आज भी जाओगी, आज तो न जाओ (लघुकथा) : दिलीप कुमार
आज के दिन भी : दिलीप कुमार, आज भी जाओगी, आज तो न जाओ ‘‘दुखीलाल धीरे से बोला। ’’कैसे न जाऊॅ, बड़े साहब आज छुट्टी पर हैं। आज का दिन उनके लिये खास है, पूरा दिन लगाये रखेंगे’’ कमली धीरे से बोली। दुखीलाल कराहते हुये बोला ’’आज करवा है, उनसे कह दो कम से कम आज तो तुझे मैली न करें‘‘ ये कहकर दुखीलाल रोने लगा। कमली भी दुखीलाल के आॅसू देखकर जार-जार रोने लगी। पति-पत्नी बड़ी देर तक एक दूसरे से लिपटकर रोते-सुबकते रहे। दुखीलाल अधीर होकर बोला ’’कमली अब नहीं सहा जाता, ये साहब कब तक तुझे बेधर्म करेगा, कब तक तुझे लूटेगा। बड़ा पापी है, आज भी तुझे नहीं छोड़ेगा‘‘। कमली सुबकते हुये बोली ’’उसका पाप-पुण्य वो जाने, हमारा इमान-धरम सब हमारी भूख है। मेरे पाॅच बच्चे और बीमार पति भूखा ना सोये तो मेरा सब धरम और सत्त सलामत है‘‘। दुखीलाल फिर फफक पड़ा ’’साहब करवा के दिन तुझे गंदा करेगा, फिर नयी साड़ी देगा, फिर तू मेरे नाम का करवा करेगी। ये सब…. हाय राम, मैं मर क्यांे न गया‘‘। कमलीं ने दुखीलाल के मुॅह पर हाथ रख दिया ‘‘ना, रे, ना। सौ बरस जिये तू। करवा मन का व्रत है, मन साफ है मेरा। का करूॅ, तन बेचना ही तन की मजदूरी है। धीरज धरो, अब मैं जाती हॅू। शाम को त्योहार भी मनाना है। भूखी-प्यासी लौटकर सब रीति-धर्म भी करवा का निभाना है। अब जाती हूॅ‘‘ यह कहकर कमली झोपड़ी से बाहर निकल आयी। कमली थोड़ी दूर ही चली होगी कि पीछे से दुखीलाल साइकिल लेकर पहॅुच गया। कमली असहाय होकर बोली ’’अब मत रोक, नही ंतो साहब नाराज होगा‘‘ और वो फिर रोने लगी। दुखीलाल उसके आॅसू पोंछते हुये बोला ’’धूप बहुत है, और तू भूखी प्यासी करवा का व्रत भी किये है। चल मैं तुझे साइकिल पर बैठाकर साहब के घर तक छोड़ आता हॅू।