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कही हिरासत में रहनेका प्रमाण भी नही है । कहीं अस्पताल में लाश के रूप में भी नही है । तो कहाँ गये ?



मै रहूँ ना रहूँ , जो मै कहा हूँ वह होकर रहेगा । 

हिमालिनी, अंक अक्टूबर 2018 । वह सिद्धहस्त सर्जन–डाक्टर थे परन्तु देखने पर डाक्टर से ज्यादा कोई साधु–सन्त के जैसे दिखाई पड़ते थे । छोटे–छोटे केश, लम्बी सी शिखा, ललाट पर श्वेत त्रिपुण्ड चन्दन, नाक के शीर्ष पर लाल रंग का गोलाकार टीका, उजले रंग का साधारण खद्दर का कुर्ता और धोती, कन्धे पर किसान के द्वारा प्रयोग किये जानेवाला लाल रंग का अंगोछा,जिसे तौनी भी कहते हैं, धारण किये हुए और पाँव में पुराने टायर से स्थानीय रूप में बनाया गया चप्पल, भव्य साधारण पहनावे में भी, असाधारण व्यक्तित्व । वैसा ही उनका खान पान भी एकदम साधारण था । खिचड़ी आलु का चोखा अथवा रोटी वा भात तथा रसदार सब्जी । सुबह स्नान, पूजा पाठ,इसके बाद ध्यान घण्टो चलता रहता था,इसके साथ साथ भजन– कीर्तन भी नित्य होता था । हारमुनियम,ढोलक,झाल जैसे वाद्य वादन की व्यवस्था भी स्वयं किये हुए थे जिससे वह स्वयं, उनका सहयोगी के साथ साथ पड़ोसी लोग भी नियमित भजन में सहभागी होते थे ।उनका डेरा, कोइ साधूसन्त के कुटी के समान लगता था । वह थे धनुषा जिल्ला, डेबडिहा गाँव वार्ड नं–८, हाल नगराइन न.पा.,के स्थायी वासिन्दा और जनकपुरधाम उपमहानगर पालिका में कार्य क्षेत्र बना कार्यरत डाक्टर लक्ष्मी नारायण झा जो वर्तमान में गुमशुदा हैं ।

 

 

डा. लक्ष्मी नारायण झा जन्म प्रजातन्त्र दिवस के ही वर्ष २००७ साल में हुआ था । वह बच्चे से ही बहुत मेधावी थे । वे एस.एल.सी., राजेश्वर निधि मा.वि. नगराइन, धनुषा से प्रथम श्रेणी मे किये थे । आइ.एस सी., अमृत साइन्स कलेज, काठमाण्डौ से प्रथम श्रेणी में किये थे और एम.बी.बी.एस.,ग्रान्ट मेडिकल कलेज बाम्बे से,कोलम्बो प्लान अन्तर्गत,प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किये थे
२०४२ साल में काठमाण्डौ में बम काण्ड हुवा जिसके नायक स्वर्गीय रामराजा प्रसाद सिंह थे, जिसे मृत्युदण्ड की सजा सुनायी गयी थी,वह भारत प्रवास में होने के कारण, कुछ नही हुआ और बाद में वह ने.क.पा.(माओवादी)की तरफ से राष्ट्र«पति के उम्मीदवार बने और हार गये । उस समय में पंचायती व्यवस्था थी और राजा का विरोध करना अक्षम्य अपराध समझा जाता था । उसी अपराध में बहुत लोग पकडेÞ गये थे और ये भी उसी का शिकार हो गये थे । इनका परिवार अस्त व्यस्त हो गया । पिता–माता इनको ढूँढने मे कोई कसर नहीं छोड़ी थी । अदालत तक गये, मगर प्रतिफल कुछ नही मिला । लोकतंत्र आया,गणतंत्र आया,राजा शासन खतम हुवा,बेटे की साँस वा लाश खोजते रहे पर कुछ नही मिला । लड़ते–लड़ते दोनो इस दुनिया से विदा हो गये । भाइ अशोक कुमार झा जो साये की तरह उनके साथ रहते थे उनको खोजते–खोजते अपना जीवन बर्वाद कर लिये । कोइ रोजी–रोटी का इन्तजाम भी नही कर पाये । एम.ए. पास होकर भी भाई की ममता के कारण उनको ढूँढते – ढूँढते स्वयं बेरोजगार होकर बैठे हुवे हैं और उनका परिवार कठिन जिन्दगी जीनेक े लिए विवश है । राजनीतिक दलों के नेता लोगों का कहना है कि कोई प्रमाण है तो पेश करो । वे कोई भी जेल में कैदी के रूप में नही हैं । कही हिरासत में रहनेका प्रमाण भी नही है । कहीं अस्पताल में लाश के रूप में भी नही है । तो कहाँ गये ?

मैं कभी सबके बीच से गायब भी हो जा सकता हूँ । तब मै किसी को नही मिलूँगा । मै जनकपुर में आउँगा अवश्य पर मुझे कोई नही पहचान पायेगा । मेरा रूप,मेरा वेष,मेरी अवस्था सब कुछ अलग होगी

गरीबों का मसीहा डाक्टर जो साधारण से लेकर असाध्य रोग का भी चमत्कारिक इलाज करते थे । विद्यापति चौक में उनकी क्लिनिक थी जहाँ वो सबेरे दस बजे से शाम सात बजे तक इलाज करते थे । जिसकी फीस स्वेच्छा से मरीज देते थे । गरीब को निःशुल्क इलाज के साथ–साथ दवा भी देते थे । इसके अलाबा डेबडिहा गाँव मे भी सप्ताह में एक रोज शनिवार जाकर सेवा देते थे । यदि कोई बीमार है,यह उनको पता चल जाता तो बुलावे के बिना घरपर जाकर इलाज कर देते थे ।उनका मरीज जबतक ठीक न हो जाय तबतक वह उनके स्वास्थ का खयाल रखते थे । वह इलाज के साथ–साथ नैतिक शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षा भी देते थे । वे राजनीति से दूर थे परन्तु मधेसी के अधिकार तथा मिथिला राज्य के पक्षधर थे और राजतंत्र के खिलाफ थे जो कभी–कभी बोलते भी थे । सक्रिय राजनीति में संलग्न नही होते हुए भी,मन की बात बेवाक बोलने के कारण,न जाने वे किस परिस्थिति मे पड गये ।
डा. लक्ष्मी नारायण झा के पिता का नाम श्री नागेश्वर झा और माता का नाम श्रीमती अन्नपुर्णा देवी झा था । पाँच भाई बहन में सबसे जेष्ठ वह स्वयं थे अन्य भाई मे श्री बद्री नारायण झा, मेकानिकल इन्जिनियर, हाल काठमाण्डौ ,डा.रुद्र नारायण झा, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जनकपुरधाम, अशोक कुमार झा, डेबडिहा ग्राम में ही रह रहे, बहन माला झा, विवाहित ,जनकपुरधाम में ।उनके पिता स्व.श्री नागेश्वर झा भी राजनीतिक रूप में सक्रिय व्यक्ति थे और प्रजा परिषद पार्टी के केन्द्रीय स्तर में कार्य कर चुके थे । वे २०१५ साल में टंक प्रसाद आचार्य द्वारा बनाए गए मंत्री परिषद में वन मंत्री के रूप मे पदासीन होकर सम्मानित हो चुके थे । उनके सब पुत्र–पुत्री पढाई में बहुत तीक्ष्ण थे । डा. लक्ष्मी नारायण झा जन्म प्रजातन्त्र दिवस के ही वर्ष २००७ साल में हुआ था । वह बच्चे से ही बहुत मेधावी थे । वे एस.एल.सी., राजेश्वर निधि मा.वि. नगराइन, धनुषा से प्रथम श्रेणी मे किये थे । आइ.एस सी., अमृत साइन्स कलेज, काठमाण्डौ से प्रथम श्रेणी में किये थे और एम.बी.बी.एस.,ग्रान्ट मेडिकल कलेज बाम्बे से,कोलम्बो प्लान अन्तर्गत,प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किये थे । उसी मेडिकल कालेज मे एम.एस का भी अध्ययन कर रहे थे कि फाइनल पूरा करने से पूर्व ही ,नेपाल में जनमत संग्रह का घोषणा हुवा तो वे बहुदल को साथ देने के लिये २०३६ साल में नेपाल आ गये । जनकपुर मे लोगों को स्वास्थ्य उपचार सेवा देने के साथ–साथ अपना विचार भी बाँटना शुरु कर दिये । जिसके कारण उनपर राजकाज अपराध का आरोप लगा, २०३९ साल में सर्वप्रथम सिरहा जेल में कैद करके रखा गया । वह स्पष्ट रूप से अपनी बात रखते थे, जिसमे जनता का शासन,मधेसी लगायत सब वर्ग को शासन–प्रशासन मे समानुपातिक सहभागिता और भौगोलिक तथा साँस्कृतिक अवस्था अनुसार देश में प्रदेश का निर्माण । होगा यह कहकर भविष्यवाणी करते थे और वही सबको अखरता था ।

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इतना तक कि मधेस के नेता लोग भी उनकी भावना को पचा नही पाते थे । वह अपने अन्तरंग लोगों से कहते थे, देखना मै रहूँ ना रहूँ , जो मै कहा हूँ वह होकर रहेगा । मैं कभी सबके बीच से गायब भी हो जा सकता हूँ । तब मै किसी को नही मिलूँगा । मै जनकपुर में आउँगा अवश्य पर मुझे कोई नही पहचान पायेगा । मेरा रूप,मेरा वेष,मेरी अवस्था सब कुछ अलग होगी । मेरे साथ बजरंगवली रहेगे । उनको भगवानपर बहुत विश्वास था । वे बजरंगवली के परम भक्त थे । अन्य देवता के साथ–साथ हनुमान जी की तस्वीर घर में विशेष रूप से सजाये हुवे थे । हनुमान चालीसा को नित्य पाठ करते थे । लोगों को भी हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिये प्रेरित करते रहते थे । वे हनुमान चालीसा और हनुमानजी के तस्वीर वितरण भी करते थे । एक रोज बडा सा हनुमानजी (बन्दर) इनके डेरा के छत पर आया और इनसे हाथापाई करने लगा । जिससे ये सामान्य घायल भी हो गये । ये हनुमानजी की खूब खातिरदारी किये और जनकपुरधाम के रामानन्द चौक पर हनुमत दरवार में विशेष मन्दिर बना विराजमान करबाये ,जो अन्तिम समय तक पुजित होकर शोभायमान रहा । इनका आवास विद्यापति चौक से पश्चिम स्व.डा. कृष्ण चन्द्र मिश्रजी(हिन्दी भाषाके प्रसिद्ध विद्वान तथा त्रि.वि.विके विभागीय प्रमुख)के मकान में भाड़ा में था ।
२०४२ सालके बम कान्ड क्या हुआ, वे एक प्रमुख अभियुक्त के रुप में माने गये । उनका डेरा सरकारी पुलिस चारो ओर से घेर लिया । किसी को कुछ भी बोलने नही दिया गया । भाई अशोक कुमार झा जो साथ में थे उनको भी प्रवेश नही करने दिया गया ।डाक्टर साहेब पूजा पर बैठे थे । पूजा के समापन होने तक धैर्य से बैठने के लिये अनुरोध किये । पूजा के बाद पुलिस के साथ चल दिये ।घर की तलाशी ली गयी । जिसमे भगवान का फोटो,धार्मिक ग्रन्थ,सब धर्मो के सार तत्व का कोटेशन,लेथो मशिन का इंक और कुछ कागज पत्र सब के साथ–साथ मेडिकल पुस्तक तथा औजार सब को तहस –नहस कर दिया गया और पहले एस.पी. कार्यालय और उसके बाद सि.डि.ओ. कार्यालय में ले जाया गया ।कहते थे कुछ पुछताछ करने के बाद छोड़ दिया जायेगा इसी लिये किसी ने एरेष्ट वारन्ट भी नही खोजा । लेकिन वह हुआ नही । आठ दस दिनों के बाद डा. लक्ष्मी नारायण झा को, वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेश्वर नेपाली,वरिष्ठ वकील श्री युगल किशोर लाल तथा अन्य कुछ और युवा नेता के साथ काठमाण्डौ भेज दिया गया । जँहा से अन्य लौटकर आये मगर डाक्टर साहब कभी नहीं आये ।
पिता ,पूर्व मंत्री श्री नागेश्वर झा नेपाल सरकार, भारत सरकार के पदाधिकारी लोगों को अनुनय– विनय करते–करते स्वर्ग सिधार गये । माता श्रीमती अन्नपुर्णा देवी झा, नित्य दिनकर दीनानाथको ,अपने दोनाें हाथ से खाली आँचल दिखा–दिखाकर अपनी अश्रुधारा अर्पण करके इंसाफ खोजती रही ।दोषी को सजा तो भगवान ने दे दिया पर उनका लाल नही ही मिला और वह भी बिना पुत्र को देखे ही स्वर्ग प्रस्थान कर गयी ।आज देश गणतान्त्रिक युग में है । उनके परिवार के साथ,सचेत नागरिक आस लगाये बैठे हैं कि, ‘ उनकी भौतिक अवस्था के सम्बन्ध में वर्तमान सरकार स्पष्ट करेगी और उनके परिवार को न्याय मिलेगा । ’ वास्तव में वह राष्ट्री«य सम्मान के हकदार हैं, साथ–साथ उनका परिवार जिस असीम कष्ट को सहन किया है इसके लिये उनके परिवार को उचित क्षतिर्पुिर्त उपलब्ध कराना भी आवश्यक है । नेपाल सरकार ने ही उनको बेपत्ता बनाया है तो वर्तमान नेपाल सरकारको ही जवाबदेही लेनी होगी । आखिर वे गणतन्त्र लाने के लिये ही अपनी जान की परवाह किये बगैर जनमत तैयार करने में लगे थे । वह बम–बन्दूक तथा आतंकवादी गतिविधि में विश्वास कतई नही करते थे । शान्तिपूर्ण आन्दोलन से ही मन परिवर्तन करने में लगे थे, उसमे सफलता तो बाद मे मिली ही और गणतन्त्र आया ही मगर नेपाल माता की उनके जैसे हजारों होनहार सपूत को खो देने के बाद । न जाने साधु के समान डा. लक्ष्मी नारायण झा को कौन कौन सी मुसीबतों से गुजरना पडा होगा ?

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