Thu. Dec 5th, 2024

मधेश को अलग करने की जुरअत की तो अलगाववादी को बल मिलेगा : राजेन्द्र महतो

rajendra-mahato-55
राजेन्द्र महतो, काठमांडू, १६ अप्रैल | विगत में मोर्चा के साथ हुए सारे समझौते को दरकिनार कर कथित तीन बड़ी पार्टियों ने त्रुटिपूर्ण संविधान जारी किया । यहां तक कि अंतरिम संविधान द्वारा प्राप्त अधिकारों को भी हरण कर लिया गया । इसलिए संविधान में रही त्रुटियों को सुधार करने के लिए बाध्य होकर मधेश ने कठोर आंदोलन किया । यहां तक कि पिछले वर्ष नाकाबंदी व हड़ताल करने का अप्रिय निर्णय भी लेना पड़ा ।
खासकर सदियों से शोषित, वंचित व बहिष्कृत अर्थात् हाशिये पर रहे मधेशी, आदिवासी जनजाति, दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़ावर्ग आदि समुदायों के अधिकारों को जबरन हरण करने की वजह से ही कठोर आंदोलन करना पड़ा । वैसे आंदोलन आज भी जारी है, किसी न किसी रुप में । और जब तक मांगें पूरी नहीं हो जाती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा ।
फाल्गुन ९ गते सरकार ने संविधान संशोधन किए बगैर स्थानीय चुनाव की घोषणा की है । मैं कहना चाहूंगा कि जिस संविधान के विरोध में मधेशी, दलित, आदिवासी जनजाति, मुसलिम, अल्पसंख्यक तथा हिमाल, पहाड़ की जनता लड़ने व मरने का काम किया है और आज भी उसके लिए उतारु हैं, तो ऐसे हालात में देश कैसे आगे बढ़ सकता है ? और जिस संविधान के तहत चुनाव करवाने की बात की जा रही है, उस संविधान को कैसे कार्यान्वयन होने दिया जाएगा ? विगत में हुए समझौते के आधार पर भी जब उन्हें अधिकार नहीं मिल सका, तो जनता कैसे उस संविधान को स्वीकारेगी ? प्रश्न ज्वंलत है ।
दूसरी तरफ मधेश में गांवपालिका व नगरपालिका का जिस प्रकार से निर्धारण किया गया है चाहे वह जनसंख्या के आधार पर हो या सीमांकन के आधार पर, वह भी अवैज्ञानिक है । यूं कहें कि षड़यन्त्रपूर्वक ढंग से निर्धारण किया गया है । इनके अतिरिक्त आंदोलन के दौरान मधेश की अधिकांश जनता मतदाता नामावली में पंजीकृत करवाने से वंचित रह गयी हैं । इसलिए गांवपालिका व नगरपालिका का निर्धारण मधेश के जनसंख्या के आधार पर तथा मतदाता नामावली में छुटे मतदाताओं को पुनः पंजीकृत करवाया जाए ।
हम चुनाव चाहते हैं । मधेश चुनाव चाहता है । लोकतंत्र में भरोशा करने वाली पार्टियां चुनाव को स्वागत करती हैं । लेकिन चुनाव कैसा हो और किसके लिए हो ? इन सवालों का सम्बोधन हेतु अभी कोई माहौल नहीं बन सका है और न ही बन पा रहा है । मैं बल देकर कहना चाहूंगा कि मधेश को दरकिनार कर जबरन चुनाव करवाने की बात की जाती है, तो राष्ट्र के लिए बड़ी भूल होगी । और यह राष्ट्रघाती सिद्ध होगा । यहां तक कि इससे राष्ट्र को दूरगामी प्रभाव भी पड़ेगा । पिछले २० सालों में स्थानीय चुनाव नहीं हुआ तो कुछ नहीं बिगड़ा । दो महीने चुनाव नहीं होगा, तो क्या आकाश गिर जाएगा ? इसलिए पहले जनता की मांगें पूरी करे, उसके बाद संविधान कार्यान्वयन और चुनाव करवाया जाए । यदि ऐसा नहीं होता है, तो हमारी पार्टी चुनाव में भाग नहीं लेगी । मोर्चा के निर्णय के आधार पर हम चुनाव को अवज्ञा करेंगे, बहिष्कार करेंगे । यहां तक कि चुनाव होने भी नहीं देंगे । फल यही होगा कि देश में बहुत बड़ा द्वन्द्व होगा । हिंसा वृत्ति होगी । और बन्दूक की सहायता से किया गया चुनाव का कोई महत्व नहीं होगा । ऐसा भी सुना जाता है कि चुनाव दो चरणों में किया जाएगा । लेकिन सवाल उठता है कि किस प्रयोजन के लिए दो चरणों में चुनाव करवाया जाएगा ? मैं पुनः संस्मरण कराना चाहूंगा कि हमारी मांगों को समाधान किए बगैर सारी ताकतें लागकर चुनाव करवाया जाता है, तो सरकार व बड़ी पार्टियों की बड़ी भूल होंगी । अगर देश की मूल धार से मधेश को अलग करने की जुरअत की तो स्वभाविक रुप से अलगाववादी को बल मिलेगा, अतिवादी को बल मिलेगा, जो देश के लिए अहित सिद्ध होगा । इसलिए समय रहते सरकार और मुख्य पार्टियां इस बात पर गम्भीर होकर चिन्तन–मनन करे और चुनाव के लिए परिस्थिति बनावे । इसके लिए जरुरी है कि संविधान में परिमार्जन सहित संशोधन करे । इसी में देश की भलाई होगी ।
(राजेन्द्र महतो सद्भावना पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं ।)

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
%d bloggers like this: