राजनीतिक दुष्चक्र में फ“सा अर्थतंत्र
प्रा. रश्मि वर्मा
नयाँ वर्ष२०६८ शुरु हो ने से ठीक पहले अर्थमंत्री ने दे श की आर्थिक स िथति पर श्वे त पत्र लाकर हमारी आर्थिक दर्ुदशा को दर्शा दिया है । वै से तो अर्थमंत्री भर तमो हन अधिका द्वारा लाए गए श्वे त पत्र के समय परि स्िथति, अवस् था औ र नीयत पर कई सवाल खडे किए जा र हे हैं ले किन उस श्वे त पत्र से पुरी दुनियाँ को हमारी आर्थिक लाचारी के बारे में पता तो चल ही गया है ।
न्यून आर्थिक वृद्धि, संकुचित रोजगार के अवसर , राजनीतिक दलों की गै र जिम्मेवारीपन के कार ण आर्थिक सम्भावना अत्यन्त ही क्षीण हो ने की वजह से पिछले वर्ष२०६७ को भी न्यून उपलब्धि वाला वर्षही कहा जाएगा । आर्थिक वृद्धिदर ५.५ प्रतिशत की अपे क्षा ३.५ प्रतिशत पर ही सिमट कर र ह गयी ।
गत आर्थिक वर्षके पहले चार महीने मे ं पूर क बजट के कार ण विकास निर्माण गति नहीं ले पायी । वर्षशुरु हो ने के चार महिना बाद पिछली सर कार के अर्थमंत्री सुर े न्द्र पाण्डे द्वार ा संसद मे ं बजट प्रस् तुति के दौ र ान जो दृष्य दे खने को मिला वह शर्मनाक थी । जै से तै से अध्यादे श के मार्फ बजट लाया जा सका था । बदले र ाजनीतिक समीकर ण के बाद नयी सर कार मे ं अर्थ मंत्रालय की जिम्मे वार ी सम्भालने वाले उपप्रधानमन्त्री भार तमो हन अधिकार ी शुरु से ही विवादो ं मे ं घिर े है ं । पहले नकली वै ट बिल प्रकर ण पर , फिर पूर क बजट लाने की को शिश मे ं अर्थ सचिव र ामे श्वर खनाल द्वार ा इस् तीफा प्रकर ण औ र ऊर्जा क्षे त्र के उच्चस् तर ीय आयो ग मे ं अपने ही लो गो ं की भर्ती प्रकर ण मे ं भर तमो हन अधिकार ी घिर ते नजर आए ।
र् अर्थसचिव खनाल के इस् तीफे ने तो अधिकार ी की कलई खो लकर र ख दी है । टै क्स चो र ी कर ने वाले बडÞे उद्यो गपतियो ं को बचाने , माओ वादी के दवाब मे ं पूर क बजट लाकर नि श्िचत क्षे त्र मे ं र कम बँटवार े की पो ल खुल गई । खनाल के इस् तीफे से लो गो ं के मन मे ं यह बात बै ठ गई कि सर कार अच्छे औ र इमान्दार लो गो ं को पद पर नहीं दे खना चाहती । ऊपर से अधिकार ी ने श्वे त पत्र जार ी कर भी बै ठे बिठाए विव ाद मो ल ले लिया । अर्थ विशे षज्ञो ं का आर ो प है कि पूर क बजट ना लाए जाने के कार ण उसे चो र र ास् तो ं से श्वे त पत्र का नाम दे कर र्सार्वजनिक किया गया है । जिसे मनमाने ढंग से र कम का बँटवार ा किया जा सके ।
इस वर्षभी नेपाली अर्थतंत्र को लगभग ध्वस्त होने की कगार पर पहुँचाने में लोडशेडंग ने अहम् भूमिका निर्वाह की । लोडशेडिंग का समय दैनिक १६ घण्टों तक पहुँच गया है । उद्योग जगत की स्थिति पहले से काफी भयावह है । देश मे जल्द ही ऊर्जा संकटकाल की घोषणा हो सकती है । सरकार ने ऊर्जा संकट से बचने के लिए ठोस कार्ययोजना बनना हेतु मंत्रियों का एक समूह -जीओएम) बनाया है । लेकन इसके गठन के महीनो बाद भी कोई भी उपलब्धिमूलक कार्य हो ना तो दूर इनकी बै ठक भी नहीं हो पाई है । लो डशे डिंग के अलावा इस बार मजदूर संगठनो ं औ र उद्यो गपतियो ं के बीच काफी समस् या दे खने को मिली । न्यूनतम पारि श्रमिक दर निर्धार ण कर ने को ले कर हुए आन्दो लन ने कई दिनो ं तक दे शभर के उद्यो गो ं को ठप्प कर दिया । सबसे अधिक नुकसान दे श के दो सबसे बडÞे औद्योगिक काँर ीडो र को उठाना पडÞा । के न्द्र मे ं उद्यो ग वाणिज्य महासंघ औ र तीन बडÞे मजदूर संगठनो ं के साथ हुए समझौ ते को मानने से इंकार कर ते हुए वीर गंज-पथलै या तथा सुनसर ी-मो र ंग औ द्यो गिक काँरि डो र के मजदूर संगठनो ं ने तालाबन्दी कर दी । एक ही पार्टर्ीीे एक मजदुर संगठन ने हड्ताल ना कर ने के समझौ ते पर हस् ताक्षर किया तो पार्टर्ीीे दूसर े मजदूर संगठन ने सै कडÞो उद्यो गो ं को ठप्प कर दिया ।
उद्यो गपति व मजदूर ो ं के बीच चल र ही र स् साकस् सी के बीच ने पाल उद्यो ग वाणिज्य महासंघ के अध्यक्ष पद पर सुर ज वै द्य चुने गए है ं । उनकी पहली प्राथमिकता ही उद्यो गपति औ र मजदुर संगठन के बीच र हे कडÞवाहट रि श्तो ं को खत्म कर ना हो गा । उद्यो ग क्षे त्र को शांति क्षे त्र घो षित कर ने व कम से कम कुछ सालो ं के लिए उद्यो ग जगत को बन्द हडताल मुक्त कर ाने का पहल सुर ज वै द्य के लिए प्राथमिकता हो नी चाहिए । इस काम मे ं कई चुनौ तियाँ है । र ाजनीतिक दलो ं के ही इशार े पर हो ने वाले बन्द हडताल को र ो कने के लिए वै द्य को दलो ं के आगे ही हाथ पै र जो डÞने हो ंगे ।
आने वाले दिनो ं मे ं अर्थ जगत को कई चुनौ तियों का सामना कर ना पडे Þगा । क्यो ंकि अर्थ क्षे त्र से जुडÞी कहीं से भी कोर् इ अच्छी खबर पिछले वर्षनहीं मिल पाई । आयात निर्यात का घाटा १२ खर ब रुपये को पार कर गया है । निर्यात से हो ने वाली आमद नी आयात के कर ीब १५ प्रतिशत ही पहुँच पाई है । र े मिटे न्स की वृद्धि दर ११ प्रतिशत पर आकर अटक गई है ।
वै से बै ंकिंग क्षे त्र से कुछ अच्छी खबर मिली ले किन वर्तमान अवस् था मे ं यह खुशी कितनी दे र टिक पाएगी यह तो कहना मुश्किल है । तर लता अभाव, न्यून र े मिटै न्स प्रवाह, के न्द्रीय बै ंक की कडÞी निगर ानी के बीच पिछले वर्षचार वाणिज्य बै ंको ने अपना कार ो बार शुरु किया । मे गा, कमर्श, सिविल औ र से ंचुर ी बै ंक की शुरुआत के साथ दे श मे ं बै ंको ं की संख्या बढकर ३१ हो गई है । ले किन इसी वर्षकुछ वित्तीय संस् थाओ ं का लाइसे न्स खारि ज कर ने की प्रक्रिया भी शुरु हर्ुइ ।
इसी बीच सरकार द्वारा लाए जाने पर प्रमुख विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस, मधेशवादी सहित ११ दलों ने इसका विरोध करने का फैसला कर एक बार फिर वजट पर र ाज नीति करना शुरू कर दिया है । -लेखक हरिखेतान बहुमुखी क्याम्पस वीरगंज में अर्थशास्त्र की प्राध्यापक है ।)
