“जितिया पावनि बडभारी”
काठमांडू, असोज ८ – कंचना झा
हिन्दू धर्म यानी सनातन धर्म जिसकी संस्कृति और परम्परा पर सभी को गर्व है । हिन्दू धर्म को मानने वाले किसी एक पर्व त्यौहार को नहीं मनाते हैं उनके लिए हर त्यौहार की अपनी अलग अलग महत्ता है । सनातन धर्म को मानने वाले हरेक दिन एक नए पर्व के साथ जुड़ते हैं । पर्व त्यौहार को बचाकर रखने की जिम्मेदारी ज्यादा महिलाओं को दिया गया है उसे वो बखूबी निभा भी रही हैं । पर्व त्यौहार को बचाकर रखने का जो कार्य हिन्दू महिलाएं कर रही है वह भी बहुत ही प्रशंसनीय है । इसकी संस्कृति एक गौरवशाली संस्कृति रही है । हिन्दू धर्म में हमेशा पर्व त्यौहार का माहौल रहता है । आज भी हिन्दू धर्म का एक बहुत ही पावन और पवित्र दिन है जहाँ महिलाएं जितिया का व्रत कर रही हैं ।
जिस व्रत को महिलाएं आज कर रही हैं यह एक बहुत कठोर व्रत है लेकिन महिलाएं बहुत उमंग उत्साह से यह व्रत करती हैं । यह पर्व केवल मिथिला में ही नहीं वरन नेपाल और भारत के बहुत से जगहों में महिलाएं अपनी संतान के लिए करती है । महिलाएं इस त्यौहार पर्व को बहुत महत्वपूर्ण मानती हैं । अपने परिवार अपने बच्चों के स्वास्थ्य, उनकी लम्बी उम्र के लिए वो दो दिन तक पानी भी मुँह में नहीं रखती हैं । ये पर्व है जितिया का ।
जितिया जो मां अपने बच्चों के लिए करती हैं । उन्हें लगता है कि उनके इस कठीन व्रत के करने से उनका बच्चा स्वस्थ रहेगा, वह उम्रदराज होगा ।
इस पर्व को लेकर एक पंंक्ति बहुत प्रचलित है –
जितिया पावनि बडभारी ,
धियापूताके ठोकि सुतौलनि ,
अपने खएलनि भरि थारी
वास्तव में यह पर्व बहुत कठीन ही नहीं बहुत महत्वपूर्ण भी है । और पवित्र भूमी मिथिला में तो हरेक पर्व का अपना विशेष महत्व है लेकिन जब बात जितिया की आती है तो यह सबसे अलग और सबसे भिन्न है । यह पर्व माँ और सन्तान के बीच के संबन्ध से जुड़ा हुआ है ।
यह व्रत अष्टमी तिथि को मनाई जाती है । और यह व्रत केवल महिलाएं ही करती हैं । जितिया व्रत को करने से एक दिन पहले सुहागन महिलाएं मछली और मडुआ की रोटी खाती हैं । सप्तमी के ही दिन स्नान ध्यान करने के बाद झींगनी के पत्ते पर खीरा ,खरी, तेल, केराव चुलो आ सियारो ंके सांथ ही मृत श्रेष्ठ स्त्रीगण को चढ़ाया जाता है । इस पर्व में एक महत्वपूर्ण भाग यह भी है कि इसमें पितरैन खिलाने का भी चलन है । जिन महिलाओं की माँ और सास का देहांत हो गया रहता है वह उन्हें याद कर सुहागन महिलाओं को भोजन कराती हैं । जिसे पितरैन कहा जाता है ।
इस पर्व में ओठगन का भी चलन है । जिसमें जितिया की सुबह जब महिलाएं अपना व्रत शुरु करती है उससे पहले ही सुबह उठकर बच्चें, घर के सभी सदस्य महलिा हो या पुरुष चुरा, दही ,चीनी, आ आमोट का ग्रहण करते हैं । और पानी पीते हैं । जो व्रती होती है वह भी खा सकती है लेकिन वो प्रायः नहीं खाती हैं क्योंकि कहते हैं कि इस व्रत में डकार नहीं आनी चाहिए ।
अब इस पर्व को इतना कठीन और कठोर क्यों कहा गया है तो जितिया किसी बार एक दिन या किसी बार दो दिन का भी हो जाता है । इसबार भी जितिया दो दिन का है । आज सुबह से शुरु हुआ यह व्रत कल यानी बुधवार की शाम को समाप्त होगा । व्रती पानी तक को ग्रहण नहीं करेंगी । यह कभी कभार ही ऐसा होता है प्रायः अष्टमी के दिन दोनों संध्या उपवास किया जाता है । शाम के समय में महिलाएं एक जगह एकत्रित होती हैं और जीमुतवाहन की कथा ,चुलो– सियारोक की कथा को सुनती हैं । और नवमी को पारण करती हैं । नवमी के दिन भी स्नान ध्यान कर अक्षत ,खीरा , केराव अंकुरी तेल सब जीमुतवाहन को चढ़ाया जाता है और वही महिलाएं अपने बच्चों के साथ ही परिवार के सभी सदस्यों को लगाती हैं ।
कभी कभार तो ऐसा भी देखा गया है कि जिनके बच्चें शहर या विदेश में रहते हैं तो माँ उनके लिए संभाल कर जितिया का तेल रखती हैं । वो जब आते हैं माँ तब उन्हें तेल लगाती है तो ये श्रद्धा और विश्वास की बातें हैं ।
इस व्रत को लेकर पहले की जो धारणा थी उसमें बदलाव आया है । पहले महिलाएं कहती थी कि यह पर्व सिर्फ बेटों के लिए किया जाता है । लेकिन इन बातों से अब हम बहुत दूर आ चुके हैं । अब महिलाएं खुलकर कहती हैं कि ये उपवास हम बच्चों के लिए करते हैं । केवल पुत्र के लिए यह उपवास नहीं है । उनका कहना है कि जब संतान के लिए है तो फिर क्या बेटा और क्या बेटी दोनों संतान है तो उपवास दोनों के लिए है । सच यही है कि यह व्रत संतान के स्वस्थ जीवन और दीर्घायु के लिए किया जाता है