काबिता
नया काठमाण्डू
गंदगी ढेर काठमाण्डू
लोड सेडिंग का पेलम पेल काठमाण्डू
पानी नहीं, बिजली नहीं
सडÞक पर पार्किंग का खेल काठमाण्डू
नेता का भाषण हात में बैनर काठमाण्डू
टुडी खेल में जनता हतास काठमाण्डू
जगह जगह में बडा-बडा मौल काठमाण्डू
चयनीज और खासा का बजार काठमाण्डू
देश और विदेशी का चलखेल काठमाण्डू
धरहरा से देखों भक्तपुर काठमाण्डू
राजा महाराजा का देश कामाण्डू
लुट गया राजा ज्ञानेन्द्र काठमाण्डू
जहाँ तहाँ टायर का ढेÞर काठमाण्डू
बन्दी ही बन्द का देश काठमाण्डू
पशुपतिनाथ भी राजनीति का बन गए अखाडा
देखते ही रह गए गन्दी खेल काठमाण्डू
कहाँ गया वह शान्ति का दूत
पृथ्वी नारायण शाह का वह देश काठमाण्डू
‘बरुण’ देखता ही रह गया
नया नेपाल का यह भेष काठमाण्डू
कन्हैया लाल “बरुण” छपकहिया-३, वीरगंज
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सुन्दर सृष्टि
पीताम्बरा “पीयूष”
गगन सुशोभित बने मेघ से
मेघ सुशोभित दिखे गगन पे
किन्तु मेघ है ठहर न पाता
छलक बरसत है धरती पे ।
रीता बन जाता है अम्बर
पर रीता नहीं रह पाता है
र्सर्ूय स्वयं जल खींच धरासे
फिर से गगन सजाता है ।
आँख मिचोली प्रकृति नटी के
नित नव खेल दिखाती है
पर मानव को धूप छाँवकार्
अर्थ नहीं समझा पाती है ।
रोता मानव दुःख के पल में
मानो वह पल ही शाश्वत है
फूला नहीं समाता सुख में
बिस्मृत कर सुख भी नश्वर है
गगन मेघ की आँख मिचोली
जीवन में होती रहती है ।
समसुदृष्टि फिर भी अन्तस्की
सदा बन्द ही क्यों रहती है –
मानव प्रकृति-पुत्र दुलारा
पर क्यों भ्रम में ही पलता है ।
अपनी दर्ुजय शक्ति भूलकर
दुःख चिन्ता में क्यों घुलता है
कौन जगाए उसकी शक्ति
कौन दे समता निर्मल-दृष्टि
ज्ञान चक्षु उसको मिलते ही
बने पर्ूण्ा जग सुन्दर सृष्टि