५००० से भी अधिक समर्थकों के साथ डा. सी.के. राउत का गर्जन
राजबिराज, मंसिर १९ गते । मधेश और मधेशी के ऊपर आज तक होती दमन नीति और विभेद के विरोध में सप्तरी के राजविराज में गुरुवार को डा. सी.के राउत ने अपने ५००० समर्थकों के साथ जनप्रदर्शन किया है । डा. सी.के.राउत बचाओ संघर्ष समिति के संयोजन में किए गए इस प्रदर्शन में डा. राउत, कैलाश महतो, चन्दन सिंह,विनोद यादव, मो. उसमान मियाँ, महेश यादव देवराम मधेशी आािद वक्ताओं ने मधेश के गौरवशाली अतीत से लेकर औपनिवेशिक शासन तक की बातों पर प्रकाश डाला ।
मानव सभ्यता के आरम्भ से मधेश एक राष्ट्र था और जहाँ जनक, शुद्धोधन(बुद्ध के पिता) तथा सलहेश, हरिसिंहदेव जैसे अनेकों गौरवशाली राजाओं के शासन थे । गोर्खालियों के आने से पहले १८वीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में मधेश में सेन राजाओं का समृद्ध राज्य था । सन् १८१६÷१८६० में अँग्रेजों ने दो लाख रु. के बदले उपहारस्वरूप नेपाल राजा को मधेश हस्तातंरण किया गया । मधेश को जवरन नेपाल में मिलाया गया और वहीं से मधेश में नेपाली औपनिवेशिक शासन की शुरुआत हुई । ज्ञात ही है कि मधेशियों को नेपाल(काठमान्डौ) आने के लिए वीसा की आवश्यकता होती थी । इन सभी तथ्यों पर वक्ताओं ने प्रकाश डाला ।
मधेश में लगभग ९५ प्रतिशत सेना बाहर से लाकर नेपाली शासकों ने मधेश में उपनिवेश कायम किया और पहाड़ से नागरिकों को लाकर मधेश में बसाने का काम तीव्र गति से किया । आदिवासी मधेशियों की अपनी जमीन उनसे छीन ली गई और १९५१ से २००१ इन पचास वर्षों में मधेश में पहाड़ियों की संख्या लगभग ६ प्रतिशत से बढ़कर ३३ प्रतिशत हो गया । मधेश से ७५ प्रतिशत राजस्व उठाया जाता है लेकिन ५१ प्रतिशत जनसंख्या वाले मधेश को केवल ५–६ प्रतिशत बजट दिया जाता है । ऐसे शोषण औपनिवेश का अंत पर वक्ताओं ने बल दिए । इस उपनिवेश की वजह से ही मधेशी अपनी ही धरती पर दास बनकर जीने को बाध्य हैं । उनका अस्तित्व संकट में है । अन्न के भण्डार के रूप में मधेश को जाना जाता है किन्तु वहीं की १९ प्रतिशत जनता भूख की मार झेल रही है । २०.४ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं । ५०.२ प्रतिशत बच्चे और ४२ प्रतिशत महिलाएँ रक्तअल्पता की शिकार हैं । यह तथ्यांक पहाड़ी क्षेत्र से दुगुना है ।
मधेशी इस उपनिवेश से मुक्त होने के लिए पिछले ६० वर्षों से आन्दोलित हैं । कितनों की जानें जा चुकी हैं किन्तु उनकी स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ती ही जा रही है । उन्हें अधिकार के बदले नेपाली राज्य से दमन का शिकार होना पड़ रहा है । क्ष्सलिए स्वतंत्र मधेश के अलावा अब कोई विकल्प नहीं है ऐसा वक्ताओं का मानना था । मधेश से सेना हटाया जाय, वहाँ मधेशी स्वयं अपनी सेना और प्रहरी में नियुक्ति का अधिकार प्राप्त करें, मधेश के द्वारा संकलित प्रसा या साधन मधेश में ही प्रयोग किया जाय इस बात पर सबने अपनी दृढ़ता दिखाई ।
मधेश में जारी चरम औपनिवेशक शोषण, रंगभेद और मधेशियों का जातिय सफाया तथा २१ वीं शताब्दी में भी मधेशियों को नागरिकता विहीन रखना, दास के रूप में जीने के लिए बाध्य करना सम्पूर्ण मानवता पर कलंक है, एस अवस्था से मधेशियों को मुक्त कराना सम्पूर्ण विश्व का ही दायित्व है । इसलिए विश्व के सम्पूर्ण राष्ट्रों, नागरिकों, कूटनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों तथा पत्रकारों से सहयोग करने के लिए सभी वक्ताओं ने अपील की । इसी क्रम में सार्क सम्मेलन के दौरान सार्क राष्ट्रों के ध्यानाकर्षण हेतु सार्क सचिवालय में मधेशी जनता की तरफ से ज्ञापन पत्र दिया गया था । काठमान्डौ के खुला मंच में मिति २०७१ मंसिर १० गते होनेवाली आमसभा को नेपाल सरकार ने होने नहीं दिया और डा. राउत के साथ ही कई मधेशियों और मधेशी जैसे दिखने वालों तथा रंग, भाषा और पहनावे को लक्षितकर ५०० से अधिक कार्यकत्र्ताओं को पकड़ा गया उनपर लाठी चार्ज की गई उन्हें सामुदायिक और साम्प्रदायिक रूप से प्रताड़ित किया गया । ये सारी बातें मधेश और मधेशियों की स्थिति को जाहिर करने के लिए काफी है ।