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शब्द नहीं है , सार नहीं है , माँ के बिन संसार नहीं है : रीमा मिश्रा”नव्या”

पुलकित उन सा प्राण नहीं है, मांँ सा कोई भगवान नहीं है

रीमा मिश्रा”नव्या” ।कहते हैं माँ से बड़ा कोई ओहदा नहीं होता और शायद वाकई में न हो, क्योंकि निस्वार्थ अपने बच्चे से प्रेम करने वाली एक माँ ही तो होती है।
माँ” एक एहसास, असंख्य भावनाओं का पुंज है,
अंतःकरण के आँगन में यह बरबस छलक है पड़ता
माँ के स्नेहिल स्मरण से प्राणों में पुलक आ जाती है
माँ के प्यार का जीवनजल मुरझाए प्राणों को जीवंत कर देता है।
कहते है न की प्यार अँधा होता है। वाकई में अँधा होता है, क्योकि माँ अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को बिना देखे ही प्यार करने लगती है। मदर्स डे एक ऐसा ही अवसर है जब हर बच्चा अपनी मम्मी को खुश करने की प्लानिंग कर रहा होगा। लेकिन माँ तो सारी उम्र हमें प्यार करती है। हमारे हर दिन को खास बनाती है तो क्यों उनके लिए कोई एक ही दिन हो, सारे दिन क्यों नहीं…???
क्यों हम सिर्फ एक दिन उनको स्पेशल महसूस या एक दिन क्यों सोचे की हम उन्हें कोई दुख न पंहुचाए, सलीके से बात करे। आखिर सिर्फ एक दिन ही क्यों, क्यों हमारे अंदर अब वो बचपन वाला डर नहीं रहा की माँ के एक इशारे पर हम चुप हो जाए उनसे बहस न करे…???
दोस्तों माँ एक अनमोल रिश्ता है। जिनके पास ये रिश्ता कायम है उन्हें शायद सही तरह से इस रिश्ते की एहमियत मालूम न हो। लेकिन जिनके सर पर उनकी माँ का साया नहीं है ज़रा उनके बारे में सोचो मदर्स डे के दिन वो कैसा महसूस करते होंगे…???
जब चोट लगती थी तो माँ की हल्की सी फूंक से ही सब ठीक हो जाता था। हम कैसे भी दिखते थे लेकिन माँ को हम दुनिया के सबसे खुबसूरत बच्चें ही नज़र आते थे। भूख हो न हो हमे ज़बरदस्ती खाना खिलाया करती थी। कभी नाराज़ हो तो झट से मना लिया करती थी। कहीं जाने की इजाजत न मिले तो सबसे लड़ झगड़ के हमे खुश करती थी। खुद भूखी रहती थी पहले हमे खिलाया करती थी।
अगर माँ एक गृहणी के साथ साथ बाहर काम करती तो भी शाम को थकी हारी हमारी सेवा में जुट जाती थी। इतना कुछ करने वाली माँ को जब कोई औलाद सहारा नहीं देती तो जरा सोचिये उस माँ पर क्या गुजरती होगी…???
9 महीने का दर्द और तकलीफ झेल कर हमें इस दुनिया में लाने वाली कभी अपने लिए नहीं सोचती हर वक्त इसी परेशानी में रहती है की कैसे मैं अपने बच्चे को खुश रखूँ।
एक शिशु के पैदा होने के साथ एक माँ का भी जन्म होता है। अपने वक्त में वो लड़की चाहे जैसी भी हो लापरवाह, जिद्दी, आलसी, गुस्सैल लेकिन जब वो एक माँ बन जाती है तो वो हर चीज़ में एडजस्टमेंट करना सीख जाती है। धैर्य रखना सीख जाती है।

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सोचो !जरा कितना मजबूत ये रिश्ता होगा…???
ऐसी आदते जो किसी की डांट मार से न सुधरती हो और सिर्फ माँ बन जाने से ये सारी आदते धीरे धीरे कम होने लगे तो कितना गज़ब का ये रिश्ता होगा।
दोस्तों सिर्फ इतना ही कहना चाहती हूँ माँ को कभी मत रुलाना। बचपन में जब हम रोते थे तो हमारी माँ भी रो जाया करती थी और आज भी ऐसा ही होता है। जो माँ है तुम्हारे पास वो बेहद नायाब है। इससे बेहतरीन तोहफा ईश्वर की तरफ से और कुछ नहीं हो सकता। माँ की एक दुआ आपकी जिंदगी बना सकती है…।
“दुनिया है तेज़ धूप, पर वो तो बस छाँव होती हैं , स्नेह से सजी, ममता से भरी, माँ तो बस माँ होती हैं”

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माँ के लिए चंद पंक्तियां—
“कर्तव्यों का बोझ नही, कर्तव्यों का बोध है जिसको,वो माँ है..
संघर्षो में रोष नही, संघर्षो में जोश है जिसको, वो माँ है..
थकावट का एहसास नही, कामों में उल्लास है जिसको, वो माँ है..
दुख बतलाने की भाषा नही, बच्चे की खुशी की अभिलाषा है, वो माँ है..।”

अब माँ के लिए क्या लिखूं , माँ ने तो खुद मुझे लिखा है।
जब हम बोलना भी नहीं जानते थे। तब भी माँ हमारी बातों को समझ जाती थी ।
फिर भी कभी- कभी हम कहते है , माँ आप छोडो आप नहीं समझोगे।
इस संसार में सभी रिश्तों में थोडा – बहुत स्वार्थ जरूर होता है परन्तु याद रहे ,माँ का प्यार निस्वार्थ होता है ।
कोई भी माँ, अपने बच्चे के जन्म के बाद रोने पर पहली और आखिरी बार खुश होती है । उसके बाद अपने बच्चों को हमेशा खुश देखना चाहिती है ।
माँ जैसा वास्तविकता में कोई नहीं…।

शब्द नहीं है , सार नहीं है ,
माँ के बिन संसार नहीं है।
माँ ही रब है , मांँ ही सब है,
मांँ की दुआ का पार नहीं है ।।

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रीमा मिश्रा “नव्या”
आसनसोल(पश्चिम बंगाल)

 

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