चीन के साथ नई संधि के बाद नेपाल में तिब्बतियाें का रहना मुश्किल

किसी चीनी राष्ट्रपति की 23 साल बाद नेपाल की यात्रा होगी, इससे पहले 1996 में झियांग झेमिन ने नेपाल की यात्रा की थी। वहीं 2012 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ नेपाल गए थे।
06 जुलाई को तिब्बती धर्म गुरू और 14वें दलाई लामा तेनजिंग ग्यात्सो का 84वां जन्मदिन पूरी दुनिया में मनाया गया, लेकिन नेपाल ने यहाँ रह रहे तिब्बती निर्वासितों को उनका जन्मदिन नहीं मनाने का आदेश जारी कर दिया। नेपाल पर चीन का प्रभाव किस कदर बढ़ रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। नेपाल किसी भी हालत में चीन को नाराज नहीं करना चाहता है, वह भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पहले नेपाल दौरे से ठीक पहले। चीन नेपाल के साथ ऐसी संधि करने जा रहा है, जिसके बाद वहां तिब्बितयों का रहना मुश्किल हो जाएगा।
अक्टूबर के मध्य में जिनपिंग का दौरा
नेपाल में तकरीबन 20 हजार निर्वासित तिब्बती शरणार्थी रहते हैं और लगातार चीन के खिलाफ काठमांडू में प्रदर्शन करते रहते हैं। वहीं अक्टूबर के मध्य में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का पहला नेपाल दौरा है। हालांकि इससे पहले जिनपिंग दो दिवसीय भारत की यात्रा पर रहेंगे, जहां केरल के मल्लापुरम में प्रधानमंत्री मोदी और जिनपिंग के बीच द्वपक्षीय संबंधों पर चर्चा होगी। जिसके बाद चीनी राष्ट्रपति नेपाल के लिए रवाना हो जाएंगे। किसी चीनी राष्ट्रपति की 23 साल बाद नेपाल की यात्रा होगी, इससे पहले 1996 में झियांग झेमिन ने नेपाल की यात्रा की थी। वहीं 2012 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ नेपाल गए थे।
चीन विरोधियों के खिलाफ समझौता
वहीं चीनी राष्ट्रपति के दौरे से ठीक पहले नेपाल ने चीन के साथ एक समझौता करने वाला है, जिसके ड्रॉफ्ट के मुताबिक चीन के कब्जे वाले तिब्बत में अपराध करके नेपाल भागने वाले तिब्बती को वापस चीन को सौंपा जाएगा। चीनी रा।ष्ट्रपति के दौरे के दौरान इस पर दस्तखत हो सकते हैं। माना जा रहा है कि यह समझौता खासकर उन तिब्बतियों को ध्यान में रख कर किया गया है, जो नेपाल में ‘चीन विरोधी’ गतिविधियों में शामिल रहते हैं।
छह तिब्बती चीन को सौंपे
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि नेपाल अपने यहा रह रहे निर्वासित तिब्बतियों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर रहा है। सितंबर महीने में ही नेपाल ने अपने यहां शरण मांगने वाले छह तिब्बतियों को चीन के हवाले किया था। ये लोग हिमालय पार करके नेपाल पहुंच गए थे। नेपाल पुलिस ने इन्हें पकड़ कर सिमिकोट में चीनी पुलिस को सौंप दिया। वहीं इस दौरान स्थानीय नागरिकों को नेपाल पुलिस ने यह घटना के बारे में किसी नहीं बताने की चेतावनी भी दी।
नेपाल वन चाइना पॉलिसी का समर्थक
विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल असल की चीन की वन-चाइऩा नीति का समर्थन करता है। इस नीति के तहत बीजिंग अपने मजबूत संबंधों वाले देशों से उम्मीद करता है कि उनके साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए वे देश तिब्बत या ताइवान समाज की गतिविधियों को अपने यहां जगह नहीं देंगे। चीन की इस नीति के तहत भाषाई और सांस्कृतिक समानता वाले तिब्बत और ताईवान को अपना हिस्सा मानता है। वन चाइना पॉलिसी का एक मतलब ये भी है कि दुनिया के जो देश पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ कूटनीतिक रिश्ते चाहते हैं, उन्हें रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) से सारे आधिकारिक रिश्ते तोड़ने होंगे।
चीन देता है पैसे
नेपाल पर इससे पहले चीन के खिलाफ तिब्बतियों के विरोध प्रदर्शन पर भी एतराज जता चुका है। पिछले साल विकीलीक्स की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें चीन के नेपाल में तिब्बतियों के प्रदर्शन को रोकने के लिए पैसे देने की बात सामने आई थी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि चीन सरकार तिब्बतियों को गिरफ्तार कर उन्हें सौपने के बदले नेपाल को पैसे देती है। वहीं चीन के दबाव में नेपाल निर्वासित तिब्बतियों पर शिकंजा कस रहा है। यहां तक कि बीजिंग ने काठमांडू से नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए कहा है, ताकि तिब्बती भाग कर नेपाल में प्रवेश न कर सकें।