Tue. Dec 10th, 2024
himalini-sahitya

गधा कहीं का !:
मुकुन्द आचार्य

हा“ ….! हाँ …. !!  ठहरिए ! ठहरिए !! ‘गधा’ शब्द सुनते ही पाजांमें से बाहर मत होइए। लेखक कैसा भी घटिया क्यों न हो, वह अपने प्रियतम पाठकों को ‘गधा’ कहकर संबोधन करने का दुस्साहस नहीं करेगा। भला मैं किस खेत की मूली हूँ, जो अपने पाठकों को ‘गधा’ कहने की गुस्ताखी करुँ।
वैसे तो छात्रावस्था में जब हम पढने के लिए स्कूल, काँलेज में दाखिल होते थे, तब प्रायः हर छात्र पढाइ कम और मटरगस्ती ज्यादा करते थे। जरा याद कीजिए, उस दौरान बहुतों बार हम शिक्षकों द्वारा ‘गधा कहिंका’ यह सम्मानजनक विभूषण प्राप्त करते ही हैं। गधे की तरह पीटते भी हैं, अध्यापकों के करकमलों से फिर भी सुधरते नहीं।
मगर अब तो जमाना बदल गया। अब तो स्टूडेन्ट ‘सर’ के सर फोडते हैं, ‘सर’ भीगी बिल्ली बनकर क्याम्पस की कक्षाओं में पढÞाने का भोंडÞा अभिनय करते हैं। कक्षा से बाहर आते ही ‘सर’ के सर में यह ख्याल सरसराता हैं- ‘जान बची लाखों पाए लौट के बुद्धू घर को आए।’ क्या जमाना आ गया !
वैसे आप से कोइ पूछ बैठे, गधा और आदमी में कौन श्रेष्ठ है – तो आप तपाक से कहेंगे, आरे यार ! ये क्या पूछ बैठे। एक गधा भी कहेगा, अरे आदमी गधे से बेहतर होता है। आदमी आदमी है, गधा गधा है।
मगर पूछनेवाला कहे, गधा ने तो अपना गधापन विल्कुल नहीं छोडÞा है और आदमी में आदमीयत ढूढते रह जाओगें। तो आप क्या जवाब देंगे – बगलें झाँकने लगेंगे।
गधा समय-समय पर रेंकता है न, वह तो आदमी को देखकर व्यंग्यपर्ूवक उसका हँसना है। वह सोचता है- वाह रे इन्सान ! इन्सानीयत नाम की कोई चीज जिस के पास न हो, वह इन्सान बनकर मजे लूट रहा है। क्या जमाना आ गया। ऐसे इन्सान से हम गधे बेहतर जो रुखी सूखी घाँस खाकर भी दिनरात कमरतोडÞ मेहनत करते हैं और हमेशा मालिक के बफादार रहते हैं। आदमी तो इसका ठीक उल्टा है।
आप मानें या न मानें- आप की मर्जी। किसी प्रिन्ट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया में आया था, हाल ही में गधा विश्व सम्मेलन ने एक र्सवसम्मत प्रस्ताव पारित किया कि आदमी को गधा कहना गधे की तौहीनी है। आदमी गधे की तुलना में विल्कुल ही गया गुजरा है। दोनों में आकाश जमीन का अन्तर है। गधा राजा भोज है तो आदमी भोजवा तेली है। इसलिए अब कोई भी आदमी को गधा न कहे। इससे गधे का अपमान होता है। बेहतर यही होगा, आप भी किसी आदमी को गधा न कहें।
उर्दू और हिन्दी के प्रख्यात लेखक स्वर्गीय कृष्ण चन्दर ने गधे के बारे में एक अच्छी पुस्तक लिखी थी। उस में आप ने पढÞा ही होगा, आदमी से गधा बहुत मायनो में उम्दा होता है। ‘गधा कहिका !’ ऐसा सम्बोधन किसी दूसरे आदमी से किसी को प्राप्त हो तो जिस को यह पदबी मिले, उसे तो बहुत खुश होना चाहिए। चलो, आदमी से प्रमोशन मिला तब तो गधे हुए।
हम लागों का पौराणिक साहित्य लाजबाब है। दत्तात्रेय भगवान के अंशावतार थे। और ढÞेर सारे पशुपंछी को उन्होंने अपना गुरु माना था। मगर दर्ुभाग्य की बात, गुरु होने का मौका गधा को नहीं मिला। इसका गधे को कोई मलाल नहीं है। मुद्दे की बात तो ये है कि जब भगवान भी पशुपक्षी से बहुत कुछ सीख लेते हैं, तो आदमी गधे को अपना गुरु मान ले तो इस में क्या बुर्राई है – आदमी नाहक घमण्ड से फूला रहता है। समावेशी राजनीति का जमाना है, देखिए कोई गधा छूट न जाय !
इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए, कोई खुदा न खास्ता आपको अनजाने ‘गधा’ कह दे तो बुरा न मानना। गौर फरमाइएगा तो ‘गधा’ होना आदमी के लिए बडÞे गौरव की बात है। आपने सुना हीं होगा, काम निकालने के लिए गधे को भी लोक बाप बना लेते हैं। वह दिन दूर नहीं, जब आदमी सीना तानकर सडÞक में कहेगा- आज मैं खूब खुश हूँ। आज मुझे दश लोगों ने गधा कहा !   ±±±

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
%d bloggers like this: