Thu. Mar 28th, 2024

र्सवाच्च अदालत के न्यायाधीश रणबहादुर बम की ३१ मई को गोली मारकर हत्या कर दी। सरेआम दिनदहाडे हुए इस हत्याकाण्ड ने सरकार की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खडा कर दिया है। साथ ही नेपाल में संगठित अपराध और सुपारी देकर कंट्रैक्ट किलिंग के मामले में नयां मोडÞ आ गया है। बगलामुखी मन्दिर से र्सवाेच्च अदालत की तरफ आ रहे न्यायाधीश की हत्या जिस सुनियोजित तरीके से हर्ुइ है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि उसके लिए कई दिनों से न्यायाधीश और उनके दैनिक कार्याें की रेकी की जाती होगी। न्यायाधीश के साथ ही उस गाडी में रहे उनके निजी सुरक्षा अधिकारी -पीएसओ) महेश गिरी को भी गोली लगी थी। उन्हें तत्काल इलाज के लिए नार्विक अस्पताल में दाखिल कराया गया। कई दिनों तक आईसीयू में रहने के बाद जब वे जेनरल वार्ड में आए तो उस हत्याकाण्ड के संबंध में उन्होंने बयान दिया। नेपाल पुलिस में सहायक प्रहरी निरीक्षक -अर्सइ) रहे महेश गिरी द्वारा नार्ँर्विक अस्पताल के बेड नम्बर २९९ से उस दिन की वारदात के बारे में दिए गए बयान का हिन्दी रूपान्तरण उनके ही शब्दों में पेश किया जा रहा हैंः
बगलामुखी मन्दिर में रानी साहेब -न्यायाधीश की पत्नी) और छोटे राजा साहब -न्यायाधीश के छोटे बेटे) की पत्नी को बगलामुखी मन्दिर तक छोडÞने गए थे। राजा साहेब ने बाहर से ही मन्दिर का दर्शन कर लिया जबकि अच्छे से दर्शन हो इसके लिए दोनों रानी साहेब ने मन्दिर में दर्शन के लिए रही कतार में खडी हो गई। मैं उनको भीतर तक छोडÞ कर आया और गाडÞी की अगली सीट पर बैठ गया। डर््राईवर के बगल वाली सीट पर बैठकर मैं गाडी में लगे एफ एम से समाचार सुनने लगा। उस समय सुबह के करीब ११ बज रहे थे। पिछली सीट पर श्रीमान न्यायाधीश और उनके एक करीबी मित्र राम गिरी पिछली सीट पर बैठे थे। र्सवाेच्च न्यायालय तक पहुंचने के लिए हमें शंखमूल पुल से पहले ही यूएन पार्क बागमती काँरीडोर होते हुए थापाथली के रास्ते जाना था। मैंने गाडी के डर््राईवर को बताया कि टाऊन प्लानिंग के सीधे और चौडÞी सडÞक से निकले लेकिन इतना कहने के बावजूद डर््राईवर नदी किनारे वाली कच्ची सडÞक पर गाडी को उतार दिया।
हम जैसे ही नदी किनारे वाली कच्ची सडÞक से आगे बढÞे तब तक देखा कि हमारे आगे-आगे एक मोटर साइकिल है, जिस पर दो लोग सवार थे वो धीरे धीरे आगे बढÞ रहे थे। जैसे ही हमारी गाडÞी कुछ आगे बढी वैसे ही आगे वाली मोटरर्साईकिल धीरे धीरे चलने लगी और ऐसा लग रहा था कि जैसे वह खराब हो गयी हो और स्र्टार्ट में कोई समस्या आ गई हो। उसी सडÞक पर दो रास्तों को जोडÞने वाली पहली मोडÞ पर ही हमारी गाडी से २० मीटर करीब आगे वह मोटरर्साईकिल बीच सडÞक में रोक दी गई। मैं गाडÞी से उतरा। मैंने गाडÞी डर््राईवर से कहा कि वह गाडÞी को बन्द ना करे और स्र्टार्ट करके ही रखे। जैसे ही मैं उन दोनों मोटरर्साईकिल पर सवार युवकों के करीब पहुचा वैसे ही उसमें सवार एक आदमी उतरा। उसने हेलमेट लगा रखी थी। हेलमेट खोलने के बाद मैंने देखा कि उस आदमी ने अपने चेहरे पर काले रंग का मास्क लगा रखा है।
मैंने उससे कहा कि क्यों इस तरह से बीच रास्ते पर मोटरर्साईकिल खडी कर दी है – उसे हटाइए, हमें देर हो रही है। मेरा इतना कहना था कि उस व्यक्ति ने झल्ला कर कहा कि हार्ँन बजाने की जरूरत नहीं है, जब मैंने जरा डांट कर कहा तो उसने दो बार साँरी साँरी कहा। और मोटरर्साईकिल की तरफ घुम गया। उस मास्क लगाए व्यक्ति ने मोटर र्साईकिल का स्टैण्ड उठाने जैसा कुछ किया। मेरी दूसरी तरफ ही घुम कर उसने अपनी उंगलियों से एक… दो… तीन की गिनती की। इसके बाद मैं बिलकुल भौंचक्का रह गया। दोनों ने अचानक छिपा कर रखी गई पिस्तोल निकाली और मुझ पर फायर कर दिया। पहली गोली मेरे बालों को छू कर निकल गई। दूसरी गोली मेरी गर्दन में लगी। गोली लगने से मैं वहीं पर नीचे गिर गया। फिर भी अपने आपको संभालते हुए मैं घुटने के बल खडा हुआ और मेरी कमर में बंधी पिस्तौल को निकालने की कोशिश की। इतने में मुझे गोली मारने के बाद वो तुरन्त गाडी के तरफ लपके। मैंने पीछे घुमकर देखा और डर््राईवर को जल्दी से गाडी भगाने के लिए आवाज लगाई, लेकिन डर््राईवर अष्ट लामा गाडी में था ही नहीं। इधर मेरी कमर में बंधी पिस्तौल का कवर खुल नहीं पा रहा था। गर्दन पर गोली लगने के बाद मुझे लगने लगा कि अब मैं जिन्दा नहीं बच पाउंगा। गोली लगने और खून निकलने के बावजूद मैं हिम्मत के साथ गाडी के तरफ दौडÞा। जब तक मैं गाडी के पास पहुंचा तो मैंने देखा कि न्यायाधीश श्रीमान साहब दोनों हाथ ऊपर उठाकर आत्मर्समर्पण कर चुके थे। शायद उन्हें लग गया कि वो आज नहीं बचेंगे।
दोनों हमलावर व्यक्ति गाडÞी के दोनों दरवाजों के तरफ खडÞे थे। जिस तरफ श्रीमान बैठे थे मैंने उस तरफ के हमलावर को पकड कर पीछे खींचना चाहा। इतने में दरवाजा खुल गया। उन की तरफ पिस्तौल ताने हमलावर को देखने के बाद श्रीमान जैसे-तैसे भागने की कोशिश कर रहे थे। न्यायाधीश श्रीमान को बचाने के लिए मैं उनके तरफ गया और उन्हें घेरने की कोशिश की। इतने में एक हमलावर ने मेरी छाती पर पिस्तौल रख कर और एक गोली चला दी। मेरे ऊपर ही तीन गोली खर्च करने के बाद उनके पास अधिक गोली नहीं होने का मैंने अनुमान लगाया। मैंने सोच लिया कि अब मैं बिलकुल भी जिन्दा नहीं बच पाऊंगा। इसलिए मैंने श्रीमान को बचाने की ठान ली। हमलावरों के पास रही गोली शायद खत्म हो गई थी। उन दोनों के बीच कुछ बातचीत हर्ुइ। हमलावर में से एक ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा कि इसके पास भी पिस्तौल होगी इसकी पिस्तौल से ही न्यायाधीश को मारा जाए।
यह सुनकर मैं कमर के बल नीचे लेट गया ताकि वो मेरा पिस्तौल नहीं निकाल सकें। उन्होंने अपने पिस्तौल के मैगजीन को निकाल कर देखा और श्रीमान के तरफ भाग कर उन्हें गोली मार दी। मैंने सुना कि न्यायाधीश को ६ राऊण्ड गोली मारी गई। पूरा का पूरा मैगजीन ही खाली कर दिया था श्रीमान पर। उन्हें सीने में ३ गोली, गर्दन में १, हाथ में १ और बगल में १ गोली मारी थी। खून से लथपथ हुए हम जैसे ही थोडा आगे बढे उधर से देखा कि स्थानीयवासी दौड कर हमारी तरफ ही आ रहे हैं। स्थानीय लोगों से कहा कि श्रीमान को जल्द ही अस्पताल पहुचाया जाय, वे एक वीवीआईपी व्यक्ति हैं। स्थानीयवासियों की मदद से हमें तत्काल एक टैक्सी में रखा गया। मैंने अपना एक हाथ अपनी गर्दन पर रखा हुआ था जहां से खून बह रहा था। और दूसरा हाथ श्रीमान की छाती पर रखा हुआ था। मैंने उनकी छाती से निकल रहे खून को रोकने की कोशिश की। श्रीमान तब तक होश में ही थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि अर्सइ साहब आप ठीक तो हैं न। मैंने जबाब दिया कि मैं ठीक हूं। थापाथली पहुंचने से पहले एक नयां पुल बना है। वहां तक मैं भी होश में ही था। उसके बाद पता नहीं होश आया तो खुद को अस्पताल में पाया। लेकिन मैं श्रीमान को नहीं बचा पाया, यह जानकर अत्यन्त ही कष्ट हुआ।
मैं पीछले श्रावण महीने से ही श्रीमान के पीएसओ के रूप में कार्यरत था। श्रीमान रोज सुबह शाम डेढÞ घण्टा तक अकेले ही मार्ँर्निंग वाँक पर जाया करते थे। कभी भी किसी प्रकार की धमकी या टेलीफोन या कोई भी संदिग्ध बात नहीं हर्ुइ थी। मैंने ही जेष्ठ ९ गते को श्रीमान से निवेदन किया कि जेष्ठ १४ गते करीब आ रहा है। सुरक्षा खतरा हो सकता है। आप अकेले कहीं न जाया करें और चौकन्ना भी रहे। लेकिन मेरी बातों पर श्रीमान ने मुझसे कहा कि मुझे कुछ नहीं होगा। मैंने किसी का क्या बिगाडा है जो मेरा कोई कुछ बिगाडेगा। मैंने न किसी का खाया है और न ही किसी से डरूंगा। गलती करने पर ही तो डरूंगा। बिना गलती के किससे डरना – मुझे बेहद अफसोस है कि मेरे होते श्रीमान की हत्या हो गई। मैंने अपनी जान पर खेल कर भी श्रीमान को बचाने की कोशीश की लेकिन अफसोस कि ऐसा नहीं हो सका।



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: