रुह काँपती है यह सोच कर कि बेटियाँ कहीं सुरक्षित नहीं हैं : श्वेता दीप्ति
रिश्तों पर पड़ी धूल हटने की उम्मीद
हिमालिनी, सम्पादकीय , अप्रैल अंक २०१८ | राजनीतिक गलियारे में एक बार फिर सरगर्मी छाई हुई है प्रधानमंत्री ओली की भारत यात्रा को लेकर । नया कुछ भी नहीं है पर, विगत को सोच कर पेशानी पर बल जरूर पडे हुए हैं । खैर देखना यह है कि यह यात्रा एक औपचारिक यात्रा में सिमटती है या रिश्तों पर पड़ी धूल को हटाकर कोई सही नतीजा सामने लाती है । वैसे ज्यादा उम्मीद की अपेक्षा नेपाली जनता ना करें तो बेहतर होगा । क्योंकि दावे या वायदे चाहे जितने भी कर लिए जाएँ, देश की कार्य प्रणाली इतनी सुस्त है कि कार्यान्वयन होते न होते सत्ता बदल जाती है और उसके बाद फिर एक नए सिरे की शुरुआत सिफर पर लाकर छोड़ देती है ।
इस बीच देश का भयावह चेहरा सामने आ रहा है और वह है बलात्कार की बढ़ती घटनाओं का आँकड़ा । रुह काँपती है यह सोच कर कि बेटियाँ कहीं सुरक्षित नहीं हैं । न तो अपने घर में और न ही घर की चहारदीवारी से बाहर । मनुष्य का इतना घिनौना चेहरा सामने आ रहा है, जिसे देखकर मानवता शर्मसार हो रही है । हर रिश्ता यौन शोषण की बलि चढ़ रहा है । कब तक नारी शरीर को सिर्फ भोग्या समझा जाएगा ? अशिक्षा की आड़ में पशुता सर उठाती है और क्षणिक आवेग सब कुछ तबाह कर जाता है । वैसे सच तो यह है कि इस मामले में कभी कभी शिक्षित भी पशु समान ही होते हैं, जब उनकी निगाह में हर औरत सिर्फ औरत होती है जो उसके लिए खेलने और मन बहलाने की चीज होती है । जी हाँ चीज, जब तक औरत को मनुष्य नहीं समझा जाएगा, तब तक वह ऐसे ही उपयोग होने वाली वस्तु ही बन कर रहेगी । सही सामाजिक परिवेश, सही परवरिश और सही यौन शिक्षा आज की आवश्यकता है, जिसे सभी को समझना होगा । तभी किसी सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद कर सकते हैं ।