बूँद – बूँद : लीला ( लुम्ले, पाेखरा )
बूँद – बूँद
बहुत सम्हालकर रखा था मैंने,
मेरे इस अनमाेल रतन काे,
मेरे इस प्यार काे,
मेरे इस त्याग काे ।
हर वक्त तुमकाे ही याद किया,
हर दिन तुमसे ही इश्क किया,
पर पाया क्या ?
और खाेया क्या ?
आज नहीं हाेगा मुझसे,
खेलूँगा नहीं यह झूठा खेल,
हाे जाने दाे आज यह,
माेतियाें और चेहरे का मेल ।
आखिर अब जीने में,
रखा क्या है ?
जिसने नई जिन्दगी दी,
वही किसी और कि
अमानत हाे गई है ।
लीला ( लुम्ले, पाेखरा )
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