Fri. Mar 29th, 2024

शान्ति एवं संविधान देश में चर्चा का विषय र्सवांधिक महत्वपर् रहा है। फिर भी सभी पार्टर्वं वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी अर्न्तर्संर्घष् सत्तालिप्सा तथा देश व जनता के हित की उपेक्षा की भावना के कारण समय पर संविधान निर्माण तो दूर इसका प्रारुप भी तैयार नहीं हो पाया है। संविधान निर्माण को आधार बनाकर संसदवादी नेतागण रोटी सेंकने में सफल तो हो गए है पर नेपाल की राजनीतिक अदूरदर्शी सोच के तहत ऐसा लगता है कि समय सीमा बढाने के बाबाजूद संविधान निर्माण प्रक्रिया मकडे की तरह अपने ही बुने हुए जाल में जकडकर दम तोड देगी।
जेठ १४ की मध्यरात्रि में नेताओं तथा पार्टियों के द्वारा दिखाए गए राजनीतिक घटनाक्रम बडी ही नाटकीयता पर्ूण्ा रही जो किसी भी दृष्टि से भावी संविधान निर्माण प्रक्रिया के लिए शुभ संकेत नहीं लगता है। आरम्भ में दूसरी बार समय सीमा बढाने को लेकर नेपाली कांगे्रस के द्वारा रखे गए शर्त देशहित में था, पर नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष सुशील कोइराला अपनेही शर्त से विचलित होते हुए अचानक शाब्दिक गोलमटोल समझौते पक्ष पर हस्ताक्षर कर लोकतांत्रिक पद्धति को ही पंगू बनाकर अपने पक्ष में आए जनमत को दरकिनार कर पुनः ने. कां. का देश हित में अर्जित ऐतिहासिक धरातल को पुनः कमजोर बनाने का काम किया। माओवादी पुनः ने. कां. को शाब्दिक गोलचक्कर में फँसाकर कुटिल स्वार्थ साधने में सफल रहा। तीन महीने का समय भी निर्रथक होगा। इसके बाद कुटिल राजनीति का दुष्परिणाम क्या होगा – कहना असम्भव है। नेपाल राष्ट्र आजकल राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संक्रमण से गुजर रहा है। उक्त संक्रमणों से राष्ट्र को बचाना अपरिहार्य हो गया है। संक्रमणों से राष्ट्र को बचाने की शक्ति हमारे पास है, पर्रर् इच्छा शक्ति और राष्ट्रीयता का अभाव है। इसी अभाव के कारण संविधान निर्माण की समय सीमा दो दो बार बढाकर नेता गण अपनी अकर्मण्यता, अक्षमता व लाचारी दिखा चुके हैं। फिर भी बहुप्रतीक्षित तथा अचुक औषधि रुप संविधान निर्माण अंगद की पाँव की तरह जस की तस विद्यमान है। जो सांसद लोग तीन वर्षकी अवधि में संविधान निर्माण नहीं कर सके, उन लोगों से तीन महीने में संविधान निर्माण होने की आशा रखना र्व्यर्थ है। जिस देश का संसदीय नेता लोग नक्कली परीक्षार्थी बनते हैं, पासपोर्ट बेचते हैं, शराब पीकर सडक पर तमाशा करते हैं, डिस्को बार जाते है, प्रशासक पीटते हैं, ऐसे तमाशवीन सांसदों से संविधान निर्माण की क्या अपेक्षा की जा सकती है –
किसी भी पार्टर्ीीें वैचारिक एकता होना स्वभाविक है पर वैचारिक विभिन्नता होना कोई अस्वभाविक बात नहीं है। वैचारिक भिन्नता को आपसी विचार विमर्श के आधार पर समन्वय करना किसी भी नेतृत्व पंक्ति को दूरदर्शी बनाता है, जो भावी राजनीतिक के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। पर नेपाल के राजनीतिज्ञों  में वैचारिक भिन्नता को सुनने तथा उस पर मनन कर समन्वयात्मक विचार धारा को लागू करने की परम्परा का पर्ूण्ा अभाव है। इसी परम्परा के कडी के रुप में माओवादी के भीतर व्याप्त असहिष्णुता एवं अन्तरविरोध के कारण माओवादी में समानान्तर तीन पक्ष के नेतागण एक-दूसरे को परास्त करने पर तुले हुए हैं। माओवादी पार्टर्ीीजस अन्तरविरोध एवं गुटबंदी का सामना कर रही है, ऐसी स्थिति इतिहास में पहली बार ए नेकपा -माओवादी) को दुविधा का सामना करना पडÞ रहा है। माओवादी पार्टर्ीीमूहों में बंटी है और समूहों के बीच शत्रुतापर्ूण्ा स्थिति विद्यमान है। एनेकपा -माओवादी) में फूट की राजनीति अपनी चरमविन्दु पर पहुँच चुकी है। इसीलिए तीनों गुट सोमबार १३ अषाढ पुनः अलग अलग स्थानों में सभा को सम्बोधन किया है। इससे स्पष्ट होता है कि एनेकपा माओवादी के भीतर व्याप्त विभेद मिलने के बजाय और अधिक गहराता जा रहा है। माओवादी पार्टर्ीीें व्याप्त मनोवैज्ञानिक मतभेदों को मिलाने का प्रयास नेतृत्व पक्ष के द्वारा होना चाहिए। कारण इस पार्टर्ीीी फूट से संविधान निर्माण एवं शान्ति प्रक्रिया ही प्रभावित हो सकती है।





About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: