सिविस ने किया बाल अधिकार और सामाजिक सुरक्षा केन्द्रीत विचार–विमर्श
‘दिवा खाजा’ कार्यक्रम की रकम कटौती पर आपत्ति
काठमांडू, १४ सितम्बर । राष्ट्रीय बाल दिवस के अवसर पर सामाजिक तथा मानव अधिकार में महिला और बालबालिका (सिविस) नामक सामाजिक संस्था ने बुधबार बालअधिकार और सामाजिक सुरक्षा पर केन्द्रीत होकर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया है । ‘बाल संवेदनशील सामाजिक सुरक्षा, बाल संरक्षण, बालश्रम, बाल सहभागिता और जलवायू परिवर्तन और बालबालिका में असर’ टॉपिक्स में आयोजित गोष्ठी में संबंधित क्षेत्र से जुड़े हुए व्यक्तित्व ने अपने–अपने विचार प्रस्तुत किया । कार्यक्रम में विश्वरत्न पुन ने ‘बाल संवेदनशील सामाजिक सुरक्षा’ विषय पर और छिरिङ डोल्मा लामा ने ‘जलवायु परिवर्तन और बालबालिका में असर’ विषय पर अपना अध्ययन प्रस्तुत किए ।
‘बाल संवेदनशील सामाजिक सुरक्षा’ संबंधी प्रस्तुति में विश्वरत्न पुन ने कहा कि आर्थिक अभाव के कारण आज भी अधिक बालबालिका स्कूली शिक्षा से बंचित हैं, साथ में पौष्टिक खाना और परिवारिक प्रेम से भी बंचित हो रहे हैं । उनका कहना है कि पर्याप्त पौष्टिक खाना, पारिवारिक प्रेम और स्कूली शिक्षा की ग्यारेन्टी होना ही बालबालिकाओं के लिए आधारभूत सामाजिक सुरक्षा है । पुन ने आगे कहा– ‘अगर कोई बच्चा आर्थिक अभाव के कारण शिक्षा प्राप्ति से बंचित हो जाता है तो उनकी वयस्क जीवन भी सामाजिक सुुरक्षा से बंचित हो जाता है, जीविकोपार्जन के लिए आवश्यक शीप और रोजगारी से बंचित रहना पड़ता है ।’ उन्होंने कहा कि बालबालिका के ऊपर किए गए निवेष सिर्फ माता–पिता के लिए ही नहीं, देश के लिए भी होता है । उन्होंने आगे कहा– ‘बाल बच्चों में किए गए निवेष सबसे ज्यादा फलदायी होती है । निवेष सिर्फ पैसा है ऐसा नहीं है, प्रेम और केयर भी निवेष है ।’
पुन का यह भी कहना है कि अगर बाल मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का नकारात्मक असर पड़ जाता है तो उसका दीर्घकालीन असर पड़ जाता है । उन्होंने कहा– ‘उम्र समूह के अनुसार अलग–अलग सामाजिक जोखिम हो जाता है । अगर कोई भी व्यक्ति सामाजिक सुरक्षा के पहुँच में होता है तो उसका भविष्य भी सुरक्षित होता है और उसको सामाजिक सम्मान भी मिलता है ।’ पुन ने कहा कि भविष्य में होनेवाला जोखिम को पूर्व अनुमान करते हुए कोई योजना बनाया जाता है तो वही सामाजिक सुरक्षा है ।
‘जलवायु परिवर्तन और बालबालिका में असर’ संबंधी विषय में अपना अध्ययन पेश करते हुए छिरिङ डोल्मा लामा ने कहा कि विश्वव्यापी रुप में जलवायु के क्षेत्र में जो नकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रही है, उसका असर बच्चों में दिखाई दे रही है । उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर बालबालिकाओं में ही दिखने को मिला है । उन्होंने कहा– ‘प्राकृतिक रुप में होनेवाला जलवायु परिवर्तन हो वा मानव क्रियाकलाप से होनेवाला जलवायु परिवर्तन, दोनों का असर बालबालिका में हैं । लामा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण सिर्जित नयी–नयी स्वास्थ्य समस्या तथा अन्य मानवीय समस्या के कारण स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा क्षेत्र में प्रभाव पड़ रहा है । उनका कहना है कि प्राकृतिक प्रकोप बाढ़, डूबान, भू–स्खलन, आग आदि के कारण नेपाल में भी हजारों विद्यार्थी शिक्षा से बंचित हैं ।
कार्यक्रम के वक्ता विष्णु पनेरु ने कहा कि बालबालिकाओं की स्वतन्त्रता में पहले की तुलना में आज काफी सुधार है, लेकिन पर्याप्त नहीं है । उनका मनना है कि पुरानी पिढ़ी के बच्चों को संकुचित होकर रहना पड़ा, आज के बच्चें स्वतन्त्र हैं, लेकिन स्कूली शिक्षा से बंचित हैं । उन्होंने कहा कि कई बच्चे अभिभावक की अनदेखा के कारण स्कूल छोड़ कर बाल मजदूर बन जाते हैं ।
बालबालिका के क्षेत्र में ही क्रियाशील गंगा सुवेदी का कहना है कि जब तक स्थानीय सरकार को बालबालिका के प्रति जिम्मेदार नहीं बनाया जाएगा, तब तक बालबालिकाओं की सामाजिक सुरक्षा की ग्यारेंटी नहीं हो सकती । उन्होंने यह भी दावा किया है कि स्थानीय सरकार में जो कर्मचारी हैं, उनमें से अधिकांश कर्मचारियों में बाल संवेदनशीलता और ज्ञान नहीं है । प्रभावत सेकेण्डरी स्कूल से कार्यक्रम में सहभागी बालवक्ता उत्रिमाया मोक्तान ने आयोजक संस्था के ऊपर भी प्रश्न करते हुए कहा कि बाल अधिकार, बाल शिक्षा और सुरक्षा जैसे कार्यक्रम सिर्फ काठमांडू जैसे शहरी क्षेत्रों में नहीं, ग्रामिण क्षेत्र में भी संचालन होना चाहिए । कक्षा ९ में अध्ययनरत छात्रा मोक्तान ने आगे कहा– ‘काठमांडू तो एक प्रकार से विकसित शहर है, बालशिक्षा और सुरक्षा की आवश्यकता यहां से अधिक ग्रामिण क्षेत्र में है ।’ मोक्तान ने प्रश्न किया– ‘ग्रामिण क्षेत्र में इसतरह का जागरण अभियान होता है या नहीं ?’ उन्होंने यह भी कहा कि बाल अधिकार और उनकी सामाजिक सुरक्षा के प्रति अभिभावक भी जिम्मेदार होना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि बालबालिका संबंधी विषय को लेकर सिर्फ समस्या दिखाना और प्रश्न करना ही जिम्मेदारी नहीं है, समाधान और सही जवाफ का पहचान करना भी जरुरी है ।
सप्तरी से प्रतिनिधित्व करनेवाले दिलिप खड्का का मानना है कि तराई–मधेश में कई ऐसे गांव है, जहां के अभिभावक आर्थिक रुप में ज्यादा कमजोर नहीं हैं और अपने बच्चों को अपनी ही खर्च में स्कूल भेज सकते हैं, लेकिन नहीं भेज रहे हैं । उन्होंने कहा कि एसे गांव से प्रतिनिधित्व करनेवाले जनप्रतिनिधि भी इस विषय को लेकर अनदेखा कर रहे हैं । खड्का का कहना है कि ऐसे गांव और समुदाय के प्रति भी कुछ सोचना चाहिए ।
सिविस के लिए कार्यकारी अध्यक्ष विमला ज्ञावली ने कहा कि बालबालिका संबंधी समस्या भी नयी–नयी चरित्र में आने लगी है । उन्होंने आगे कहा– ‘आज घरेलू मजदूर के रुप में बालबालिका नहीं हैं । लेकिन डान्सबार और रेष्टुरेन्ट में शोषण का नयां–नयां रुप देखने को मिल रहा है । मोबाइल ना मिलने के कारण बाल श्रमिक बननेवाले बच्चें भी दिखाई दे रही है ।’ उनका कहना है कि इसतरह की समस्या को मनोवैज्ञानिक समाधान खोजना चाहिए ।
इसीतरह राष्ट्रीय युवा परिषद् के कार्यकारी सदस्य भी रहे और बाल अधिकार के क्षेत्र में लम्बे समय से क्रियाशील व्यक्तित्व त्रिलोत्तम पौडेल का कहना है कि दुर्गम क्षेत्र में बाल–बालिकाओं के पोषण को लेकर सरकार ने जो बजट और सुविधा विनियोजन किया था, उसमें कटौती हुई है, यह खेदजनक है । उन्होंने कहा प्रति विद्यार्थी १५ से २० रुपये तक पौष्टिक खाजा के नाम से मिल जाता है, यह अत्यन्त न्यून रकम है । पौडेल ने प्रश्न किया– ‘आज २० रुपये में एक कप चाय और चाउचाउ का पैकेट भी नहीं आता तो बच्चों को किसतरह का पौष्टिक नास्ता मिलेगा ?’ पौडेल ने यह भी कहा कि बालबालिकाओं की सामाजिक सुरक्षा के लिए नेपाल सरकार की नीति तो है, लेकिन उसका कार्यन्वयन प्रभावकारी नहीं है । उन्होंने सुझाव दिया कि अब हर पालिका में बालबालिका संबंधी एक मनोचिकित्सक होना चाहिए और हर स्कूल में एक नर्स की व्यवस्था होनी चाहिए ।
विचार–विमर्श के दौरान किए गए प्रश्नों के ऊपर जवाफ देते हुए राष्ट्रीय बाल परिषद् के उपाध्यक्ष बमबहादुर बानिया ने कहा कि बाल अधिकार और उनकी सामाजिक सुरक्षा संबंधि विषय संविधान में उल्लेख है । उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय बाल अधिकार परिषद् संघ, प्रदेश और स्थानीय सरकार के साथ ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र से समन्वय कर बाल अधिकार और सामाजिक सुरक्षा के लिए आगे बढ़ रही है । उन्होंने कहा है कि अब बालबालिका सबंधी सभी समस्या समाधान के लिए स्थानीय सरकार को ही ज्यादा जिम्मेदार और संवेदनशील बनाया जाएगा । उनका कहना है कि इसके लिए स्थानीय सरकार को ही अधिकार सम्पन्न बनाने की प्रक्रिया आगे बढ़ चुका है ।
सिविस के लिए कार्यक्रमय निर्देशक उमंग मैनाली द्वारा संचालित कार्यक्रम को प्रभात मा.वि (कक्षा ९)में अध्ययनरत छात्रा विपना बस्नेत ने अध्यक्षता की थी । अध्यक्षीय मन्तव्य व्यक्त करते हुए बस्नेत ने कहा कि बालबालिका संबंधी नीति निर्माण में स्वयम् बालबालिकाओं की उपस्थिति अनिवार्य होना चाहिए । समाजसेवी, पत्रकार तथा अन्य क्षेत्र से जुड़े हुए व्यक्तित्व सहभागी कार्यक्रम में विदुर ढुंगेल, सन्तोष मल्ल, अर्जुन धामी, राहुल श्रेष्ठ आदि वक्ताओं ने अपने–अपने विचार व्यक्त की थी ।