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श्वेता दीप्ति , काठमांडू, १० सेप्टेम्बर | कल रात की दुखद घटना ने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है । एक वरिष्ठ नेता और उनका घर सुरक्षित नहीं है तो आम जनता सुरक्षा की अनुभूति कैसे कर सकती है, यह प्रश्न हर किसी के मन में आना स्वाभाविक है । घटना की जो प्रकृति दिख रही है उससे ऐसा नहीं लग रहा कि यह घटना सिर्फ चोरी को अंजाम देने के लिए हुई हो । खैर, घटना के पश्चात् जो खानापूर्ति की प्रक्रिया है वह शुरु हो चुकी है ।

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किन्तु एक जो सवाल सब ओर से उठ रहा है कि आखिर निशाने पर मधेश या मधेश की जनता या मधेशी नेता ही क्यों है ? यह सुनियोजित है या महज संयोग । क्योंकि प्रायः मधेश से सम्बद्ध वरिष्ठ नेताओं ने ऐसे प्रकरण को झेला है । बात सिर्फ आक्रमण की नहीं है कई मरतबा इन्हें अपमानित भी किया गया है । चाहे वो देश के प्रथम राष्ट्रपति हों या उपराष्ट्रपति हों या अन्य नेता हों या फिर मधेशी जनता । इस सन्दर्भ में वरिष्ठ एमाले नेता शंकर पोखरेल जी के ट्वीट को हम ले सकते हैं । नस्लीय टिप्पणी सहन नहीं हो सकती यह तो मधेशी जनता ने दिखा दिया । पर सवाल यह उठता है कि एक सम्मानित और वरिष्ठ राजनीतिज्ञ से क्या देश या देश की जनता ऐसी टिप्पणी की उम्मीद कर सकती है ? पूर्व प्रधानमंत्री ने तो मधेश की जनता को और उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश ही नहीं की, बल्कि हमेशा अपनी कटुक्तियों से उनका मजाक उड़ाते रहे और उनके जख्मों पर नमक छिड़कते रहे । अभिभावकत्व की कमी हमेशा उनमें दिखी । वर्तमान सरकार इसीआश्वासन पर सत्तानसीन हुई है कि मधेश मुद्दों को सम्बोधन किया जाएगा और समस्या का समाधान निकाला जाएगा । मधेशी नेता भी आशान्वित हैं किन्तु सरकार की धीमी गति कई शंका को जन्म दे रही है । देश की अवस्था ऐसी है कि संसद की बैठक ५९७ सांसदों में से १२६ की उपस्थिति होती है और फोरम पूरा न होने की स्थिति में बैठक स्थगित हो जाती है ।

विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों का मानना है कि जिस देश में एक वर्ष में तीन तीन प्रधानमंत्रियों का आना जाना हो वहाँ विकास की सम्भावनाएँ क्षीण हो जाती है । इस हाल में जनता सत्ता या सरकार से क्या उम्मीद कर सकती है ? जो मंत्री बनते हैं वो सिर्फ अपने कार्यकर्ता के या व्यक्तिगत विकास की ओर ही ज्यादा केन्द्रित होते हैं । उनकी कार्य प्रणाली से उनकी पार्टी पर या देश पर क्या असर होगा इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता है । इस अवस्था में देश की ज्वलन्त समस्या का समाधान कैसे होगा इसका उत्तर किसी के पास नहीं है । देश बँटवारे की राजनीति में फँसकर रह गया है जिसकी वजह से देश का हित और विकास की सम्भावना कोसों दूर नजर आ रही है ।

मधेश की समस्या पूर्ववत है । पिछले एक वर्ष से लागु संविधान के प्रति मधेशी जनता असंतुष्ट है और अपना विरोध जताती आ रही है और यही वजह है कि संविधान दिवस का विरोध करने की मंशा मधेशी जनता ने बना ली है । अभी तक संविधान कार्यान्वयन की कोई उम्मीद नहीं दिख रही न ही संशोधन की सम्भावना दिख रही है ऐसे में कोई दिवस मनाने की बात मधेश की जनता पचा नहीं पा रही है । मधेशी दल भी इसका विरोध जता रही है साथ ही माओवादी केन्द्र का सशक्त घटक तत्कालीन नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी) भी इसका विरोध कर रही है । संघीय समाजवादी फोरम के अध्यक्ष उपेन्द्र यादव ने भी स्पष्ट कहा हैकि संविधान का कार्यान्वयन तभी सम्भव है जब यह संशोधित किया जाय । संशोधन के पश्चात् ही संविधान सर्वस्वीकार्य हो सकताहै । मधेश ने पिछले वर्ष हुए आन्दोलन में अपने कई सपूतों को गँवाया था और अभी उसकी बरसी मनाई जा रही है । आज तक उनकी शहादत का कोई प्रतिफल नहीं मिला है । मधेशी जनता आज तक आन्दोलित है और अपनी समस्या के समाधान के लिए प्रतीक्षारत है ।

 

 



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