांति लेकर उत्पन्न हुए थे तब आकाश और पाताल के छोर में समाहित हो गए थे तो दोनों छोरों को वेद विशारद मुनि जन भी जान न सके) दिग्छोरों का प्रतीक माना जाता है । तदुपरांत आटे के बकरे बनाए जाते है । पाजा वृक्ष की छोटी-छोटी टहनियां ईशान कोण में पूजन हेतु रखी जाती है ।
हिमाचल के कई भागों में भिन्न-भिन्न परम्पराओं के चलते आधा व पूर्ण चन्दोआ बनाने की परम्परा रही है । यहां चन्दोआ को ही महाशिवरात्रि वाले पर्व पर शिव का स्वरूप माना जाता है । यही यहां की विशेषता है ।
राज शर्मा (संस्कृति संरक्षक)
आनी कुल्लू हिमाचल प्रदेश
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