खेत मेरा बंजर ही रह जाएगा
गोपाल अश्क, साहित्यकार:‘गोपाल अश्क’ नेपाल के मर्ूद्धन्य साहित्यकारों में एक हैं और नेपाली, हिन्दी तथा भोजपुरी भाषा में समान रूप से कलम चलाते हैं । नेपाली तथा भोजपुरी में उन्होंने विभिन्न विधाओं की साधना की है लेकिन हिन्दी में उनकी सक्रियता कविता के क्षेत्र में अधिक रही है और विशेषतः गजल-लेखन के क्षेत्र में । हिन्दी में उनकी अब तक पाँच काव्य कृतियाँ प्रकाशित हैं और हिन्दी में उनकी सक्रियता भी अधिक है । हिन्दी भाषा और गजल विधा में सक्रियता के साथ-साथ नेपाल में हिन्दी की अवस्था और संभावना को आधार बनाकर प्रस्तुत है उनसे हिमालिनी की संक्षिप्त बातचीत का संपादित अंश ः
०सृजनशील साहित्य अर्न्तर्गत गजल विधा में आपकी सक्रियता अधिक होने का कारण क्या है –
-मुझे लगता है कि दिल की बातों को दिल से कहने की अगर कोई सक्षम विधा है तो वह गजल है । इसलिए इसमें गुनगुनाना अच्छा लगता है ।
० क्या अन्य विधाओं में दिल की बातें नहीं कही जा सकती –
– कही जा सकती है लेकिन गद्य साहित्य में दिल से ज्यादा दिमाग की बातें होती हैं । गजलों से इतर काव्य रचनाओं में दिल की बातें तो होती हैं मगर जिस सूक्ष्मता और संवेदनात्मक स्तर पर गजल में दिल की बातें कही जाती है, वह अन्यत्र नहीं पायी जाती ।
० ‘लिरिकल पोएट्री’ अर्थात् ‘गीतिकाव्य’ सर्न्दर्भ में तो यह बात लागू नहीं होती –
– यह मेरा व्यक्तिगत नजरिया है । गजल की पारम्परिक परिभाषा को देखा जाए तो ‘यार से प्यार की बातों को गजल कहते हैं ।’ इसके साथ-साथ इसमें व्यक्तिगत अनुभूतियाँ ज्यादा अभिव्यक्त हुआ करती हैं । यही वजह है कि गजल अन्य काव्ययिक रचनाओं की अपेक्षा दिल के ज्यादा करीब होती है ।
० आप तीन भाषाओं यथा नेपाली, भोजपुरी तथा हिन्दी में कलम चलाते हैं लेकिन स्वयं को र्सवाधिक सहज किस भाषा में महसूस करते हैं –
– प्रथमतः हिन्दी फिर भोजपुरी तथा नेपाली में ।
० हिन्दी के प्रति इस आकर्षा का कारण क्या है, जबकि नेपाल में हिन्दी को विदेशी भाषा कहकर अवहेलित किया जाता है –
– आपको यह जानकर शायद आर्श्चर्य लगे कि मैंने अपनी कई गजलें सपने में और वह भी हिन्दी में कही है और सुबह में उन्हें कागज पर उतारा है । कहना यह चाहता हूँ कि मैं हिन्दी में ही सपना देखता हूँ । इसकी वजह मेरी उच्च शिक्षा हिन्दी में होना है । जहाँ तक नेपाल में हिन्दी भाषा को विदेशी कहकर अवहेलित करने की बात है, वह बिल्कुल राजनैतिक है, जमीनी यथार्थ नहीं है । हकीकत यह है कि मैं जिस क्षेत्र का हूँ, यानी समग्र मधेश-प्रदेश क्षेत्र में हिन्दी पढÞे-लिखे घरों में जब शिकायत और अवहेलना की बात की जाती है तो वह अंग्रेजी में की जाती है, ठीक उसी तरह अन्य भाषाभाषी घरों में यही बात हिन्दी में की जाती है । कोई माने या न माने लेकिन नेपाल के पहाडÞी क्षेत्रों में अन्य भाषा भाषियों के बीच नेपाली सर्ंपर्क भाषा का काम करती है तो तर्राई मधेश में हिन्दी यही भूमिका निर्वहन करती है । कहने का अर्थ यह है कि हिन्दी नेपाल के तर्राई-मधेश की ही नहीं वरन गैरनेपाली भाषा भाषियों के लिए सर्म्पर्क भाषा का काम करती है ।
० नेपाल में हिन्दी का क्या भविष्य आप देखते हैं –
– गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली का कहना है कि ‘हिन्दी है जन-जन की वाणी, इसे अपने आप पनपने दो ।’
० अर्थात नेपाल के हिन्दी भाषियों को अभी इन्तजार करना चाहिए –
– किस चीज के लिए –
० नेपाल में हिन्दी के सम्मानजनक स्थान के लिए –
– कोई भाषा सम्मानित या अपमानित नहीं होती, वह तो प्रतिस्थापित और विस्थापित होती है । इसका विरोध करनेवाले इससे डÞरकर या घबराकर विरोध करते हैं । मैंने कई गोष्ठियों में नेपाली के नामचीन साहित्यकारों के अपने मुख से इस स्थिति को स्वीकार करते हुए पाया है ।
० क्या आप नहीं मानते कि नेपाल में हिन्दी को औपचारिक रूप से सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है –
– बिल्कुल जरूरत है क्योंकि जब तक किसी भाषा को राजनैतिक संरक्षण नहीं मिलता तब तक उसे बोलनेवाले स्वयं को संरक्षित और सम्मानित नहीं महसूस करते । नेपाल का एक बहुत बडÞा हिस्सा हिन्दी बोलता, पढÞता और लिखता है जो भाषायी रूप से स्वयं को संरक्षित और सम्मानित नहीं महसूस करते ।
० इस दृष्टि से मधेश की राजनीति कर रहे दलों को आप किस स्थिति में पाते हैं –
– बहुत दयनीय अवस्था है । कुछ दल ऐसे हैं जो बन्द कमरे में हिन्दी की वकालत करते हैं, अपने चुनावी क्षेत्र में हिन्दी में बात करते हैं लेकिन जब सही वक्त और सही जगह आती है तो पीछे हो जाते हैं और कुछ दल ऐसे हैं जो हिन्दी को केवल बैसाखी के रूप में प्रयोग करते हैं । इस तरह दोनों ही सूरतों में हिन्दी को लेकर दर्रि्र मानसिकता की स्थिति है ।
० आज मधेश-प्रदेश की बात हो रही है । अगर ऐसा होता है तो हिन्दी को किस रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए –
– मेरे विचार में हिन्दी को मधेश-प्रदेश की सरकारी भाषा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए –
० क्या इस क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषाएँ इस अवस्था को स्वीकार करेगी –
– भावना के स्तर पर नहीं करेगी और करना भी नहीं चाहिए लेकिन भाषा की मानक स्थिति, लिखने-पढÞने में वैज्ञानिकता का आधार और अपनी बात कहने की सबसे ज्यादा सुगमता की स्थिति के आधार पर इसे स्वीकार किया जाना चाहिए ।
० यह एक अच्छी बात है कि हिन्दी के प्रति आपका अत्यन्त सकारात्मक दृष्टिकोण है । आप भोजपुरी के उच्च हस्ताक्षर हैं । क्या आप नहीं चाहते कि तर्राई-मधेश की अन्य भाषाओं के ऐसे व्यक्तित्व हिन्दी के प्रति इस दृष्टिकोण का र्समर्थन करें ।
– नजरिया अपना-अपना होता है । निजी तौर पर मैं यह जरूर चाहता हूँ तथा मैं यह भी आपको बता दूँ कि भोजपुरी वाले हिन्दी को बहुत प्यार करते हैं और एक समृद्ध ज्येष्ठ बहन के रूप में इसे मानते हैं । मैं औरों की बात क्या कहूँ, भोजपुरी का हूँ और भोजपुरी की बात करता हूँ ।
० अन्त में नेपाल में हिन्दी के सम्बन्ध में निष्कर्षरूप में आप क्या कहना चाहते हैं –
– हालात यह है कि-
‘
खेत मेरा यह बंजर ही रह जाएगा
धरती पर होती अब बरसात नहीं ।
मंजूर नामंजूर की कोई बात कहाँ
मैंने डÞाला है कोई दरखास्त नहीं ।’
लेकिन सच्चाई कुछ और बयाँ करती है-
‘मुझको दो सम्मान तेरा भी मान होगा
तुझको तेरे निर्ण्र्ाापर इत्मीनान होगा ।
मैं हिन्दी हूँ गंगा की तरह पतितपावनी
आओ करो स्न्ाान तेरा कल्याण होगा ।