सम्पादक की कलम से…
समीप आती जाती है, त्यों-त्यों नेपाल में राजनीतिक महाप्रलय आने की त्रास र्सवत्र छा जाती है। अन्तिम घडी में नेपाली जनता की चहल कदमी सोचने को बाध्य करती है कि हम अपने अधिकार प्राप्ति के प्रति बहतु सजग है। तीन दलों के प्रतिनिधियों की छलपर् ताडम-तोडÞ बैठकें यह सिद्ध करने लगती है कि हम देश और जना के परम हितैषी हैं। अन्य २५ दल मूक दर्शक, स्रोता बनने को बाध्य होते है, कारण देश में तीन दल बनाम तेरह नेताओं की हुकूमत चलती है। तीन दल तेहर नेताओं की जोर् इच्छा होती है, वही नेपाली की कानून बन जाती है। इसी सोच के तहत तीन बडे दलों के नेता गण अपनी-अपनी शर्तों को ५ शर्तां में संकुचित कर जेठ १४ की पूरी रात कुशल मदारियों की तरह नौटंकी करते करते पुनः समय सीमा तीन महीने के लिए बढाकर दो वर्षके जनादेश को पर्ूण्ा रुप से उपेक्षा करते हुए अधिक डेढÞ वर्षका समय तय कर लिया है। जनता जनार्दन अपने-अपने घरों में टी.वी. पर आँखें फाडÞ फाडÞकर बडी धर्ैयता के साथ देखते रह गए। अन्त में परिणाम वही निकला जो जनता जानती थी। देश दुःखी और चकित है। देश को जनकल्याणकारी संविधान चाहिए था सो तो अब तक नहीं मिला। पर इसके एवज में देश और जनता को मिली राजनीतिक अकर्मण्यता, वेइमानी, छलकपट और धर्ूतता जिसके कारण बहुप्रतिक्षित संविधान खतरे में फँसा हुआ है।
तीन दल के कुचक्र में फँसे संविधान को पर्ूण्ाता देने का एक ही रास्ता है, वह है भावी संविधान बनाने के लिए राष्ट्रप्रेमी, प्रबुद्ध नागरिक समाज को आगे आने का, सच्चे मन से जनदबाब बढÞाने का। विगत के दिनों में हुए गलतियों को सुधारते हुए संविधान निर्माण प्रक्रिया में नागरिक समाज और प्रबुद्ध जनवर्गीय संगठनों की सक्रिय सहभागिता देकर संविधान को पर्ूण्ाता देने की जरुरत है। इसके अभाव में नव संविधान निर्माण असम्भव है। इसके लिए प्रमुख तीन दल के अतिरिक्त २५ दलों की विशेष क्रियाशीलता भी अपेक्षित है। खासकर मधेशी मोर्चा को चाहिए कि मधेशी जनता को दिए गए वायदों को याद करें और उसे पूरा करने के लिए ऐक्यबद्धता स्थापित कर संविधान सभा में मजबूती के साथ दबाब बनाकर आने वाले नये संविधान में मधेशियों के अधिकार को स्पष्ट रुप में सुनिश्चित करावें। इसी में मधेशी मोर्चा का भविष्य सुरक्षित हे। अन्यथा मधेशियों को महाभारत के दुष्ट और कुटिल पात्र दुर्योधन की उक्ति सुनते रहना होगा- “सूच्यगे्रनैव दास्यामि विना युद्धेन केशव।”
आज देश संवेदनशून्यता की आग में झुलस रहा है। सत्ता प्राप्ति के लिए अव्यावहारिक गठबंधनों की होडÞ है। वर्तमान सरकार उसी का प्रतिफल है। अतिवादी विचार धारा राजनीतिक सोच पर हावी है। राजनेता लोग दलगत स्वार्थ में फँसकर रह गये हैं। राष्ट्र और जनता को सब प्रकार से धोखा दिया जा रहा है। असुरक्षा, शिक्षा की दिशाहीनता ओर महंगाई ने जनता की कमर तोडÞ दी है। इससे देश में वास्तविक परिवर्तन नहीं आ सकता। राजनेता, कर्मचारी और जनता को अपने-अपने व्यवहार में, आचरण में, दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना होगा। तभी समृद्ध नेपाल की कल्पना कर सकते हैं।
