जिह्वा-बिम्मी शर्मा
जिह्वा यानी कि जीभ जो सांप की तरह हमेशा दुसरो को डँसने के लिए लपलपाती रहती है । पेड़ के खोह में जिस तरह सांप रहता है उसी तरह मुँह के खोह में यह बिना हड्डी का जीभ सांप की तरह छुपा रहता है । जहां कोई ईंसान मिल गया वह भी सीधासादा या भोलाभाला तब यह जीभ अपने खोह से बाहर निकलती है और सामने वाले को दुर्वचन या गाली से डँस लेती है । सामने वाला बेचारा मर्माहत हो कर रह जाता है । सांप के डँसने का ईलाज है पर यह जीभ की काली नाग से डँसे हुए का कोई भी ईलाज नहीं हैं । हां जिस को डँसा जाता है वह ताक में रहता है कि कब मैं भी इस का बदला लूं इस को डसने का मजा लूं । वास्तव में जीभ और सांप दूसरों को डँस कर मारने के लिए ही बने हुए हैं ।
‘सांप अपने जीभ से डंक मार कर इंसानो को मारता हैं और इंसान की जिह्वा भी अपने वचन वाण से दूसरों को डँसते रहने का आदी है । ईश्वर ने इंसान को मुँह तो खाने और भगवान के नाम का कीर्तन करने के लिए दिया है पर हम इस सांप की तरह बिना हड्डी के फिसलते रहने वाली जीभ का सदुपयोग बस दूसरों को गाली देने और वचन वाण से डँसने के लिए ही करते हैं । सांप अपना फन उठा कर डँसता है और जीभ के पास कोई फन नहीं होता पर इस के पास वह फन होता है जो दूसरों का तेजोवध करना जानता है । बिना फन के ही इंसान की जीभ सांप से भी खतरनाक है । जिस का काटा पानी भी नहीं माँगता ।
महाभारत मे यदि द्रौपदी ने अपने स्वयंवर में ‘मैं कर्ण को वरमाला नही पहनाउंगी’ और अपने महल में फिसल कर गिरने पर दुर्योधन को अंधे के बेटा अंधा ही होता है कह कर चिढ़ाया न होता तो महाभारत का युद्ध होने की संभावना बहुत कम थी । पर अभिमानी द्रौपदी ने आगा पीछा सोचे बिना ही अपनी साँप की तरह लपलपाती जिह्वा से जो आग उगल दिया उस ने ही महाभारत के युद्ध का श्री गणेश कर दिया । बाद में इसी द्रौपदी का दुष्ट दुःशासन ने चीर हरण किया । तो देखा आप ने अपने अंदर पाले हुए अहंकार के सांप ने खुद को ही डँस लिया और कई राज परिवार महाभारत की लडाई मे स्वाहा हो गए । यदि द्रौपदी अपनी जिह्वा को थोड़ा नियन्त्रण में रखती तो उसी का भला होता । पर नहीं अपनी जीभ और इस के करामात को प्रदर्शन करने का सभी को शौक होता है । इसी लिए जीभ की तलवार को निकाल कर दूसरों पर अंधाधुँध वार करते रहते हैं ।
हमारे देश के प्रधान मंत्री अपनी जीभ को सांप की तरह लपलपाने देते रहते हैं । जो गाहे बगाहे सबको डँसता ही रहता है । पिछले निर्वाचन में एमाले को जो दो तिहाई बहुमत मिली है उसी को हलाहल बना कर प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली दूसरों पर वार करते रहते हैं । कूट वुद्धि तो कोई पीएम ओली से सीखे कैसे विपक्ष को परास्त कर के अपनी एक क्षत्र राज चलानी है । पीएम ओली भी अपने जिह्वा से दूसराें को डँसने में सिद्धहस्त हंै । मुहावरों की चाशनी मे लपेट कर जिस तरह पीएम ओली डँस कर अधमरा कर के छोड़ देते हैं वह तो भुक्तभोगी ही जानता है कितनी तीखी डंक थी उनकी । बेचारा विपक्षी तिलमिला कर रह जाता है ।
कभी कभी तो अपने ही नाव के सहयात्री कामरेड प्रचडं को भी डँसने से केपी ओली बाज नहीं आते । जिस ने कभी १७ हजार जनता का सिर कलम किया था वह कामरेड प्रचडं भी केपी ओली की सांप रूपी जिह्वा के डँसने पर तड़प कर रह जाते हंै । दो तिहाई के भूत ने ओली को ऐसे जकड़ रखा है कि वह उसी का विष दूसरों पर फेंकते रहते है । पीएम ओली को मालूम है कि इस दो तिहाई के कारण ही कोई भी इन का बाल बांका नहीं कर सकता इसी लिए अपनी जीभ की तलवार को मुहावरों का पेच लगा कर दूसरों को धराशायी करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते । और उन के पाले हुए हनुमान उनकी जीभ के प्रहार को भी उन की योग्यता मान लेते हैं और अपने विरोधियों से झगड़ते रहते हैं ।
अभी हाल ही में पीएम ओली ने सुलभ स्वास्थ्य उपचार और शिक्षा के लिए अनशन पर बैठे डा. के.सी. को डाक्टरी छोड़ कर राजनीति में आने के लिए ललकारते हुए अपने जीभ से प्रहार किया है । पीएम ओली डा. के. सी. के अनशन से इतने डरे हुए हैं कि उन्होंने राजधानी के मुख्य, मुख्य स्थानों पर धरना, प्रदर्शन करने और अनशन पर बैठने के लिए प्रतिबन्ध लगवा दिया है । सत्य की आंख से मुँह की खोह में छुप कर रहने वाली जिह्वा भी डरती है और सत्य की आंख बचा कर अधेंरे में अपने दुश्मन पर वार करती है । आखिर में जिह्वा का काम ही क्या है ? प्रभु का नाम तो लेना नहीं है । सुबह, दोपहर और रात को तीन बार खाना खा कर डकारने के बाद बांकी समय दूसरों की शिकायत करने, चुगली करने, उन को गाली देने और डँसने के काम में ही जीभ का समय बीत जाता हैं । बहुतों की जीभ तो सपने मे लपलपाती है और अटंशंट बड़बड़ाती रहती है । दरअसल अपनी जीभ को लोगों ने तलवार जैसा बना दिया है । जो जहां पर भी दूसरों को वार करने में ही लगी रहती है । मुँह के म्यान में तलवार जैसी जीभ को ले कर चलते हैं लोग । बिना हथियार लिए हुए भी इसी एक जीभ के कारण लोग निडर हो कर चलते हैं । क्योंकि उन्हें मालूम है कोई भी दूध का धुला नहीं है । और सभी के अतीत में कुछ न कुछ राज छुपा हुआ होता ही है । उसी राज या कमजोरी को सरेआम पर्दाफाश कर देगें और अपने दुश्मन या विरोधियों को चित कर देंगे ।
तो देखा आप ने देखने में गुलाबी और नर्म यह जीभ कितनी करामात करती रहती है । यह जी तेजाब की तरह शराब, पान पराग और गुटखा हीं नहीं खाती है । उन्ही की तरह तेजाब बन कर गाहे बगाहे अपना मुँह पैसे की थैली की तरह खोल कर दूसरों का जीवन बरबाद करती है । क्योंकि यह जीभ मुँह के अंदर चुपचाप बैठ ही नहीं सकती । इस को सांप की तरह लपलपाने और दूसरों को डँस कर मारने में मजा आता हैं । इसी जीभ के कारण ही अच्छे भले संबंध बिखर रहे हैं । लोगों की मित्रता शत्रुता बदल गई है । मुँह की खोह से निकल कर दूसरों को डँस कर दूसरों को बुराई की खाई मे गिराना इंसानी जीभ का प्रिय शगल है । और यह काम इंसान की जिह्वा हजारों सालों बिना कोई परहेज किए बड़ी लगन से करती आई है और आगे भी उसी लगन से करती आएगी । ताकि अपने वार से दूसरों का जीवन संवरने की बजाय और बिखर जाए और वह बरबाद हो जाए । सभी मिल कर एक स्वर में बोलो जिब्रेश्वर भगवान की जय ।
