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आओ नेता बनें और इस देश को खुब लूटें : बिम्मी शर्मा

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बिम्मी शर्मा, वीरगंज,२१ फरवरी, (व्यंग) | इस देश में और इस देश की अवाम को और कुछ नहीं चाहिए सिवा नेता के । यहां चारो ओंर हाय, हाय और हायतौबा भी नेता के कारण ही होता है । कोई नेता जल्दी शहीद नहीं बनता पर कोई आंदोलन में मर खप जाने के बाद शहीद और उसके बाद स्वर्गीय नेता हो जाता है । शहीद के ही परिवार से कोई उसकी संवेदना को कैश करके नेता बन जाता है । जो देश और समाज में जितना गिरा हुआ इंसान होगा राजनीति में उतना ही बड़ा नेता बनेगा ।

नेता बनना या बनाना चाय बनाने से भी आसान काम है और इसकी शुरुआत बचपन में ही हो जानी चाहिए । जब बच्चा स्कूल जाने लगे तब उसे झूठ बोलने का एकस्ट्रा क्लास देना चाहिए । साथ ही उसे बिना बात का बेमतलब बोलने का भी अभ्यास करना चाहिए । जब वह बच्चा बड़ा हो कर नेता बनेगा तब यही सब काम आएगा । साथ में वह अपने मोहल्ले या शहर में गुण्डागर्दी भी करेगा तो नेता बनने के लिए यह सोने मे सुहागा वाली बात होगी । सौ बात की एक बात यह कि नेता बनने के लिए वह सब हुनर आना चाहिए जिसे हमारा सभ्य समाज अवैध या गलत कह कर मनाही करता है । राजनीति में जो जितना गलत या खराब होता है वह उतना ही अच्छा और बढ़िया माना जाता है ।

स्कूल में चिटिंग कर के पास होने वाला विद्यार्थी ही बाद में देश और जनता को चिटिंग कर सकता है । जो नुक्कड के दुकान में फोकट में चाय नास्ता डकार जाए वही बाद में जाकर नेता बनने के बाद करोड़ों का कमीशन खा कर पचा लेता है । जो अपने पैंट के पाकेट में चाकू, तमंचा ले कर चले और कोई रास्ते में किचकिच करे तो उसको वहीं टपकाने का दम रखने वाला हो वही राजनीति में अपने विरोधियों का मुँह बंद रख सकता है । वैसे राजनीति या संसद भवन है ही मच्छी बजार ।

मच्छी बजार में मच्छी की बदबू आती है और हमारे देश के संसद में मच्छी की जगह मानुष रुपी भ्रष्टाचार से सराबोर सांसद की बदबू आती है । अब मच्छी तो कीचड़ या पोखर में ही पलती और पनपती है । वैसे ही नेता भी गुण्डागर्दी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, बेईमानी और चरित्रहीनता जैसे कीचड़ से ही पनपते हैं । जहां यह कीचड न हो वहां नेता नाम के मलेच्छ भी शायद न हो । इसी लिए नेता को पैदा करने और पालने, पोसने का काम हम सभी का भ्रष्ट आचरण ही कर रहा है ।

इसी लिए पढ़ लिख कर डाक्टर, इन्जिनियर, शिक्षक, पत्रकार होने से अच्छा है नेता बने । और फिर डाक्टर, इन्जिनियर, शिक्षक और पत्रकारों का भी नेता होता है, उनका भी संघ, संगठन या महासंघ होता है । फिर बिना पढ़ेलिखे ही नेता बन जाओ और उसके बाद मंत्री बनने पर इन पढ़ेलिखे डाक्टर, इन्जिनियर, शिक्षक और पत्रकारों पर शासन करो और हुक्म चलाओ । है न कितनी मजेदार । हींगं लगे न फिटकरी रगं चोखा आए जैसा बिना कुछ मेहनत या लगानी किए ही नेता बनो और तर माल उड़ाओ । परिवार और रिश्तेदारी में किसी के नेता होने का मतलब ही पांचो उगंली घी में और सर कड़ाही में हो जाता है । उसके बाद नेता के परिवार और उसके रिश्तेदारों का भी सौ खून माफ ।

जो नेतृत्व न कर सके वही नेता कहलाता है । जिसका चारित्रिक पतन हो चुका है, जो बेईमान और बडबोला है वही नेता बनने के काबिल है । जो पान खा कर जितनी बार थूकता नहीं होगा उससे भी ज्यादा बार झूठ बोलता है वही इस देश का नेता है । हम लोग वर्षो सें इन्हीं नेताओं से शासित होते आए हैं और इनसे शासित होना हमारे लिए कोई कम गर्व की बात नहीं है । क्योंकि हम में खुद योग्य नेता बन कर नेतृत्व देने की काबीलियत नहीं है इसी लिए इनका मुँह जोहते रहते हैं ।

और हम ही कहते हैं कि फलां नेता या मंत्री ने इतनी कमीशन खायी, कोई प्रोजेक्ट को अच्छी तरह नहीं बनाया । यह हम किस मुँह से कहते है ? क्या हमें यह कहने का कोई हक है ? नेता से ज्यादा सरकारी कर्मचारी अपने कार्यालय घुमा कर पैसे मांगते हैं और हम खुशी, खुशी खिलाते, पिलाते है उन्हें । क्या हम कम दोषी है ? हमें बस अपना घरद्वार साफ चाहिए । अपना बच्चा पढ़ें और कक्षा में प्रथम आए बांकी के बच्चे जाए भांड़ में हमें क्या ? हमने ठेका थोडे ही न लिया है इनका ?

हमारी इसी संकीर्ण सोच के कारण ही इस देश का संसद गटर जैसा और नेता कीड़े जैसे हो गएं है । हमें नेतृत्व करने वाला नहीं हम पर शासन करने वाला मालिक चाहिए । इसी लिए राजतंत्र लौटाना चाहते हैं । कभी–कभी राणा शासन को भी अच्छा मान लेते हैं । क्योंकि हमारी सोच भी दासत्व वाली है । इसी लिए अपने घरेलु कामों के लिए रखें गए आदमी को भी अपना खरीदा गूलाम जैसा मान कर वैसा ही बर्ताव करते हैं । हम सब में नेता बनने के गुण जन्मजात मौजुद हैं पर असल नहीं कमसल नेता बनने के गुण है । क्योंकि अच्छे गुणों को तो हम पनपने ही नहीं देते । अच्छे गुणों को खाद्य, पानी दे कर सवांरने की बजाय हम उस को तेजाब डाल कर मार देते या जड़ से ही नष्ट कर देते हैं ।

इसी लिए नेता बनना बस फायदे का ही सौदा है । न बुआई न कटाई बस ऐलानी जमीन पर अपना वर्चस्व जमाने जैसा ही है नेता बनना । नेता बनो पर अपने सात पुस्तो को दूध और घी की गंगा से नहला दो । जो पित्तर पींड देने से भी स्वर्ग नहीं जाते होंगे उनके परिवार में कोई नेता बन जाए तो वह सीधा स्वर्ग सिधार जाएगा । हां नेता बनने के लिए जी हजूरी, चमचागिरी, दलाली जानना जरुरी है । बांकी अगूंठा छाप भी है तो चलेगा । मंत्री या प्रधान मंत्री अनपढ है तो क्या हुआ उसका पीए और सचिव तो पढा लिखा है न ? कौन किसी नेता को किसी स्कूल में जा कर मास्टरी करनी है । बस नेता को खूब बात करनी, बतियाना या भाषण देना, पान खाना और कमीशन खाना आना चाहिए । यदि यह सब गुण जिसमें है वह नेता बनने के काबिल है । आओ नेता बनें और इस देश को खुब लूटें । आओं नेता बन कर इस देश की जनता को नर्क की सैर करवाएं ।



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