मानव जीवन में भाषा का महत्व जीवन के बाद भी मेरी कृतियों में हमेशा जीवित रहेगी, हिंदी भाषा:- एस.एस. डोगरा
हिमालिनी अंक जनवरी 025 । बचपन में जब मैंने पहला शब्द बोला होगा, वह मेरी माँ ही जानती होंगी, लेकिन इतना तय है कि वह हिंदी के सिवा कोई और भाषा नहीं रही होगी । घर, परिवार, दोस्तों के साथ संवाद करने से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई हिंदी भाषा के सहारे ही हुई । हालांकि, छठी कक्षा में अंग्रेजÞी वर्णमाला सीखी और उच्च शिक्षा—बी.ए., बी.एड., पत्रकारिता में एम.ए., और मास्को, रूस से टीवी एवं ऑनलाइन पत्रकारिता का अध्ययन—अंग्रेजÞी माध्यम से किया । फिर भी, हिंदी के प्रति मेरा विशेष लगाव हमेशा बना रहा, जो भारतीय होने के नाते स्वाभाविक है ।

आज मानव जीवन में भाषा की भूमिका पर चर्चा करना प्रासंगिक है । भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा, और विचारधारा को संरक्षित व संप्रेषित करने का सबसे सशक्त साधन है । भाषा के बिना समाज की कल्पना करना असंभव है । यह हमें भावनाओं, विचारों, और आवश्यकताओं को व्यक्त करने में सक्षम बनाती है । शिक्षा के क्षेत्र में भी भाषा का महत्व सर्वोपरि है ।
भाषा सामाजिक एकता का मुख्य आधार है । यह समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ती है, विचारों का आदान–प्रदान करती है, और विकास में योगदान देती है । जो व्यक्ति जहां जन्म लेता है, उसे अपनी मातृभाषा से स्वाभाविक लगाव होना चाहिए । मेरे लिए हिंदी वह भाषा है, जिसने मुझे पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने का अवसर दिया । मेरी दो हिंदी पुस्तकें—“मीडिया एक कदम आगे” (२०१९) और “मेरे हमसफÞर” (२०२१)—इस बात का प्रमाण हैं । हिंदी भाषा न केवल मेरे लेखन में जीवित है, बल्कि मेरे जीवन के बाद भी मेरी कृतियों में जीवित रहेगी ।
हिंदी भाषा की वैश्विक स्थिति और चुनौतियाँ
हिंदी की लोकप्रियता भारत से बाहर भी देखी जा सकती है । एशिया, यूरोप, अफ्रीका, और खाड़ी देशों में हिंदी समझने और बोलने वाले लोग हैं । इसमें भारतीय सिनेमा का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है । हिंदी गानों की मधुरता ने इसे विश्व मंच पर पहचान दिलाई है । हालाँकि, विडंबना यह है कि हमारे ही देश में कई स्थानों पर हिंदी को हाशिए पर रखा गया है । कई स्कूलों में हिंदी बोलने पर जुर्माना लगाया जाता है, और प्रशासनिक पत्राचार से लेकर राष्ट्रीय मंचों पर अंग्रेजÞी का दबदबा है । यह स्थिति तब और दुखद हो जाती है, जब संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में हिंदी को आधिकारिक दर्जा नहीं मिल पाता । इसके पीछे हमारी नीतियों और प्रयासों की कमी भी एक कारण है ।
हिंदी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की दिशा में प्रयास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “मन की बात” कार्यक्रम और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा मेडिकल पढ़ाई को हिंदी माध्यम में लागू करने जैसे प्रयासों से हिंदी को सम्मान मिला है । अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी का उपयोग गर्व की बात है । लेकिन इसे और आगे ले जाने के लिए हमें संगठित प्रयास करने होंगे । मेरा मानना है कि पत्रकारों और साहित्यकारों की यह जिम्मेदारी बनती है कि हिंदी साहित्य और भाषा को अन्य भाषाओं में अनुवादित कर वैश्विक मंच तक पहुँचाया जाए । मैंने स्वयं हिंदी और अंग्रेजÞी दोनों भाषाओं में लेखन किया है, जिससे मेरी पुस्तकों ने नेपाल, रूस, अमेरिका, इंग्लैंड, और कनाडा जैसे देशों में अपनी जगह बनाई है ।
निष्कर्ष
भाषा मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है । यह हमारी पहचान और संस्कृति का प्रतिबिंब है । हिंदी भाषा को उसका वास्तविक स्थान दिलाने और वैश्विक मंच पर पहुँचाने के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, पाँच पुस्तकों के रचयिता और हिमालिनी पत्रिका के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख हैं । )
विश्व हिंदी दिवस पर हिन्दी का गौरव बढ़ाने का प्रण लें

हिंदी को नई ऊंचाइयों तक ले जाएं
– संजय के. रॉय, प्रबंध निदेशक, टीमवर्क आट्र्स (जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल)
हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर और पहचान का आधार है । यह संवाद और अभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम है, जो हमारी विविधता में एकता को दर्शाता है । आज हिंदी का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि यह विश्व पटल पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कर रही है । तकनीक, शिक्षा और कला के हर क्षेत्र में हिंदी का उपयोग बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है । आइए, मिलकर हिंदी के सम्मान को नई ऊंचाइयों तक ले जाएं और आने वाली पीढÞियों के लिए इसे और भी समृद्ध बनाएं ।
भारत की आत्मा है हिंदी भाषा..
– वरिष्ठ पत्रकार –अशोक कुमार निर्भय (दिल्ली)

भारत की मातृभाषा हिंदी है और वही इसकी सांस्कृतिक पहचान का आधार है । हिंदी न केवल भारतीय जनमानस को जोड़ती है, बल्कि यह विश्व स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कुवैत में “रामचरितमानस“ और “श्रीमद्भगवद्गीता“ का विमोचन इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति और भाषा को वैश्विक मान्यता मिल रही है । हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा है । हिंदी न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों के लिए भी उनकी जड़ों से जुड़ने का माध्यम है । यह गर्व की बात है कि अन्य देशों के लोग भी इसे सीखने और समझने में रुचि दिखा रहे हैं । भविष्य में, हिंदी का प्रसार और इसकी स्वीकार्यता और बढ़ेगी । यह समय है कि हम अपनी मातृभाषा पर गर्व करें और इसे बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करें ।
दैनिक जीवन में हिन्दी को अपनाएं
भारत सरकार में अधिकारी एवं लेखक– कृष्ण कुमार (दिल्ली)

हिन्दी हमारी संस्कृति की आत्मा है । यह सिर्फ भाषा नहीं, बल्कि एक भावना है । यही भावना हमारी पहचान है । हमें इस भावना को संजो कर रखना चाहिए । किसी भी देश की पहचान उसकी भाषा से होती है । भाषा मजबूत होगी तो देश मजबूत होगा । महावीर प्रसाद द्विवेदी ने तो यहां तक कहा है– आप जिस तरह बोलते हैं, बातचीत करते हैं, उसी तरह लिखा भी कीजिए । भाषा बनावटी नहीं होनी चाहिए ।
बड़े शर्म की बात है अंग्रेज देश छोड़कर चले गए पर अंग्रेजियत अभी भी बरकरार है । जबकि जापान, चीन, रूस आदि जैसे देश सिर्फ अपनी भाषा में अपने देश का कामकाज करते हैं । जापान में तो अगर कोई सरकारी अधिकारी जापानी नहीं जानता हो तो उसे राजपत्रित अधिकारी नहीं बनाया जाता है । भारत सरकार ने राजभाषा नियम में यह प्रावधान कर दिया है कि अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों को भी हिन्दी के रूप में प्रयोग कर सकते हैं । जरूरी है दैनिक जीवन में हिन्दी को अपनाएं और हिन्दी का गौरव बढ़ाएं ।
हिंदी मात्र भाषा नहीं, मातृ भाषा है

कमर अब्बास–अध्यक्ष–राजस्थान टेक्निकल लाईब्रेरी एसोसिएशन
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिनु निज भाषा–ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल ।”
हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा, इतिहास, संस्कृति और सभ्यता की गूंज है । हर वर्ष १४ सितंबर को हिंदी दिवस मनाना इस बात का प्रतीक है कि हम अपनी राष्ट्रीय भाषा के प्रति गर्व महसूस करते हैं और इसे सहेजने के लिए प्रतिबद्ध हैं । हिंदी भाषा ने साहित्य, कला, शिक्षा और संचार के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है । हिंदी के विकास और प्रचार–प्रसार के लिए हमें इसे दैनिक जीवन में अपनाना होगा । आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि हिंदी को केवल एक भाषा नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व का अभिन्न अंग बनाएंगे क्योंकि हिंदी मात्र भाषा नहीं, मातृ भाषा है ।
हिन्दी अब संसार की भाषा है

दीपक कुमार टांक–नृत्य, योग, फिटनेस, मूकाभिनय गुरू (दिल्ली)
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है मगर अब हिन्दी विश्व स्तर पर अपना एक अलग मुकाम बना रही है । संसार मे, हिन्दी भाषा की लोकप्रियता बहुत बढ रही है, अब लोग हिन्दी सीख कर बहुत खुश है । मैने अपने कई विदेशी मित्रों को बहुत अच्छी हिन्दी बोलते हुए सुना है हिन्दी अब संसार की भाषा है । हम सबको, हिन्दी भाषा पर गर्व करना चाहिए । जय हो राष्ट्र भाषा हिन्दी
हिंदी में रमकर हिंदीमय हो जायें

डा. तेजिंद्र, कैथल (हरियाणा, भारत)
१० जनवरी–विश्व हिंदी दिवस के पावन अवसर पर विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों को बहुत–बहुत बधाई देता हूँ । हिंदी हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक, बल्कि इससे भी आगे की भाषा है । यह आधुनिक तकनीक, कम्प्यूटर और आने वाले कल की भाषा है । आज हिंदी विश्व–पटल पर अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है । विश्व में हमारी हिंदी का बहुत विस्तार हुआ है । फिर भी हिंदी को विश्व–व्यापी भाषा बनाने के लिये और काम करने की आवश्यकता है । हिंदी हमारे मन की भाषा है । हिंदी हमारी भाषा तो है ही । आवश्यकता इस बात की है कि हम भी हिंदी के हो जायें । हिंदी में रमकर हिंदीमय हो जायें । हिंदी लिखें, हिंदी पढ़े और हिंदी को ही सोचें । हिंदी को और उदार बनायें । हिंदी की अपनी लिपि देवनागरी लिपि है । दैनिक क्रियाकलापों में और पारस्परिक संवाद में प्रतिदिन हिंदी भाषा का प्रयोग करें । दूसरों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करें ।
हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा

विपिन के सेठी– रंगकर्मी एवं फिल्मकार
हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा ये पंक्तियां सुनते ही हमें गर्व होता है के हमने ऐसी भूमि पर जन्म लिया जहां की मातृ भाषा हिंदी । सन १९६५ में हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिया गया । हिंदी भाषा हम सब हिन्दुस्तानियों को जोड़ती है । हिंदी के उच्चारण में एक मिठास आती है । हमारा पहला शब्द जो बच्चा सबसे पहले बोलता है मां, वो भी हिंदी में ही है । हिंदी को मेरा हाथ जोड़कर प्रणाम ।
हिंदी ने दी मुझे राष्ट्रीय पहचान

राजल सिंह –बेस्ट सेलिंग लेखक
मैं एक बेस्ट सेलिंग भारतीय लेखक हूँ, अब तक हिंदी भाषा में ही ६ पुस्तकें लिख चुका हूँ, जिसमे हिंदी में ही लिखी राजल नीति टाइम मैनेजमेंट जबरदस्त रूप से सफल रही और इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसका अनुवाद अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, ओडि़या और पंजाबी में हुआ । हिंदी हमारी मातृभाषा है और गर्व के साथ इसका प्रयोग करें । हिंदी भाषा में अगर आप अच्छी जानकारी रखते हैँ तो आपके पास अवसर ही अवसर हैँ । मीडिया से लेकर फिल्मों तक, व्यवसाय से लेकर शिक्षा तक हर जगह हिंदी की आवश्यकता और सम्भावनाएं हैँ । खुद भी हिंदी का प्रयोग करें और दूसरों को भी हिंदी प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि हिंदी ने जी मुझे राष्ट्रीय पहचान दी ।
हिंदी विश्व भाषा बन चुकी है
शिक्षाविद् डॉ. दयानंद वत्स भारतीय

वर्तमान परिपेक्ष्य में हिंदी के वैश्विक प्रचार–प्रसार में हिंदी सिनेमा, हिंदी प्रिंट एवं इलैक्ट्रानिक्स मीडिया, टीवी धारावाहिकों का योगदान सर्वोपरि है । हिंदी के समाचारपत्र और पत्रिकाओं, हिंदी संवाद समितियों, समाचार और मनोरंजन चैनलों और हिंदी फिल्मों, आकाशवाणी और दूरदर्शन, हिंदी संवाद समितियों ने हिंदी को विश्व भाषा बना दिया है । बालीवुड की फिल्में भी विश्व पटल पर हिंदी के प्रचार प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण वैश्विक भूमिका निभा रही हैं । आज हिंदी रोजगार की भाषा बन चुकी है । अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के मजबूती से बढते कदम एक सुखद संकेत हैं । भारतीय लेखकों, गीतकारों, गायक– गायिकाओं, फिल्मकारों और संगीतकारों ने हिंदी के विकास में अपना प्रत्यक्ष योगदान दिया है । हिंदी भाषा के शिक्षण के लिए सैंकड़ों विदेशी विश्वविद्यालयों में शिक्षा दी जा रही है । हिंदी में लेखन बढ़ा है । हिंदी समाचारपत्रों की पाठक संख्या बढी है । हिंदी पत्रकारिता के प्रति युवाओं में भारी जोश है । हिंदी के साहित्यकार भी हिंदी के उन्नयन हेतु वैश्विक स्तर पर सराहनीय कार्य कर रहे हैं । विश्व के अनेकों देशों में हिंदी के शिक्षण की व्यवस्था आम बात है । विदेश में स्थित विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है । आर्थिक उदारीकरण के बाद हिंदी विश्व भाषा बन चुकी है ।
हिन्दी हमारी संस्कृति का प्राण एवं पहचान है

किशोरी लाल शर्मा (उप निरीक्षक दिल्ली पुलिस)
हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसके द्वारा आप अपनी बात को बडी आसानी से किसी को समझा सकते है । कुछ लोग भले ही आज अंग्रेजी बोलने में अपनी आन, बान और शान समझते हो । लेकिन सच तो यही है कि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी बेहद खूबसूरत है जो हर एक भारतवासी को वैश्विक स्तर पर मान सम्मान दिलाती है । हिन्दी भाषा एवं हिन्दी साहित्य को पूरे विश्व में फैलाने के उद्देश्य से हर साल विश्वभर में १० जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है । हिन्दी बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ यह विश्व की संभवत सबसे वैज्ञानिक भाषा है । जिसे दुनिया भर में, समझने और बोलने वाले बड़ी संख्या में मौजूद है इसलिए यह विश्व की भाषा है । जो आधुनिक प्रगति में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है ! हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता के बीच हिंदी एक सेतू भी है । हिंदी भारत देश की आत्मा है । हिन्दी हमारी संस्कृति का प्राण है । हमारी पहचान है । हिन्दी हमें अपनी आत्मा से जोड़ती है और हमें अपनी विरासत को समझने में मदद करती है । हिन्दी भाषा के उत्थान और विश्वव्यापी विस्तार के लिए हिंदी को विश्व स्तर पर जन जन तक पहुंचाने के लिए आगे आकर कार्य करें । जन जन को हिन्दी बोलने के लिए, हिन्दी मे पत्राचार एवं अन्य सभी कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करें । सभी अपना लेखन एवं पत्राचार आदि भविष्य में हिन्दी मे ही करें । हम सभी मिल कर हिन्दी भाषा के विश्व स्तर पर उज्वल भविष्य के लिए कार्य करें । “जय हिन्दी–जय हिन्द”
हिंदी का उपयोग करने की आदत डालनी चाहिए
सुनील नेगी÷संपादक, यू.के. नेशनन्यूज, अध्यक्ष, उत्तराखंड पत्रकार मंच, निदेशक प्रेस क्लब ऑफ इंडिया

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि हिमालिनी पत्रिका, नेपाल का पहला जनवरी अंक प्रकाशित हो रहा है, जो भारतीयता और इसकी वैश्विक पहचान को बनाए रखने के लिए मातृभाषा हिंदी को समर्पित है । हिंदी विश्व स्तर पर सबसे प्यारी, स्वीकृत और प्रचलित भाषा है जो दुनिया भर में रहने वाले भारतीयों और हिंदी भाषी एशियाई लोगों के बीच संचार में अत्यंत सहायक है । हिंदी विश्व स्तर पर इतनी लोकप्रिय और स्वीकार्य है कि अब विभिन्न राष्ट्रीयताओं के विदेशी भी इसका अध्ययन कर रहे हैं और इस विषय में डॉक्टरेट भी कर रहे हैं । भारत में लगभग ९०% आबादी हिंदी में पारंगत है और यह दुनिया भर में लोकप्रिय भी है । लेकिन अभी भी व्यापक स्तर पर हिंदी के प्रचार–प्रसार पर ध्यान देने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है विशेषतौर पर नई पीढ़ी को मातृभाषा हिंदी का उपयोग करने की आदत डालनी चाहिए । सरकार को उन लेखकों, पत्रकारों, साहित्यकारों और रंगकर्मियों आदि को भी प्रेरित और प्रोत्साहित करना चाहिए जो कई वर्षों से हिंदी के प्रचार–प्रसार और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । केंद्र सरकार और सभी राज्यों की सरकारों को पाठ्यक्रम में हिंदी विषय को अनिवार्य बनाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत के प्रत्येक छात्र को अपनी मातृभाषा में बोलने और लिखने का बुनियादी ज्ञान हो और लिखित रूप में संवाद करने में इसका अधिकतम स्तर तक उपयोग हो । इतना ही नहीं, बल्कि कार्यालय पत्राचार और नोटिंग आदि में भी हिंदी भाषा के प्रयोग पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए । हमारी राष्ट्रीय हिंदी भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित हिमालिनी के जनवरी संस्करण की सफलता के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ।
अंतरराष्ट्रीय संचार की भाषा है हिंदी
पूजा धनखड, सीरियल उद्यमी, सेलिब्रिटी स्टाइलिस्ट, व्यक्तित्व परिवर्तन कोच और एक सामाजिक कार्यकर्ता

हिंदी भाषा का महत्व विश्वभर में अत्यधिक है । यह भारत की राजभाषा होने के साथ–साथ विश्व की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, जिसके ५० करोड़ से अधिक वक्ता हैं । इसका महत्व भारत की सीमाओं से परे है, नेपाल, भूटान और अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी हिंदी भाषी लोगों की एक बड़ी संख्या है ।
डिजिटल युग ने भी हिंदी के बढ़ते महत्व में योगदान दिया है, क्योंकि यह भाषा सोशल मीडिया, ऑनलाइन फोरम और डिजिटल सामग्री निर्माण में व्यापक रूप से उपयोग की जा रही है । हिंदी भाषा के मीडिया चैनलों, जिनमें टेलीविजन चैनल, रेडियो स्टेशन और ऑनलाइन समाचार पोर्टल शामिल हैं, के उदय ने इसकी वैश्विक पहुंच को और भी बढ़ा दिया है । जिसकी वजह से हिंदी ने अंतरराष्ट्रीय संचार की भाषा के रूप में प्रमुखता प्राप्त की है साथ ही भारत और अन्य देशों के बीच बढ़ते आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों ने हिंदी भाषा कौशल की मांग को बढ़ावा दिया है । यह एक अंतरराष्ट्रीय संचार की भाषा, सांस्कृतिक आदान–प्रदान और आर्थिक सहयोग की भाषा है, जो विश्व के विभिन्न हिस्सों में इसके बढ़ते महत्व को दर्शाती है ।
हिन्दी को सही मायने में विश्व भाषा की गरिमा प्रदान हो
डॉ. नीलम सिंह, सहायक प्रोफेसर हिंदी डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, वाराणसी

जााहिर है कि जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी अपेक्षाकृत ज्यादा महत्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में इजाफा पाती है तो उस राष्ट्र की तमाम चीजे स्वतः महत्वपूर्ण बन जाती हैं । ऐसी स्थिति में भारत की विकासमान अन्तर्राष्ट्रीय हैसियत हिन्दी के लिए वरदान सदृश्य है । यह सच है कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती उपस्थिति हिन्दी की हैसियत का भी उन्नयन कर रही है । आज हिन्दी राष्ट्र भाषा की गंगा से विश्व भाषा का गंगा सागर बनने की प्रक्रिया में है ।
वैश्विक स्तर पर वही भाषा टिक पायेगी जिसका शब्द भण्डार या शब्दकोश बड़ा हो । इस लिहाज से हिन्दी का यह सौभाग्य रहा है कि भारत में अनेक विदेशियों ने आकर शासन किया फलस्वरूप हिन्दी भाषा शासकीय भाषाओं से प्रभावित हुई और उसका शब्द भण्डार जो संस्कृत के प्रभाव से पहले ही अत्यधिक समृद्ध था, वह और भी सम्पन्न होता गया, आज अरबी, फारसी, उर्दू, फ्रासिंसी, पुर्तगाली और अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्दों को आत्मसात् कर हिन्दी विश्व की श्रेष्ठ भाषाओं भाषाओं की जमात में शामिल है । हिन्दी वह भाषा थी जो प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम हो या उसके बाद चले आन्दोलन देश भर में आजादी की अलख जगाने में सेतु बनी, खास कर उत्तर भारत में । यही वजह रही कि स्वतन्त्रता के पश्चात् अंग्रेजो की ओर से बनाई व्यवस्था में हर काम अंग्रेजी में होने और अभिजात्य वर्ग के अंग्रेजी का प्रयोग करने के बावजूद २२ बोलियों से युक्त हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया ।
जबकि सम्पूर्ण विश्व में भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का ही नाम लिया जाता है मगर अपने ही देश में आजादी के ७५ वर्ष बाद भी हिन्दी राजभाषा के पद पर ही स्थित है । पद्मावत, रामचरितमानस तथा कामायनी जैसे महाकाव्य विश्व के किसी भाषा में नहीं है । आज हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में जितने रचनाकार सृजन कर रहे हैं, उतने बहुत सारी भाषाओं के बोलने वाले भी नहीं हैं । केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में दो सौ से अधिक हिन्दी साहित्यकार सक्रिय हैं जिनकी पुस्तकें छप चुकी हैं ।
आओ आज विश्व हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर, हमसव मिलकर हिन्दी के विकास यात्रा में शामिल हों । ताकि तमाम निष्कर्षों एवं प्रतिमानों पर कसे जाने के लिए हिन्दी को सही मायने में विश्व भाषा की गरिमा प्रदान कर सकें ।
प्रस्तुति ः एस एस डोगरा