नेपाल कभी गुलाम नहीं रहा लेकिन इसका अपनों से ही संघर्ष का लम्बा इतिहास है : श्वेता दीप्ति
डॉ श्वेता दीप्ति, सम्पादकीय हिमालिनी, अंक अगस्त । हमारा पड़ोसी मित्र राष्ट्र भारत अपनी स्वतंत्रता के ७७ वर्ष गुजारने के साथ ही अमृत महोत्सव की समाप्ति के बाद अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है । इन ७७ वर्षों का भारत का इतिहास विकास और समृद्धि की ओर बढ़ते कदमों का रहा है । जिसकी वजह से वैश्विक स्तर पर भारत की मजबूती हमें नजर आ रही है । इस समृद्धि में अगर सबसे बड़ा कारक कुछ रहा है तो वह है राजनीतिक स्थिरता । शासन में आए दलों की पूर्ण कार्य अवधि और आलोचना एवं विरोधों के बीच भी सफल सत्ता संचालन । दो सौ वर्षों तक गुलामी के जहर को पीने के बाद जिस स्वतंत्रता को भारत ने प्राप्त किया और फिर खुद को जिस मजबूत आधार के साथ खड़ा किया है, वह निश्चय ही अनुकरणीय है ।

स्वतंत्रता केवल एक शब्द नहीं है एक भाव है, एक एहसास है जो संतुष्टि और पूर्णता की भावना से ओतप्रोत होता है । ‘स्वतंत्रता’ शब्द के साथ जुड़ा हर भाव केवल मनुष्य ही नहीं जानवरों एवं पेड़ पौधों तक में महसूस किया जाता है । इसका महत्व तब पता चलता है जब आसमान में बेफिक्री से उड़ता एक परिंदा अपने ही किसी साथी को पिंजरे में कैद देखता है ।
टैगोर अपनी कृति रिलीजन ऑफ मैन में लिखते हैं, “स्वतंत्रता के विकास का इतिहास मानव संबंधों के उन्नयन का इतिहास है ।” विवशता दूर हो जाने के बाद जो कार्य मनुष्य को आनंद प्रदान करता है, उसे करना ही स्वतंत्रता है । आनंद मानव प्रकृति का सार तत्व है; यह अपने आप में साध्य है । सृजनात्मक आनंद मनुष्य का परम धर्म है; यह उसमें निहित दिव्य तत्व की अभिव्यक्ति है । सुंदर दृश्य, ध्वनि, सुगंध, स्वाद और स्पर्श मनुष्य के मन में आनंद का संचार करते हैं । टैगोर ने मानव प्रेम और सेवा को मोक्ष का सच्चा साधन माना है ।उनका विचार था कि स्वतंत्रता की मौजूदगी में ही शिक्षा को अर्थ और औचित्य मिलता है ।
मनुष्य की प्रवृत्ति ही स्वतंत्र रहने की है । स्वतंत्रता सबको प्रिय है । ऐसा इसलिए, क्योंकि स्वतंत्रता वह अवस्था है जिसमें कोई भी जीव किसी दबाव के बगैर स्वेच्छा से कहीं भी आ–जा सकता है । ऐसा करने में उसे अच्छा भी लगता है, लेकिन जब कभी उसकी स्वतंत्रता पर कोई छोटा–सा आघात होता है तो वह तिलमिला जाता है । ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रकृति ने सभी जीवों को स्वतंत्र और स्वच्छंद बनाया है । प्रकृति यह मानती है कि संसार का प्रत्येक जीव अपनी–अपनी अभिरुचि के अनुरूप कार्य करे और अपना जीवनयापन करे । मानव इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण है जब अधिक शक्तिशाली समूहों ने कुछ लोगों या समुदायों का शोषण किया, उन्हें गुलाम बनाया या उन्हें अपने आधिपत्य में ले लिया । लेकिन इतिहास हमें ऐसे वर्चस्व के खिलाफ शानदार संघर्षों के प्रेरणादायी उदाहरण भी देता है । यह स्वतंत्रता क्या है, जिसके लिए लोग अपना जीवन आहुत करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं ।



हम सौभाग्यशाली हैं कि नेपाल कभी गुलाम नहीं रहा लेकिन, इसका अपनों से ही संघर्ष का लम्बा इतिहास रहा है । इसने शोषण के उन दिनों को भी देखा है जहाँ आम नागरिक सभी अधिकारों से वंचित थे । आज जिस लोकतंत्र में जनता जी रही है उसकी प्राप्ति का मार्ग सहज नहीं था । कितने बलिदान और कठिनाई से नेपाल यहाँ तक पहुँचा है, यह इतिहास में दर्ज है । किन्तु क्या वजह है कि आज जनता का एक बड़ा तबका यह कहने के लिए बाध्य हो रहा है कि, ‘इस लोकतंत्र से तो बेहतर राजतंत्र था ।’ इस मनोदशा के पीछे स्वाभाविक तौर से हमारे नेताओं के कुकृत्य, भ्रष्टाचार, पलायन, बेरोजगारी और गरीबी ही है । क्यों आज अमीर और भी अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और भी गरीब होते जा रहे हैं । क्यों हमारा देश युवाविहीन हो रहा है ? सत्ता पर काबिज और सत्ता से बाहर हमारे हर प्रतिनिधि किसी ना किसी कांड में लिप्त हैं उनसे कैसे किसी परिवर्तन और देश हित की उम्मीद की जाए ? यह प्रश्न हर आम नागरिक का है किन्तु इसका उत्तर कहीं से मिलने की संभावना नहीं है ।