नेपाल के नेता “चाइना कार्ड” खेल्ने से परहेज क्यूँ नही करते ? : चन्दा चौधरी (संघीय सांसद)
नेपाल की समृद्धि के लिए भारत जैसे मित्र राष्ट्र की ही जरुरत

राजनीतिक सम्बन्ध एक गहन बिषय है । और ऐसे सम्बन्धो को मजबूत बनाने के लिए हमे होशोहबास मे रह कर कदम बढाना चाहिए । मै चर्चा करना चाहती हुँ नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के अध्यक्ष पुष्मकमल दहाल का हाल ही मे हुए भारत और चीन भ्रमण का । कुछ हफ्ते पहले दहाल भारत भ्रमण पर गए थे । और भ्रमण पश्चात उनकी प्रतिक्रिया थी कि भ्रमण एतिहासिक रहा । एतिहासिक इस मायने में की दुनिया के सबसे बडे लोकतान्त्रिक देश भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उनको बिशेष समय दे कर उनसे बातचीत की और कहा कि नेपाल के बिकास के लिए भारत सरकार हर सम्भव सहयोग करने को तयार है । दहाल ने भारतीय पत्रिका दी हिन्दुस्तान टाइम्स को अन्र्तवार्ता देते हुवे कहा था कि ‘जब मैं नेपाल के प्रधानमन्त्री के हैसियत से भारत आया था तो प्रधानमन्त्री से सिर्फ पन्द्रह मिनट बात करने का मौका मिल पाया था वही इसबार के दौरे पे मोदी जी से एकघण्टा पन्द्रह मिनट तक बात करने का मौका मिला और मेहमानावाजी का तो जवाव नही’ । इससे यह सिद्ध होता है कि भारत और नेपाल के बीच का सम्बन्ध वाकई मे दुनिया में सबसे अनोखा सम्बन्ध है । गौरतलव है कि नेपाल में अभी कम्युनिष्टो की सरकार है । दहाल नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी के मुखिया हैं । और भारत मे अभी भारतीय जनता पार्टी की सरकार । जो कि पुर्णतः लोकतान्त्रिक शक्ति है । फिर भी भारत का नेपाल को सहयोग करना यह दरसाता है की भारत नेपाल मे किसी भी तरह की राजनीति से उठकर एक असल पडोसी की भुमिका निर्वाह करने से पीछे नही हटता । परंतु नेपाल मे बडी कहलाने बाली राजनीतिक पार्टियो के कुछ उच्च ओहदे बाले नेतागण ‘दिल से कायम रिश्तो में भी दिमाग’ लगाने से पीछे नही हटते ।

भारत दौरा सफलता पुर्वक खत्म कर पुष्पकमल दहाल चीन के लिए रवाना हो गए । जाने से पहले पत्रकार सम्मेलन कर उन्होंने कहा था की चीनी राष्ट्रपति सिजिन पिङ्ग से भी उनकी भेटघाट है । परंतु मीडिया रिपोर्टिङ के अनुसार प्रचण्ड जी चीन के राजधानी बेजिङ्ग भी नही जा पाए । क्या यह नेपाल के पुर्व प्रधान मन्त्री एवं कम्युष्टि पार्टी के एक बडे नेता का दुनिया के बडे कम्युष्टि देश मे किया गया अपमान नही है ? अभी यह प्रश्न नेपाल मे चर्चा के शिखर पर है । हिन्दुस्तान टाइम्स मे प्रकाशित प्रचण्ड के अन्र्तवार्ता मे यह भी प्रचण्ड ने कहा है कि उन्हे चीनी नेता एवं अधिकारियो ने कहा है कि नेपाल को भारत के साथ ही नजदीकी रख देश बिकास को आगे बढाना सार्थक होगा । और साथ मे यह भी कहा गया है की भारत–चीन के बीच सम्बन्धो का प्रगाढता पहले से बढी है । परंतु नेपाल के नेता आखिर “चाइना कार्ड” खेल्ने से परहेज क्यूँ नही कर रहे है ? क्या इससे देश को कोई लाभ होने की सम्भावना भी है ? हमारे बिचार मे ऐसा बिल्कुल सम्भव नही । यह अलग बात है कि हमे अपने पडोसियो से बेहतर सम्बन्ध रखना ही चाहिए । चीन भी हमारा पडोसी है जो की आज के दिन मे विकास पथ पर तेज गति में बढ रहा है । परंतु भूराजनीति जैसी गंभीर सबालो को हमे गंभीरता के साथ लेना ही होगा । हाल ही मे नेपाल और चीन के बीच व्यापारिक मार्ग के लिए एक प्रोटोकल ड्राफ्ट किया गया है । और नेपाल कम्यूनिष्ट पार्टी के कुछ नेतागण आवश्यकता से ज्यादा उत्साहित नजर आते है । लेकिन क्या यह सम्झौता अर्थपूर्ण भी है ? सबसे पहले तो अर्बो का बजट खर्च कर नेपाल का पहाड़ तोड़ना होगा हमें । जब की नेपाल मे पहाड़ एक बड़ी सम्पति के रुप मे लिया जाता है, पर्यटकीय हिसाब से भी । मानलिया जाय की पहाड़ फोड़ कर अगर हम ब्यपारिक मार्ग भी बना लेते है तो फिर उस रुट को प्रयोग कर हम अगर तीसरे देश से सामान भी लाते है तो उसकी कीमत ३÷४ गुणा मंहगी होगी भारत से लाते है उसकी तुलना मे । हमारा देश वैसे ही आर्थिक हिसाब से कमजोर है । बेरोजगारी की संख्या अधिक है । कैसै हम नेपाली सम्भावित मंहगाई को झेल पाएंगे ? अन्त में । दुनिया को यह पता है कि नेपाल और भारत का सम्बन्ध अनोखा है । और नेपाल में अपने आप को राष्ट्रवादी कहने बाले दलो को भी यह पता है । तो फिर इस अनोखे रिश्तो का अधिक फायदा लेना चाहिए देश विकास के लिए । और एक असल पड़ोसी देश को किसी दूसरे देशो के साथ जबरदस्ती सम्बन्ध बनाकर रिश्तो मे दरार पैदा करना अच्छी बात नही ।
अच्छि वात अापने बता ताे दि म्याडम लेकिन कमनिष्ट ताे कमनिष्ट हि हाेता है करता एक है दिखाता दुसरा जाे यिनकि खासियत है ….जनताकाे बेवकुफ वना ने का….क्या किजिएगा जब जनता समझता नहि ताे समृध्द नेपाल दुखि: नेपाली का नाैटङ्गि चलता रहेगा…अागे देखिए