दुराचारियों की सजा कैसी हो ? :कञ्चना झा
डोन्ट अन्डर इस्टिमेट द पावर ऑफ ए कॉमन मैन (एक आम आदमी की क्षमता को कभी कम मत आँको ) । कुछ दिन पहले यह संवाद बहुत ही चर्चा में था । वॉलीवुड के चर्चित अभिनेता शाहरुख खान ने अपनी फिल्म चेन्नई एक्सपे्रस में बार बार यह संवाद दुहराया था । चलचित्र में इस संवाद को थोड़ा हास्यास्पद रूप से प्रस्तुत किया गया था लेकिन इस संवाद में कही गई बात को गहराई से देखा जाय तो बहुत बड़ी बात कही गई है ।
बात कर रही हूँ, भारत के नागालेन्ड की राजधानी दीमापुर की जहाँ कुछ दिन पहले दिल को दहला देने वाली एक घटना हुई । राजधानी दीमापुर स्थित अत्यन्त ही सुरक्षित मानी जाने वाले जेल से एक कैदी को जबरदस्ती सड़क पर निकाला गया । आम लोगों की भीड़ ने पहले उसे पत्थर से मारा और फिर पीट–पीट कर हत्या कर दी । आसाम के रहने वाले फरीद को पुलिस ने २४ फरवरी को गिरफ्तार किया था एक आदिवासी महिला के बलात्कार के आरोप में । नागालेन्ड में कानून क्रियान्वयन में गंभीर खामियाँ हैं । शायद यही कारण रहा होगा कि, वहाँ के लोगों का पुलिस, कानून और न्याय प्रणाली से विश्वास उठ गया है । उन्हें लगा कि अदालत आरोपी को सजा नहीं देगी और उन लोगों ने खुद ही सजा देने की बात ठान ली । नागालेन्ड में हुए घटना का विश्लेषण करते हुए मनोवैज्ञानिक कहते हंै– जब विश्वास टूटता है तो आक्रोश जन्म लेता है ।
नेपाल की भी हालत कुछ ऐसी ही है । आम जनता का पुलिस, प्रशासन और न्याय प्रणाली से भरोसा उठता जा रहा है । और यहाँ भी अधिकांश फैसले लोग सड़क के माध्यम से ही करवाना चाहते हैं । वैसे निराशा स्वभाविक भी है । राजधानी के अत्यन्त व्यस्त कहलाने वाला बसन्तपुर इलाका के एक ट्युसन सेन्टर में अध्ययन कर रही दो किशोरी के उपर तेजाब फेंका जाता है और महीना गुजर जाने के बाद भी अपराधी को पकड़ा नहीं जाता है । देश के प्रधानमन्त्री सुशील कोइराला और गृहमन्त्री बामदेव गौतम उल्टे उन किशोरियों के उपर आरोप लगाते हंै कि वे लोग अनुसन्धान में सहयोग नही कर रही हैं । अस्पताल की शैय्या पर लेटी किशोरी को जितना पता था सब जानकारी पुलिस को दे चुकी लेकिन राष्ट्र की बागडोर थामे प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री किशोरियों पर आरोप लगाकर अपना दामन साफ करने में लग जाते है । वैसे भी तेजाब आक्रमण का शिकार होने के बाद, उपचार के क्रम में एक आदमी इतना डर जाता है कि वह कुछ बताने लायक नहीं रहता, कौन समझाये ये बात प्रधानमन्त्री कोइराला और गृह मन्त्री गौतम को । और फिर अगर सब बात पीडि़त ही कह दे तो हजारों हजार पुलिस की क्या जरूरत ? अनुसन्धान विभाग के लोगों को क्या काम ? अपने परिश्रम से कमाये पैसे से क्यों पेट भरे उन लोगों का ?
अस्पताल के शैय्या पर से सीमा बस्नेत ने प्रधानमन्त्री को चार पेज लम्बा पत्र भेज कर अपना दुःख व्यक्त किया है । लम्बे समय तक अपराधी नही पकड़े जाने का दुःख व्यक्त करते हुए वह कहती है– जिन्होंने मेरा यह हाल बनाया उसे मृत्युदण्ड की सजा मिलनी चाहिए ।
पिछले महीने की बात करें तो राजधानी ही नहीं देश के सभी शहर में प्रदर्शन चला । बारा जिला के सदरमुकाम कलैया में ६ वर्षीया एक बच्ची को फागुन ८ गते अपहरण किया गया । दूसरे दिन सुबह घर से नजदीक कुछ दूर पर वह अचेत अवस्था में मिली । तुरंत वीरगञ्ज स्थित नारायणी अस्पताल ले जाया गया । बच्ची के साथ बलात्कार किया गया था और फिर उसके यौनांग में लकड़ी घुसेड़ दिया गया था । बच्ची की अवस्था का ख्याल करते हुए उसे वीरगञ्ज स्थित नेशनल मेडिकल कॉलेज और फिर वहाँ से काठमांडू भेज दिया गया । दानवीय पराकाष्ठा का शिकार उस बच्ची ने काठमान्डू स्थित कान्ति बाल अस्पताल में करीब १४ दिन कोमा में रहने के बाद दम तोड़ दी । और उसके बाद लगातार विरोध प्रदर्शन हुए । राजधानी काठमान्डू हो या देश के अन्य शहर में करीब दो सप्ताह तक लगातार प्रदर्शन हुआ और प्रदर्शनकारी एक ही मांग कर रहे थे जघन्य किस्म के महिला हिंसा की सजा में बदलाव लाना चाहिए और मृत्युदण्ड की व्यवस्था संविधान में रखनी चाहिए ।
काठमान्डू में हुए तेजाब आक्रमण में संलग्न होने के आरोप में पुलिस ने एक युवा को गिरफ्तार तो किया है लेकिन उसको कैसी सजा दी जाती है यह देखना बाकी है । उधर बारा जिल्ला अदालत ने ६ वर्षीया बालिका के बलात्कार और हत्या में संलग्न कन्हैया गुप्ता को ३५ वर्ष की जेल सजा सुनाई गई है । लेकिन पीडि़त परिवार एवं आम बारावासी इस फैसले से सन्तुष्ट नहीं । बलात्कारी को फाँसी की सजा ही होनी चाहिए, यह आवाज चारों ओर से आ रही ही । बारा घटना के बाद गठित संघर्ष समिति के संयोजक प्रमोद गुप्ता कहते हंै – अदालत का फैसला जो आया है वह स्वागत योग्य है लेकिन इतने से ही नहीं होगा । वह कहते हंै– हमारी मांग फाँसी थी, और आगे भी यही रहेगी । बेटी बचाओ संघर्ष समिति अब सभी जिला पहुँचकर हस्ताक्षर अभियान संकलन करने की तैयारी कर रहा है ताकि बालिका बलात्कार घटना के दोषी को फँसी की सजा मिले । सभी जिल्ला से संकलित हस्ताक्षर प्रधानमन्त्री को पेश करने का योजना समिति ने बनाई है ।
तथ्याँक क्या कहती है ?
बारा घटना तो एक प्रतिनिधि घटना मात्र है । नेपाल में औसतन चार बलात्कार प्रत्येक दिन हो रहा है । और बलात्कार की घटना बढ़ रही है । सरकारी तथ्याँक पर नजर डाले तो ०६५–०६६ में ३८१,०६६–०६७ में ३७६, ०६७– ०६८ में ४८१, ०६८– ०६९ में ५५५, ०६९–०७० में ६७७ और ०७०– ७१ में १३२६ बलात्कार की घटना हुई है । अभी चल रहे वर्ष के सात महीना में ७९६ बलात्कार की घटना हुई है । ये तथ्याँक पुलिस में दर्ज हुई तथ्यांक के आधार पर है । स्मरण्ािय रहे– बलात्कार की अधिकांश घटनाएँ पुलिस तक पहुँचती ही नहीं, पहुँच भी गयी तो उसे स्थानीय स्तर पर मिलाया जाता है । वरिष्ठ पत्रकार चन्द्र किशोर झा कहते हैं– बलात्कार की घटना बढ़ रही है या घट रही है यह कहना मुश्किल है, लेकिन एक बात तो साफ है कि घटना बाहर आ रही है । समय परिवर्तन हो रहा है और महिला भी अपनी पीड़ा को छुपा कर नहीं रखना चाहती, वह बाहर आने लगी है, न्याय की मांग करने लगी है । और ऐसी घटना को मीडिया गम्भीरता के साथ बाहर ला रही है । महिलाँए घर और बाहर दोनों जगह असुरक्षित हैं । इसलिए अत्यन्त ही कडेÞ कानून की व्यवस्था होनी चाहिए । पत्रकार झा कहते हंै– बढ़ते बलात्कर के विषय को लेकर गंभीर होने की आवश्यकता है लेकिन वह मृत्युदण्ड के पक्ष में नहीं । उनका मानना है कि मृत्युदण्ड समस्या का समाधान नहीं ।
नेपाल के कानून में बदलाव जरूरी है । बहुत ऐसे कानून है जिसमें अविलम्ब परिमार्जन आवश्यक है । विज्ञान और प्रविधि के कारण समाज में नई प्रवृति के अपराध होने लगे हंै लेकिन उस अपराध को संबोधन करने वाला कानून अभी भी यहाँ नहीं । वैसे भी कानून परिमार्जन होगा कैसे ? कानून निर्माता सब तो सत्ता के खेल में लगे है । और यह राष्ट्र पिछले २५ वर्ष से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में गृह युद्ध से ही जूझ रहा है । लोगों की आशा थी कि २०६२–६३ में जनआन्दोलन के बाद गठित संविधानसभा देश को नया संविधान देगी लेकिन नेताओंं के व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण अभी भी देश वही है जहाँ आज से आठ वर्ष पहले था । देश अन्तरिम संविधान पर चल रहा है । और संविधान के नाम पर कुछ नेतागण जेब भर रहे हंै । इसलिए नेतागण का ध्यान कानून की ओर नहीं, परिमार्जन की ओर नहीं, विकास की ओर नहीं, नागरिक के शान्ति सुरक्षा की ओर नहीं ।
कानूनी व्यवस्था विदेश में
बलात्कार की बात की जाये तो संयुक्त अरब अमीरात में दोषी को सात दिन तक लटका कर मृत्यु दण्ड की सजा दी जाती है । इरान में पत्थर मार कर , अफगानिस्तान में सिर पर गोली मार कर, चीन और मलेशिया में मृत्युदण्ड की व्यवस्था की गयी है, मंगोलिया में पीडि़त पक्ष प्रतिशोध के रूप में दोषी को मार सकने की व्यवस्था की गयी है । इराक में पत्थर से मार कर और एक एक करके हाथ, पैर, आँख निकाली जाती है और अन्त में गोली मार कर मृत्युदण्ड दिया जाता है । पोल्याण्ड में दोषी को मारकर सुअर को खाने के लिए दिया जाता है, भारत में भी मृत्युदण्ड तक की सजा की व्यवस्था की गयी है ।
कानूनी व्यवस्था नेपाल में
जहाँ तक नेपाल के कानून की बात की जाय तो नेपाल में बलात्कारी के लिए बहुत ही कमजोर सजा की व्यवस्था है । नेपाल के मुलकी ऐन महल १४ ने किसी भी महिला की मञ्जुरी लिए वगैर उसके साथ करणी हो तो उसे बलात्कार कहा गया है । इसी तरह १६ वर्ष से कम उम्र के बालिका के साथ मञ्जुरी लेकर या न लेकर किसी भी अवस्था में करणी की जाय तो उसे बलात्कार कहता है ।
अगर पीडि़त १० वर्ष से कम की हो तो बलात्कारी कोे १० से १५ वर्ष की जेल सजा, और अगर बालिका १० वर्ष या दस से १४ वर्ष के बीच की हो तो दोषी को आठ से १२ वर्ष की सजा की व्यवस्था की गई है ।
इसी तरह पीडि़त अगर चौदह वर्ष या चौदह से ज्यादा एवं सोलह वर्ष से कम उम्र की हो तो ६ वर्ष से दस वर्ष, एवं पीडि़त सोलह वर्ष या सोलह से ज्यादा और बीस वर्ष से कम उम्र की हो तो पाँच वर्ष से आठ वर्ष जेल सजा की व्यवस्था की गयी है ।
इसी तरह पीडि़त महिला तीस वर्ष या उससे ज्यादा उम्र की हो तो पाँच से सात वर्ष जेल सजा की व्यवस्था की गयी है ।
इसी तरह पति अगर पत्नी के साथ जबरदस्ती करे तो उसे तीन महीना से ६ महीना तक की सजा की व्यवस्था है । बलात्कार घटना के एक घन्टा के भीतर अगर पीडि़त महिला दोषी की हत्या कर देती है तो उसे कोई सजा नहीं होती लेकिन एक घन्टा के बाद अगर हत्या करती है तो पाँच हजार फाइन एवं दस वर्ष तक की सजा की व्यवस्था की गयी है ।
बहुत लोगों का मानना है कि कमजोर कानून के कारण ही बलात्कार की घटना में कमी नहीं आ रही है । व्यवस्थापिका संसद अन्तर्गत के महिला, बालबालिका, ज्येष्ठ नागरिक एवं सामाजिक कल्याण समिति भी बहुत गंभीर होकर सोच रही है कि बलात्कार के घटना को कैसे कम किया जाये ? समिति तो बहस चला रही है कि बलात्कारी को मृत्युदण्ड ही दिया जाय और यह संभव नहीं तो कम से कम नपुंसक बना दिया जाय ।
समिति की अध्यक्ष रञ्जु ठाकुर का कहना है कि विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में बलात्कारी को केमिकल क्यास्ट्रेसन अर्थात सुई देकर नपुंसक बना दिया जाता है तो नेपाल में क्यो नहीं ?
बारा घटना के बाद बलात्कार बड़ी बहस बन गयी है । एमाले नेतृ सावित्री भुषाल का मानना है कि यह जघन्य अपराध है इसलिए इसके जड़ तक जाना जरूरी है । आज हर आदमी की पहँुच शराब तक है, हाथ हाथ में मोबाइल है जहाँ वह आसानी से अश्लील चीज देखा जा सकता है और पहनावा भी उच्छ्रृ्रंखल हो गया है । नेतृ भुषाल कहती है– चलचित्र और वास्तविक जीवन में फर्क है और इसे पुरुष एवं महिला दोनों को समझना होगा । कानून के साथ साथ नैतिक शिक्षा पर ज्यादा जोर देने का समय आ गया है, नेतृ भुषाल का कहना हैे । नेतृ भुषाल फैशन की विरोधी नहीं लेकिन समय और जगह देखकर फैशन करने की सलाह देती हंै । वह स्पष्ट कहती हंै कि फैशन का अर्थ अश्लीलता नहीं ।
वरिष्ठ अधिवक्ता मीरा ढुंगाना का भी मानना है कि नेपाल में बलात्कार सम्बन्धी कानून कमजोर है और इसे अत्यन्त ही कठोर बनाना चाहिए । लेकिन सिर्फ कानून कड़ा बनाने से कुछ नहीं होगा वह कहती है– राजनीतिक संक्रमण के कारण देश अस्त–व्यस्त है । बेरोजगारी, गरीबी और निराशा अपराध को बढ़ावा दे रही है । अधिवक्ता ढुंगाना का कहना है कि चुंकि नेपाल के संविधान ने मृत्युदण्ड को निषेध किया है इसलिए बलात्कारी को आजीवन करावास होना चाहिए । लेकिन सामाजिक संस्था रक्षा नेपाल की अध्यक्ष मेनुका थापा तो स्पष्ट रूप से कहती है– बलात्कारी को फाँसी ही देना चाहिए चाहे इसके लिए संविधान में ही क्यों न संशोधन करना पड़े । वह आगे कहती है देश भर से बलात्कार और महिला हिंसा की घटना की खबर आ रही है इसलिए पूरे समाज में जागरण की आवश्यकता है ।
मेनुका थापा का कहना बिल्कुल सही है । पूरे समाज में जागरण की आवश्यकता है । और इसमें अब तनिक भी ढि़लाई करना ठीक नहीं । जागरण इसलिए भी चाहिए क्योंकि यह सरकार गंभीर नहीं । कुछ दिन पहले महिला, बालबालिका ज्येष्ठ नागरिक एवं समाजिक कल्याण समिति ने इस राष्ट्र के गृह मन्त्री को बुला कर बलात्कार की घटना पर ध्यानाकर्षण किया तो गृहमन्त्री गौतम ने गैर जिम्मेवार जबाब देकर भागने का प्रयास किया । गृहमन्त्री गौतम ने बड़ी आसानी से कह दिया– राजनीतिक संक्रमण के समय में बलात्कार की घटना बढ़ना स्वाभाविक है । गृहमन्त्री गौतम के इस जबाब को कैसे लिया जाय यह बात मैं अपने पाठक पर ही छोड़ती हूँ । लेकिन एक बात तो सत्य है, जब विश्वास खत्म होता है तो आक्रोश जन्म लेता है और जनता जब आक्रोशित हो जाय तो किसी का कुछ नहीं चलता । फिर नेपाल में भी नागालेन्ड के ही जैसी घटना को अंजाम दिया जा सकता है । कहा नहीं जा सकता ।।