सीता पर जितना अधिकार जनकपुरधाम का है उतना ही पुनौराधाम का भी : श्वेता दीप्ति
डॉ श्वेता दीप्ति, सम्पादकीय हिमालिनी, अंक जुलाई । अजन्मा के लिए बहस और जन्मसिद्ध के लिए उदासीनता
सीता धरती से जन्मी एवं ऋषियों मुनियों के साथ पली बढ़ी है । पवित्र भूमि की हल रेखा से सीता के मिलने पर किसानों ने कहा कि वह जनक के बीज का फल नहीं है तो वह उनकी पुत्री कैसे हो सकती है ? इस प्रश्न पर राजा जनक कहते हैं कि, ‘पितृत्व बीज से नहीं हृदय के भीतर से अंकुरित होता है’ और उन्होंने घोषणा की कि, यह धरती की पुत्री भूमिजा है, मैं इसे सीता कहूँगा, वह सीता जिसने मुझे पिता के रूप में चुना है । सीता प्रकृति के पालिका बनने तथा मानव सभ्यता के उदय होने का मूर्त रूप बन कर हमारे समक्ष स्थापित होती है । वेदों में सीता को उर्वरता की भगवती के रूप में मान्यता दी गई है । महाभारत के राम उपाख्यान में सीता जनक की जैविक पुत्री है । कश्मीरी रामावतार चरित्र में सीता रावण की पुत्री है । आनन्द रामायण में विष्णु, पाक्ष नामक राजा को एक फल देते हैं, जिसमें कन्या है, जो लक्ष्मी का अवतार है, वही पार्वती है और वही सीता है । सीता अयोनिजा है, इसलिए वह विशेष है । तात्पर्य यह कि सीता की उत्पत्ति की कई कथाएँ हैं । माता सीता की जन्मस्थली मिथिला की चर्चा रामचरित मानस के उत्तर कांड में कुछ इस तरह हुई है ।
इहाँ वसत मोहि सुनु खग ईशा ।
बीते कलप सात अरु बीसा ।।
अभी से सत्ताइस चौयुगी (सत्य, त्रेता, द्वापर और कलिनामक चतुर्युगी) से पहले त्रेता युग में राम चरित मानस के उत्तर काण्ड में काक भुसुण्डीजी के द्वारा गरूड़ जी को कहे गए इस चौपाइ के आधार पर २७ कल्पों पहले त्रेता युग में ही मिथिला की राजधानी जनकपुर में सतावन पीढी तक चली । ब्रह्मज्ञानी जनकों की वंशावली में बाइसवें जनक श्री सीरध्वज नामक राजा जनक के द्वारा अनेकों वर्ष तक महा अकाल पड़ने पर चलाये गये सुवर्णमय हल के सीर (सीता नामक अग्रभाग) से मिथिला की पावनतम् भूमि के अन्यतम भाग सीतामही (प्रसिद्ध सीतामढी) से आविर्भूत हुई जगज्जननी जनकनन्दिनी सीताजी ने मिथिला को लोकोत्तर गौरव के शिखर पर प्रतिष्ठित कर दिया । जो अयोनिजा परमेश्वरी भगवती के रूप से सर्वत्र पूजित होती हैं ।
सीता मिथिला की बेटी हो सकती है, पर नेपाल की नहीं । क्योंकि यह मिथिला क्षेत्र नेपाल के नौ जिलों में सीमित है और बिहार के बाइस जिलों में विस्तृत है । यानि सीता पर जितना अधिकार जनकपुरधाम का है उतना ही पुनौराधाम का भी । जनकपुर परिक्रमा बिना बिहार के क्षेत्रों से गुजरे पूर्ण नहीं होता । सीता का अवतरण बिहार के पुनौराधाम सीतामढी में है जो आज भी बिहार का ही एक शहर है । किन्तु ये सारी बातें कभी बहस का मुद्दा नहीं बनी । सभी जानते हैं कि नेपाल भारत की संस्कृति के कई पक्ष ऐसे हैं जो साझी विरासत का निर्वहन कहते हैं । आज सदियों से चली आ रही हमारी आस्था का मजाक ही बनाया जा रहा है । सीता पर एकाधिकार की बातें अनावश्यक रूप से तूल पकड़ रही है ।
जो अजन्मा हैं उनके जन्म को लेकर आज बहस हो रही है परन्तु इसी मिट्टी में जन्म लेने वाला बच्चा नागरिकता के लिए संघर्षरत है और आत्मदाह और आत्महत्या जैसी घटना को अंजाम दे रहा है उस पर कोई बहस नहीं । जहाँ एक वर्ग की पूर्ण खामोशी है । आश्चर्य तो यह है कि आत्मदाह करने वाले के लिए इस वर्ग की ऐसी टिप्पणियाँ आ रही है जिसका उल्लेख भी नहीं किया जा सकता है ।
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सम्पादक, हिमालिनी ।
