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भूमि अध्यादेश के अडान पर उपेंद्र यादव कायम हैं या पीछे हटें ?

काठमांडू, 5 मार्च 2025 । नेपाल की राजनीति में इन दिनों भूमि संबंधी अध्यादेश को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है। इस अध्यादेश को लेकर जनता समाजवादी पार्टी (जसपा) नेपाल और सरकार के बीच तनातनी देखने को मिल रही है। जसपा नेपाल के अध्यक्ष उपेंद्र यादव ने इस अध्यादेश के खिलाफ मजबूत अडान अपनाने का दावा किया था, जिसे उनके समर्थकों ने “चट्टानी अडान” करार दिया। लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या वाकई में यह अडान इतना अटल था, या फिर यह राजनीतिक दबाव के आगे झुक गया?

अध्यादेश पर विवाद और जसपा का दावा

भूमि संबंधी अध्यादेश को लेकर जसपा नेपाल का कहना है कि यह जनता और देश के हित में नहीं है। पार्टी का आरोप है कि यह अध्यादेश रियल स्टेट माफिया, भूमाफिया और दलालों के हितों को संरक्षण देने के लिए लाया गया है। साथ ही, तराई/मधेस के जंगल, सार्वजनिक जमीन और अन्य संसाधनों को सत्ताधारी दलों के कार्यकर्ताओं के बीच बांटने की मंशा इसके पीछे है। जसपा नेपाल के अध्यक्ष उपेंद्र यादव ने इसे फिर्ता लेने की मांग को लेकर अपनी पार्टी के केन्द्रीय समिति की बैठक में सख्त रुख अपनाया था। बैठक में यह भी तय किया गया था कि अगर यह अध्यादेश फिर्ता नहीं हुआ, तो सरकार को समर्थन देने पर भी पुनर्विचार किया जाएगा।

फागुन 18 से 20 तक चली इस बैठक में उपेंद्र यादव ने अपने राजनीतिक और संगठनात्मक प्रतिवेदन में स्पष्ट कहा था कि भूमि संबंधी अध्यादेश फिर्ता न होने पर अन्य पांच अध्यादेशों को समर्थन नहीं दिया जाएगा। इस प्रतिवेदन को केन्द्रीय समिति ने सर्वसम्मति से पारित भी कर दिया। जसपा नेताओं का दावा था कि इस अडान से उनकी पार्टी के प्रति जनता का विश्वास बढ़ा है।
सरकार के साथ समझौता: अडान से पीछे हटे यादव?
लेकिन कहानी में एक नया मोड़ तब आया जब उपेंद्र यादव ने उसी दिन प्रधानमंत्री निवास बालुवाटार में नेपाली कांग्रेस और नेकपा एमाले के नेताओं के साथ बैठक की। इस बैठक में यह सहमति बनी कि भूमि संबंधी अध्यादेश को फिलहाल थाती रखा जाए और बाकी पांच अध्यादेशों को संसद से पारित कराया जाए। बुधवार को जसपा नेपाल की संसदीय दल की बैठक में भी इस फैसले को औपचारिक रूप दे दिया गया।
जसपा के प्रवक्ता मनीष सुमन और प्रमुख सचेतक रेखा यादव ने दावा किया कि सरकार ने भूमि संबंधी अध्यादेश को फिर्ता लेने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसके आधार पर वे अन्य अध्यादेशों का समर्थन कर रहे हैं। सुमन ने कहा, “हम अपने अडान से पीछे नहीं हटे हैं। सरकार के साथ हमारी सहमति है कि वह इस अध्यादेश को फिर्ता लेगी, और हमें विश्वास है कि ऐसा होगा।” रेखा यादव ने भी कहा कि अगर सरकार अपनी प्रतिबद्धता से मुकरती है, तो यह उसके लिए नैतिक संकट होगा।
हालांकि, एमाले के प्रमुख सचेतक महेश बर्तौला का कहना है कि अध्यादेश को फिर्ता लेने की कोई सहमति नहीं हुई। उनके मुताबिक, पहले पांच अध्यादेश पारित होंगे और फिर भूमि संबंधी अध्यादेश पर चर्चा कर इसे भी पास कराया जाएगा। यह बयान जसपा के दावों से बिल्कुल उलट है।
क्या जसपा ने घुटने टेके?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जसपा नेपाल अपने “चट्टानी अडान” से पीछे हट गई है। सरकार ने अभी तक अध्यादेश को फिर्ता नहीं लिया है, फिर भी जसपा ने अन्य अध्यादेशों को समर्थन देने का फैसला कर लिया। यह स्थिति तब और स्पष्ट होती है, जब यह पता चलता है कि बालुवाटार में रात 10 बजे तक चली बैठक के बाद जसपा ने सरकार को समर्थन जारी रखने का फैसला किया। पहले पार्टी ने यह धमकी दी थी कि अगर अध्यादेश फिर्ता नहीं हुआ, तो सरकार से समर्थन वापस लिया जाएगा। लेकिन अब वह इस मुद्दे को थाती रखकरसरकार के साथ सहयोग करने को तैयार हो गई है।
जसपा की मजबूरी या रणनीति?
राष्ट्रीय सभा में जसपा नेपाल की भूमिका निर्णायक है। सरकार को समर्थन देने वाली इस पार्टी के बिना यह अध्यादेश पारित नहीं हो सकता। ऐसे में कांग्रेस और एमाले ने जसपा को मनाने के लिए बालुवाटार में लंबी बैठक की। जसपा के नेताओं का कहना है कि यह उनकी जीत है, लेकिन सरकार पक्ष का दावा है कि यह महज एक समझौता है, जिसमें अध्यादेश को अभी थाती रखा गया है।
निचोड़
भूमि संबंधी अध्यादेश और उपेंद्र यादव का अडान अब एक राजनीतिक नाटक का हिस्सा बन चुका है। जसपा का दावा है कि उसने सरकार को झुकाया, जबकि सरकार पक्ष इसे अपनी रणनीति की सफलता बता रहा है। सच्चाई जो भी हो, यह स्पष्ट है कि जसपा अपने मूल अडान से पीछे हटी और सरकार के साथ समझौते की राह पर चल पड़ी। अब सवाल यह है कि क्या सरकार वाकई में इस अध्यादेश को फिर्ता लेगी, या यह सिर्फ जसपा को शांत करने का एक वादा था? आने वाले दिन ही इसकी सच्चाई सामने लाएंगे।

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