प्रेम जीवन का वह उपादान है, जिससे हर युद्ध जीता जा सकता है : बसंत चौधरी

हिमालिनी, अंक फरवरी 025। नेपाल के साहित्य जगत में चिरपरिचित नाम है बसंत चौधरी । जिन्होंने साहित्य की हर विधा में अपनी कलम चलाई है । आपकी कविताओं में प्रेम है, प्रकृति है, रिश्ते हैं और जीवन से आबद्ध प्रत्येक रंग भी । हाल ही में आपकी दो कृतियों वक्त रुकता नहीं और ठहरे हुए लम्हें का विमोचन गजलकुंभ हरिद्वार में हुआ है । इसी संदर्भ में प्रस्तुत है हिमालिनी की संपादक डॉ.श्वेता दीप्ति का कवि हृदय बसंत चौधरी जी के साथ एक विशेष बातचीत का संपादित अंश
० सर्वप्रथम नवीनतम कृति प्रकाशन के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ एवं बधाई ।
– धन्यवाद
० आप एक सफल उद्योगपति हैं और साहित्यकार भी, किन्तु बसंत चौधरी स्वयं की नजर में क्या हैं
– यह सच है कि मैं व्यवसायी हूँ और अक्सर मुझे इसी रूप में पहचाना जाता है किन्तु मैं अपने अन्तर्मन से साहित्य के प्रति प्रेम रखने वाला व्यक्ति हूँ । वह शायद इसलिए कि मैं प्रकृति से, व्यक्ति से, मानवता से और इनसे आबद्ध प्रत्येक आलम्बन से प्रेम करता हूँ । और जब आप में संवेदनशीलता का प्रचूर भाव मौजूद हो तो आपका साहित्य के प्रति रुझान स्वतः हो जाता है । बस यही वजह है कि मैं अपने भावों को गीत, गजल कविता आदि के माध्यम से व्यक्त करना पसंद करता हूँ ।
० अभी आपकी दो कृति बाजार में आई है, वक्त रुकता नहीं और ठहरे हुए लम्हें इसके शीर्षक काफी रोचक है । इसके विषय में कुछ बताना चाहेंगे ?
– शीर्षक किसी भी कृति का आईना होता है । जब आपके हाथों में कोई नई पुस्तक आती है तो सर्वप्रथम उसका शीर्षक ही आपको उस पुस्तक के प्रति अभिरुचि जगाता है । इसलिए कोशिश रहती है कि शीर्षक आकर्षक और जिज्ञासापूर्ण हो ।

० ‘वक्त रुकता नहीं’ इस शीर्षक का भाव क्या है और इसमें कविताओं के कौन से रूप मिलते हैं ?
– हम सभी जानते हैं कि वक्त किसी के लिए नहीं रुकता परन्तु हर गुजरा वक्त हमें कुछ ना कुछ अवश्य दे जाता है । वक्त रुकता नहीं में कविताओं को दो वॉल्यूम में संग्रहित किया गया है । एक का उपशीर्षक है ‘जीवन प्रवाह’ और दूसरे का उपशीर्षक है ‘प्रेम प्रवाह’। इससे यकीनन यह स्पष्ट हो जाता है कि इन संग्रहों में जीवन दर्शन और जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाव प्रेम की कविताएँ हैं । जीवन दर्शन जहाँ जीवन के प्रति आपको सकारात्मक रखता है वहीं प्रेम आपको जीवन में सतत आगे बढ़ने की उर्जा प्रदान करता है । बस इन्हीं भावों का संयोजन है ‘वक्त रुकता नहीं’ ।
० ‘ठहरे हुए लम्हें’ में आप ‘सागर’ उपनाम के साथ सामने आए हैं इसकी कोई खास वजह ?
– खास तो कुछ नहीं है । परंतु मुझे सागर हमेशा आकर्षित करता रहा है । सागर वह है जो अपने आप में सब कुछ समाहित करने की क्षमता रखता है । कभी कभी स्वयं को उसकी जगह पाता रहा हूँ । बस इसी ख्याल ने सागर के करीब ला दिया ।
० ‘ठहरे हुए लम्हें’ और ‘वक्त रुकता नहीं’ में क्या कोई सामंजस्य है ?
– यकीनन है, क्योंकि गुजरते वक्त में ही से हम कुछ लम्हों को अपने अंदर सुरक्षित रख लेते हैं, जो हमारे अंदर कहीं ठहर जाता है । ये हमारे अनुभव होते हैं, हमारी खलिश होती है और कुछ खोने और पाने की दास्तान भी । इस तरह देखें तो इनमें अवश्य एक तारतम्य है जो पाठक स्वतः पा लेंगे ।
० आपकी नजर में जीवन–दर्शन क्या है, जीवन को आप कैसे देखते हैं ?
मुझे लगता है स्वयं की शक्तियों को पहचानने का ज्ञान ही जीवन–दर्शन का मुख्य तत्व है, जिसको आत्म–तत्व भी कह सकते हैं । यही वह ज्ञान है जो हमें अपनी शक्तियों को समाज के कार्यो में लगाने की प्रेरणा देता है । हमारी इंद्रियां मन के अधीन होती हैं और मन बुद्धि के । बुद्धि का संबंध आत्मा से है जो बुद्धि को संयत रहने के लिए प्रेरित करती है । और हमें पता है कि आत्मा ही परमात्मा का अंश है । यही हमें सत्कर्म की ओर ले जाता है । इसलिए मुझे लगता है कि अपनी आत्मा को परिष्कृत कर जीवन को दिशा देना ही सही जीवन दर्शन है ।
जहाँ तक जीवन को मेरी नजर से देखने की बात है तो मैं जीवन को उसी रूप में सार्थक मानता हूँ जब हम अपने जीवन को मानवता और नैतिकता के साथ जोड़कर जीते हैं ।
० ‘ठहरे हुए लम्हें’ में ‘सागर’ किस रूप में अभिव्यक्त हुआ है ?
– ‘ठहरे हुए लम्हें’ में सागर ने जीवन के हर पहलू को समेटने की कोशिश की है । यह गजल संग्रह है । जिसके हर शेर में एक अलग रंग है, एक अलग कहानी है जो मेरी नहीं हम सब की है ।
० प्रेम–प्रवाह का संदेश क्या है ?
– मैंने हमेशा प्रेम को और प्रेम में जीने की कोशिश की है । क्योंकि प्रेम जीवन का वह उपादान है जिससे हर युद्ध जीता जा सकता है । द्वेष और घृणा कभी भी हमें सकारात्मकता प्रदान नहीं कर सकती । ये हमें आगे बढने से बाधित करती है । प्रेम में मेरा यकीन है और मुझे लगता है कि इससे ही दुनिया बदलती है । इसलिए यही मेरी कविताओं का आधार रहा है । प्रेम दुनिया के सबसे खूबसूरत अहसासों में से एक अहसास है जिसे हम न छू सकते हैं, न देख सकते हैं बस महसूस कर सकते हैं । यह वह वृक्ष है जिसमें फल और फूल तो नहीं होते पर यह हमें तृप्त और संतुष्ट अवश्य करती है । जहाँ तक कविताओं का सवाल है तो कविताओं में कोमल भावनाएँ तो मिलती ही हैं, पर इसमें कटु यथार्थ के पहलू चाहे वो आँसू हो, खुशी हो, प्यार हो, भूख हो या मौत हो समावेश होती हैं । इसलिए अक्सर मेरी कोशिश रहती है कि मेरी कविताएँ नदी की तरह सदैव गतिमान रहें और उन्मुक्त झरने की तरह पवित्र तथा निश्छल रहे ।
० आपकी व्यस्तता में यह रचनाशीलता कैसे संभव हो पाती है ?
जो चीज आपको प्यारी होती है, जिसमें आप अपने आपको देखते हैं और जिससे आप परिभाषित होते हैं उनके लिए समय स्वयं अपना समय निकाल लेता है । मेरी बुद्धि अगर व्यवसाय की गतिविधियों में उलझी होती है तो हृदय खुद को तलाश करने की दिशा में निरंतर गतिशील रहता है और यही मेरी रचनाओं का माध्यम बन जाता है ।
० भविष्य में रचनाकर्म की दिशा क्या है ?
– इस बीच उपन्यासों पर कार्य कर रहा हूँ । जल्द ही यह आप सबके समक्ष होगा ।
हिमालिनी के लिए आपने अपना महत्वपूर्ण समय दिया, इसके लिए बहुत आभार और नई कृति का हम सबको इंतजार है । बहुत शुभकामनाएँ ।
प्रस्तुति : डॉ श्वेता दीप्ति

सम्पादक, हिमालिनी ।