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यह स्थानीय चुनाव नहीं, स्थायी उपनिवेश का जोगार है : कैलाश महतो


कैलाश महतो, परासी,९ जून | एड्मण्ड बर्क ने कहा है, “इतिहास होता ही नहीं है ।” आजतक संसार के जितने भी इतिहासें है, वे सारे के सारे शासकों का है, जनता का नही, सत्य का नहींं । और इतिहास जब जनता का नहीं हो, समाज का नहीं हो, किसान और मजदुर का नहीं हो तो प्रमाणित यही होता है कि वे सारी कहानी–जिसे हमने इतिहास कहने का परम्परा बसाला है, वे मिथ्यायें हैं ।
एड्मण्ड बर्क कहते हैं कि वे कई महीने से इतिहास लिख रहे थे । इतिहास लिखने में वे इतने व्यग्र थे कि सारी दुनियाँ से अलग एकान्त में एक आवाजहीन कोठरी में तनमन के साथ अपने को कैद कर चुके थे । एक बार हुआ यूँँ कि किसी कारणवश अपने अध्ययन कक्ष का उन्होंने खिडकी खोला तो बाहर में शोर सुनायी दी । शोर त्रासदीपूर्ण था । न चाहते हुए भी उनके कदम कक्ष के बाहर उनके घर के पिछे रहे भीड के पास बढ गये । वहाँ पर एक आदमी का लाश पडा हुआ था । उस लाश के बारे में लोग अनेकानेक टिप्पनियाँ कर रहे थे । एड्मण्ड बर्क ने भी वहाँ खडे चश्मदीद लगायत के लोगों से उस मृत आदमी के मौत का कारण पूछा । वहाँ उपस्थित उस आदमी के मृत्यु के चश्मदीद लोग भी अलग अलग बयान दे रहे थे । अलग अलग बयानों के कारण उन चश्मदीद कहे जाने बालों के बीच ही महाविवाद हो गया । उस विवाद के कारण वहाँ कई लोग हाथापाई पर उतर गये और वातावरण ऐसा बन गया कि लोग एक दूसरे को मार देने के स्थिती बन गयी । झगडे खत्म होने के बाद एड्मण्ड वापस कक्ष में आया और महीनों लगाकर लिखे गये पूर्ण होने बाले उस इतिहास के किताब को कई टुकडों में फाड डाले ।Come Join the #1 Affiliate Network!
लोगों ने उनसे जब कारण पूछा तो उनका जबाव बडा तार्किक आया । उन्होंने कहा कि आँखों के सामने घटे घटना के बारे में लोगों का मत एक नहीं है जो कुछ ही देर पहले घटी है । घटना पर एक का कहना दूसरों के लिए झूठ है तो सैकडों हजारों सालों की अनदेखी बातें सत्य कैसे हो सकते हैं ?
वास्तकिता यही है कि “इतिहास है” में कोई इतिहास नहीं होता । मगर “इतिहास नहीं है” में इतिहास होता है । दुनियाँ के बडे बडे लेखकों ने यही बडी भूल कर दी कि घटना और दुर्घटनाओं का इतिहास से जोड डाली । होना तो यह चाहिए कि घटना घटना ही हो, इतिहास नहीं । इतिहास का अपना एक अमूल्य मर्यादा होता है । वह न सत्य को मानता है, न असत्य को । कारण इस पृथ्वी पर कोई भी चीज सत्य नहीं है । इतिहास निष्पक्ष होनी चाहिए ।
इतिहास लेखन एक कला है, और कला पूर्ण सत्य नहीं होता । वह सत्य का तीसरा नक्कल है । सत्य केवल सत्य ‐परमेश्वर के पास है । वही पहला सत्य है ।

Plato’s Views on Art

Art can never truly represent reality, for life itself, of which art is merely a copy, does not represent reality, according to Plato. Our world “…as we experience it, is an illusion, a collection of mere appearances like reflections in a mirror or shadows on a wall.” (Quoted by Rosalind Hursthouse in “Truth and Representation,” Philosphical Aesthetics.)  

For Plato, the only true reality is the unchanging world of the Forms, created by God, for example, the perfect form of the cat, the bird, the table, the chair. There is just one perfect copy of each of these Forms.
पृथ्वीनारायण शाह काल से आजतक के वर्तमान नेपाल का कोई इतिहास ही नहीं है । वे सारे घटनायें हैं । घटनायें चोर, उचक्का, बेइमान, क्रुर, तानाशाह, अत्याचारी, व्यभिचारी, नश्लवादी जैसे लोग व समूहों के द्वारा घटायी जाती हैं । वह कहानी हो सकता है, इतिहास नहीं । इतिहास प्रेम, भाइचारा, समानता, समान अवसर, समान सहभागिता आदि का निर्माण करता है । उसका परम्परा होता है । वह जीवन का सकारात्मक शिक्षा प्रदान करता है ।
इतिहास ब्रम्हा, विष्णु और शिव हैं । इतिहास राम, कृष्ण, बुद्ध और कबिर हैं । इतिहास जैन, जरथुस्त्र और जिसस हैं । इतिहास मोहम्मद, नानक और ओशो हैं । इतिहास गाँधी, मण्डेला और स्यामुएल च्यापलिन हैं । इतिहास वासिंगटन, माक्र्स, सन् यात्सेन, जिन्ना, बेमज्जबुर रहमान है और उन सारे महात्माओं के लिपीवद्ध अमर वाणियाँ हैं । इतिहास धार्मिक ग्रन्थों के नाम पर लिखे गये बडे छोटे पुस्तकें हैं ।
इतिहास अपनों से जुडा होता है । क्यूँकि अपनों से प्रेम होता है । प्रेम नजदिकियाँ बढाती है, दूसरों को भी स्थान देती है । प्राचीन नेपाल के सारे चीज अपने थे । भाषा ‐मैथिली, संस्कृति, चिन्तन और देशप्रेम भी अपनी थी । अब उस नेपाल का सारा चीज बाह्य है । भाषा बाहरी, पोशाक बाहरी, संस्कृति बाहरी, विश्वास बाहरी–सब बाहरी । आजके नेपाली कहे जाने बाले नेपालीयों का न अपना नेपाल है, न मधेश । उनके लिए नेपाल ठहरने और खाने के अलावा और कुछ भी नहीं है । उन्हें यहाँ के वास्तविक नेपालीयों से त्रास है, चिढ है और जलन है । क्यूँकि मधेशी अपने परिवार के साथ, संस्कारों के साथ, पोशाकों के साथ, संस्कृतियों के साथ स्थायी रुप से आज भी अपने भूमि पर हैं । मगर अतिक्रमित होकर ।
आज का नेपाल इतिहास नहीं है । महाभारत के अनुसार नेपाल पूर्व के नेपाल का प्रथम राजा Yotamba Haang जिन्हें Yolambor के नाम से जाना जाता है–से लेकर जयप्रकाश मल्ल के शासन कालतक की अवधि ही इतिहास है । नेपाल शब्द का उल्लेख प्राचीन पुरानों में पाया जाता है । २९ किराँत राजाओं के बाद गोपाल वंश का शासन नेपाल में कायम होता है । गोपालों को “Neep” or “Nep” भी कहा जाता था । भुक्तमान उस वंश का प्रथम राजा हुए । ImNpal.com¿Jitendra Sahayogi। उसी वंश के नाम पर नेपाल बनने के भी दावें किये जाते हैं । वही इतिहास है । उसके बाद के शासन काल बस् मिथ्या और व्याभिचार है । गोपाल वंश इतिहास बनाने का प्रेरणा देता है, नेपाली अहंकार बिगारने का । यह शान्तिप्रिय देश नहीं, अशान्ति का मूल जड है । जहाँ की शान्ति ही मृत हो, वहाँ प्रेम पैदा हो ही नहीं सकता । जहाँ जनसत्ता न हो, वहाँ अहंकारमत्ता हुकुमत करती है ।
भुक्तमान से लेकर जयप्रकाश मल्लतक के शान्त और सुन्दर विकसित नेपाल को पृथ्वीनारायण से आजतक के शासकों ने अहंकार, नश्लवाद, जातिवाद, परिवारवाद, नातावाद, खसवाद, गोरखावाद और अपने नापाक इरादों से नापाक नेपालीवाद बना दिया गया जिसे दुनियाँ के सारे मूल्क एक गरीब और भिखारी नेपाल कहते हैं ।
प्राचीन काल से ही स्वतन्त्र रहे मधेश तकरीबन दो शदियों से परतन्त्र है । परतन्त्र मधेश को नेपाली कोठियों में बेचकर दलाली करने बाले मधेशी नेतृत्वों का चरित्र उन राष्ट्रवादियों से तनिक भी भिन्न नहीं है जो अपने इज्जत के जवान छालों को दुनियाँ के वेश्यालयों में बेचकर भी स्वाभिमानी कहलाते हैं ।
मधेशी नेतृत्व आज भी मधेश के नाम पर राजनीति करके नेपाली होने का सपना देख रहा है, तो वहीं पर मधेश की बेटी जब मिस नेपाल बनने की काबिलियत रखती है तो नेपाल उसे नेपाली तक कहने में शर्मिन्दगी महशुश करता है । नेपाल के सारे मीडिया ने उसे अपने समाचार में स्थान देने में नफरत करती है । किसी ने नाम ले भी ली तो “तराई मूलकी यूवती” के नाम से , “नेपाली निकिता चन्दक” नाम से नहीं ।

मधेशी कुछ नेता इतने बडे नेपाली राष्ट्रभक्त हो गये हैं कि वे मधेश की मिट्टी हाथ में लेकर पूछते है, “माँ मधेश, मैं क्या करुँ ?” तो उस मिट्टी से उन्हें चुनाव में जाने और देश को बचाने का निर्देश सुनते हैं । कभी संघीयता का जन्मदाता, मधेशियों का उद्दारदाता और झापा से कंचनपुरतक मधेश एक प्रदेशदाता रहे इतने पथभ्रष्ट हो जायेंगे, मैंने खुद भी कल्पना नहीं की थी । वही शख्स जिसने कभी मुझसे कहा था कि वो मुझे गाँठ बाला मन्त्रालय का मन्त्री बना दिया है । मुझे शपथ लेने को कहा गया । मैंने इन्कार किया । वो मधेश को नहीं, गाँठ को अपना लक्ष्य समझते हैं । मधेश के साथ धोखा करने बाले वैसे नेतृत्वों को मधेशी कब पहचानेगा ?
“एक मधेश दो, नहीं तो दो मधेश लेंगे” कहने बाले ५० वर्षों से मधेश आन्दोलन के अनुभवी रहे दिग्गज तार्किक नेता के मधेश के अपने ही जिला के अपने ही चुनावी क्षेत्र को प्रदेश नं. ४ में डालकर नेपालियों ने चुनाव समेत करा ली । आजतक जिल्ला वही, मगर उस जिल्ला के आधा भाग दूसरे प्रदेश में जाकर चुनावित हो गयी । मगर विद्वान् उस नेता को आजतक भी होस नहीं है ।
मधेश अब मधेश नहीं, जातीय विषमता का केन्द्र बन गया है । मधेश में नेपाली सरकार द्वारा करवाये जा रहे चुनाव अब न देश का, न मधेश का होगा । वह चुनाव केवल जातिय बेमेल का होगा जो मधेश को स्थायी रुप से अनेक टुकडों में बाँट दिये जायेंगे और नेपाली उपनिवेश को मधेश में स्थायी बनाया जायेगा । यह चुनाव नहीं, नेपाली उपनिवेश का स्थायी जोगार है ।



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