विपद व्यवस्थापन योजनाएँ कार्यान्वयन हुई या नहीं ?: अंशुकुमारी झा
विपत्ति बोल के नहीं आती । नेपाल एक छोटा सा देश है पर प्राकृतिक सम्पदाओं और सुन्दरता से परिपूर्ण है लेकिन कहते हैं न अति सर्वत्र वज्र्येत, समय–समय पर वही सुन्दरता विनाश का रूप ले लेती है जिससे जनमानस को धन–जन की क्षति का सामना करना पड़ता है । कई लोगों को बेघर होना पड़ता है, जान गँवाना पड़ता है । यहाँ तक कि किसी–किसी परिवार में तो एक भी व्यक्ति नहीं बच पाता । हम बहुत सारे विपत्तियों का सामना करते आ रहे हैं । भूकम्प, कोरोना महामारी और बाढ़ भूस्खलन का तो नेपालियों को आदत सी पड़ गई है ।
विक्रम संवत् २०८१ जेठ २३ गते को राष्ट्रीय विपद् जोखिम न्यूनीकरण तथा व्यवस्थापन प्राधिकरण ने मानसून पूर्व तैयारी तथा प्रतिकार्य योजना सार्वजनिक किया । मानसून शुरू होने से पहले सम्बन्धित मन्त्रालय, निकाय तथा संस्थाओं ने विपद् व्यवस्थापन सम्बन्धी उक्त कार्ययोजना के अन्तर्गत मानसून के समय कहाँ–कहाँ क्या करना है स्पष्ट उल्लेख किया है । इतन्ी सारी पूर्व तैयारी तथा अनगिनत योजनाओं के बावजूद भी विपत्ति के समय सरकार इतनी लाचार और निराश क्यों दिखी ? गृह मन्त्रालय ने उल्ल्ेख किया है कि विपद की घटना की जानकारी नियमित रूप से ली जायेगी और उसी अनुरूप प्रतिकार्य के लिए काम किया जायेगा । नेशनल इमरजेन्सी आपरेशन सेन्टर अर्थात राष्ट्रीय आपातकालीन कार्य सञ्चालन केन्द्र को २४ घण्टे सञ्चालन में रखे जायेंगे । यह सारी योजनाएँ विपत्ति के समय निरर्थक ही रही । कार्ययोजना में लिखा गया है कि आकस्मिक भू–स्खलन हो सकता है, नदी के किनारे वाले समुदायों को बाढ़ के पानी से खतरा हो सकता है, जिसको कम करने के लिए तथा प्रतिकार्य के लिए उद्धार सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी जिसके लिए उसका उचित व्यवस्था तथा समन्वय करना होगा । साथ ही कटान प्रभावित तराई के जिलों में आश्रयस्थल निर्माण करना होगा । प्राधिकरण को गृह मन्त्रालय के साथ समन्वय कर बाढ़ और डुबान से हुई क्षति का विवरण एकत्रित करने के लिए ड्रोन प्रयोग करने से सहज होगा । यह भी लिखा गया है कि फ्लाइङ स्क्वाड का समूह बनाकर प्रभावित क्षेत्रों में परिचालन किया जायेगा । वाणिज्य तथा आपूर्ति मन्त्रालय ने कार्ययोजना में यह उल्लेख किया है कि खाद्य सामग्री तथा तेल,गैस, नमक के अतिरिक्त अन्य उपभोग की वस्तओं का व्यवस्थापन तथा कालाबाजारी रोकने के लिए बाजार अनुगमन करेगा ।’
इसी प्रकार स्वास्थ्य मन्त्रालय ने स्वास्थ्य आपातकालीन कार्य सञ्चालन केन्द्र और प्रादेशिक स्वास्थ्य आपातकालीन कार्य सञ्चालन केन्द्र को क्रियाशील बनाने की बात कही थी । साथ ही यह भी कहा था कि सभी प्रदेश राजधानी में कम से कम रैपिड रेस्पोन्स मेडिकल टीम निर्माण किया जायेगा ताकि आवश्यक पडने पर औषधि तथा उपकरण इत्यादि सहज रूप से उपलब्ध हो पाए । पेयजल, शहरी विकास मन्त्रालय ने भी क्रमशः पेयजल, ढल निकास और बस्ती स्थानन्तरण करने की बात का उल्लेख किया है । इसी प्रकार खानी तथा भूगर्भ विभाग ने भी आकस्मिक और विस्तृत भूस्खलन सम्बन्धी अध्ययन तथा अनुसन्धान कार्य को निरन्तरता देने की बात कही है । जल तथा मौसम विज्ञान विभाग भी नियमित रूप से मौसम पूर्वानूमान की सूचना सम्प्रेशित करता रहेगा । मानना पड़ेगा इतनी सारी योजनाएँ बनाई गई, इसके लिए सभी सम्बन्धित मन्त्रालयों ने अपनी प्रतिबद्धता जतायी परन्तु जो अनिष्ट होना था वह होकर ही रहा । सारी योजनाएं असफल हो गयीं ।
सच में अगर इन योजनाओं पर सही से अमल किया जाता तो देश में इस प्रकार की तबाही नहीं आती । लाखों लोग बेघर नहीं होते, किसी को मलवे के नीचे नहीं दबना पड़ता । अनाहक में प्राण गँवाना नहीं पडता, पर प्रशासन ने इन योजनाओं को बहुत ही हल्के रूप से लिया । जैसा भी है मौसम विद् एक सप्ताह पहले से सभी को अगाह कर रहा था कि बाढ़ से देश में बहुत ही भयानक अवस्था आएगी । ५६ जिलों को रेड जोन में रखा था परन्तु जब देश पर कहर टूटा तो सरकार और सरकार की योजनाएँ न्यून के बराबर दिखाई दिया । अगर हम आने वाले विपत्ति को गम्भीर रूप से लेते तो इतनी क्षति नहीं होती । उदाहरणस्वरूप ललितपुर जिला के नख्खु खोला में चार लोग जस्ता के ऊपर लगभग ५ घंटे से बचाव के लिए चिल्ला रहे थे, अगल बगल के लोग सहायता वाले विभिन्न नम्बरों में फोन लगाकर बाढ़ में फँसे व्यक्तियों की सहायता के लिए भीख माँग रहे थे पर समय पर कोई नहीं आया । कहाँ गई वे सारी योजनाएँ जो किसी बड़े होटल में बैठकर बनाए गये थे ? वैसे हमारा राज्य तो स्रोतसाधान के हिसाब से बहुत ही कमजोर है, परन्तु अगर पन्नों मे उल्लेखित योजनाओं पर एक चौथाई भी प्रशासन तत्पर्य होता तो यह नौबत नहीं आती । विपदा का सामना करने लिए राज्य को जब भी, जहाँ भी, जैसे भी किसी भी स्थान में तैयारी अवस्था में रहना चाहिए । विपत्ति बोल के नहीं आती है, पर पूर्वानुमान तो रहता है । उक्त विपदा क्षति कितनी होगी यह जानकारी हमें नहीं होती है परन्तु पूर्व तैयार तो हमें रहना ही चाहिए ।
अब सवाल यह उठता है कि प्रकृति इतनी कुपित क्यों हो गई ? इसके पीछे मानव ही तो कहीं दोषी नहीं ? यह सवाल जायज भी है क्योंकि नदियों का जिस प्रकार से अतिक्रमण किया जा रहा है और उसमें अवैध खनन किया जा रहा है यह बहुत ही घातक है । सही मायने में प्रकृति को उग्र रूप धारण करने लिए कहीं न कहीं हम मानव ही न्यौता दे रहे हैं । इन विषयों पर मीडिया में कुछ वर्षो से बहस चली भी परन्तु कुछ निष्कर्ष नहीं निकल पाया ।
आश्विन १२ गते को मौसमी घटना के कारण बाढ तथा भूस्खलन से लगभग तीन सौ लोगों की मौत हुई और अरबों की क्षति हुई । बागमती प्रदेश के काभ्रे, धादिङ, नुवाकोट, ललितपुर, सिन्धुपाल्चोक जिला अत्यधिक प्रभावित हुई, इसका मुख्य कारण यह है कि इन्हीं जिलों में सबसे अधिक अवैध क्रसर और पहाड़ तोड़कर विकास की परिपाटी व्याप्त है । इन विषयों पर बार–बार चर्चा हुई पर किसी ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया । इसी प्रकार का हाल सभी नदियों के आसपास का है । डोेजर विकास ने जनता को सिर्फ विनाश ही दिखाया । फिलहाल पर्व त्यौहार के समय बहुत सारे मार्ग बाढ़ में बह गये हैं । शहर और गाँव सम्पर्कविहीन हो गया है । सरकार को पुनः सभी को एक दूसरे से जोड़ने के लिए बहुत चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा । लोग फिर भी डरे सहमें वैकल्पिक रास्तों से अत्यधिक समय लगााकर गाँव की तरफ बढ रहे हैं । राजधानी में पानी का अभाव, महामारी की सम्भावना प्रबल हो रही है । यद्यपि काठमांडू में जो क्षति हुई है उसका मुख्य कारण अव्यवस्थित सहरीकरण भी है ।
समग्र में हम नेपालियों की आदत है कि हम हमेशा दूसरे की कमी का ही मूल्यांकन करते रहते हैं, अपने आपको सदैव सच्चा, निर्दोश,विज्ञ साबित करने पर तुले रहते हैं मगर ऐसा नहीं है । कमियाँ हम में भी है । हम भी किसी सूचना को गम्भीरता पूर्वक नहीं लेते हैं । अगर लेते और समझते तो किसी को जान से हाथ नहीं धोना पडता । सुचना विभाग कह रहा था आश्विन ११ गते और १२ गते को कोई यात्रा न करें । फिर भी लोगों ने उसपर अमल नहीं किया फलस्वरूप खुद की क्षति कर ली । आजकल सभी के हाथों में सूचना का साधन होते हुए भी नजरअन्दाज करने की प्रवृति अधिक है । समाचार में यह भी आया था कि बाढ़ देखने के लिए गये कुछ व्यक्ति भी बह गये, इसको आप क्या कह सकते हैं ? निष्कर्षतः जैसा प्रशासन है वैसी ही जनता है । कोई किसी से कम नहीं ।