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नक्कली भावनाओं के नारों पर मधेशी जीना छोड दें : कैलाश महतो

कैलाश महतो, पराशी | कमजोर आदमी कायरता, चाप्लुसी और ज्यादातर लालच के कारण और शासक लोग विद्रोहियों के विद्रोह से बचने या उसे कुछ समयों के लिए उलझाने के लिए षड्यन्त्र की भाषा प्रयोग करतें है । जाहिर सी बात है कि मधेश ने अकल्पनीय रुप में भयंकर तीन मधेश विद्रोह किया है । नेपाली राज्य आज भी उन आन्दोलन के परिणामों को भूले नहीं भूल पा रहा है । कहीं न कहीं आज भी राज्य सशंकित है कि मधेश न जाने कब अपना भयंकर रुप को धारण कर लें ।

गत जेष्ठ माह में हमारे आवास पर हमसे वर्षों बाद मिलने आये तत्कालिन नेकपा और अभी के नेकपा एमाले के स्थायी समिति सदस्य मेरे पूराने एक मित्र के अनुसार मधेश में बास करने बालों में ८०–८५ प्रतिशत गैर मधेशी लोग मधेश छोडकर वापस पहाड के ओर जाने के सामूहिक÷सामुदायिक निर्णय से यह आंकलन करना बेहद आसान होता है कि मधेश आन्दोलन से गैर मधेशी कितने त्रसित हो जाते हैं । उनके अनुसार तत्कालिन स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन के संयोजक डा. सीके राउत राज्य के साथ अगर ११ बूंदे सहमति ६ महीने या सालभर नहीं किये होते तो एक डेढ साल के अन्दर ही मधेश के चलता फिरता पहाडी लोग मधेश छोड देते ।

उनके तर्क को मानें तो वे अपने साथियों के साथ पूरब से पश्चिम के सारे मधेश के जिलों का भ्रमण कर यह जानकर बेहद हैरान थे कि स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन और डा. राउत का नाम मधेश के हर जुवान पर मौजूद हो गया था । मधेश किसी भी समय भडकने की अवस्था थी जो उनके समाज के लिए नासुर सा बना हुआ था । वे त्रास में थे । उनके अनुसार उन्होंने अपने प्रधानमन्त्री से कई बार यह कह चुके थे कि बिना कोई भौतिक दमन स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन से वे बात करें । वे प्रधानमन्त्री को मधेश छोड जाने का अल्टिमेटम समेत दे चुके थे । वे खुश हैं कि उनके प्रधानमन्त्री ने उनके बातों को गंभीरता से सुना, सीके जी से बात की और ११ बूंदे सहमति हुआ ।

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आजकल कुछ दिनों से सामाजिक फेसबुक सञ्जाल पर छाये “पहाडी मधेशी भाइ भाइ”, “धोती सीडीओ”, “अमेरिका के लिए अमेरिकी राजदूत के अनुसार नेपाली खस ब्राम्हण भारत से भगकर नेपाल जाने की स्वीकारोक्ति” और “रेशम चौधरी रिहाई व नयाँ सरकार निर्माण” जैसे विषय वस्तुओं पर किसी भी सचेत मधेशी को गंभीर होना पडेगा ।

उपर उल्लेखित सारे बातों से यह प्रमाणित होता है कि मौजूदा नेपाली शासन मधेशियों के लिए किसी भी मायने में उपयुक्त और समानतामूलक व समतामूलक नहीं हो सकता । पहली बात तो यह पता लगाना होगा कि पहाडी मधेशी भाइ भाइ कब, कैसे और कहाँ पर है । जैसा कि हमने लिखा कि “पहाडी मधेशी भाइ भाइ” है का नारा देने बाला अगर कोई मधेशी है तो यह समझना आसान है कि वह या तो कायर है, या हारा हुआ है, या फिर वह पहाडियों का चाप्लुस है जो उनके सामने “पहाडी मधेशी भाइ भाइ” होने का दलिल देता है, या वह यह स्वीकार करता है कि मधेशी नेपाली शासकों के अत्याचार को खत्म नहीं कर सकता, या तो वह अपने कुछ व्यक्तिगत लाभ के कारण शासकों की चाप्लुसी करता है । वहीं अगर कोई पहाडी वही नारा लगाता है तो यह समझना गलत है कि वह मधेशी को प्रेम करता है, या उसे वह नेपाली मानता है । मधेशी को वह भाइ भी कह दें तो यह हमें मानना होगा कि मधेशियों को वह ठीक उसी तरह से भाइ कहता है जैसे भारत नेपाल को अपना छोटा भाइ मानता है ।

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शासक और उसके नश्ल के लोग मधेशियों को कितना अच्छा और सच्चा भाइ मानते हैं, उसका ताजा और जीता जागता प्रमाण है कंचनपुर जिले के सीडीओ रहे राज कुमार महतो को “धोती सीडीओ” कहना । अभी सर्वाधिक चर्चे का विषय रहे जसपा नेता महन्थ ठाकुर जी को सरकार प्रमुख बनाने और बिना कसूर जेल जीवन बिता रहे माननीय रेशम चौधरी को हिरासतमुक्त करने की । जसपा अपने को भले ही वर्तमान राजनीति का निर्णायक शक्ति मानते हों, मगर देश की राजनीति का बादशाह मौजूदा हालात में वह कभी नहीं हो सकता । वह केवल गुलाम ही रहेगा । उसका केवल प्रयोग ही होगा, प्रयोग चाहे जो भी कर लें ।

३ जुलाई, २०१९ के फेसबुक सामाजिक सञ्जाल समाचार को आधार मानें तो अमेरिका के लिए राजदूत रहे कृष्ण कुमार सुवेदी के अनुसार नेपाल में शासन कर रहे खस ब्राम्हण सारे भारतीय रहे हैं । मुगलों के आक्रमणों से हारकर भारत छोडकर वर्तमान नेपाल के पहाडियों में जा छुपने का इतिहास है । तब वे मधेश के रास्ते संभवतः पहाडियों में घुसे भी नहीं होंगे । वे पश्चिमी पहाडी इलाकों के रास्ते ही संभवतः नेपाल के पहाडियों में छूपने की तरकीब निकाले होंगे जिसके कारण मधेश के बारे में तत्कालिन समय में उन्हें ज्यादा या कुछ पता भी नहीं रहा होगा ।

अब सवाल यह उठता है कि मुसलमानों के आक्रमणों से बेहाल खस ब्राम्हण लोग मुसलमानों से वैरभाव रखने से ज्यादा अपने पूर्व भारत देश से इतने क्यों चीढते हैं । मध्य काल में भारत पर आक्रमण करने बाले मुगलों से भी हजारों वर्ष परापूर्व काल से मधेश में बास करने बाले मधेशियों को नेपाली शासक भारतीय क्यों कहते हैं ? कहीं वे मधेशियों को भारतीय कहकर मधेशियों के साथ ही मधेश समेत को भारत का ही हिस्सा तो नहीं बताना चाह रहे हैं ?

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सवाल जो भी हो । नेपाली खस ब्राम्हण शासकों का मानसिकता जो भी हो, मधेशियों का यह मानना कि “पहाडी मधेशी भाइ भाइ” हैं तो यह ठीक उसी प्रकार का सत्य बोध है जिस प्रकार से दुध और निम्बू रस का मिलन होता है । जैसे एक डाल पर काग और कोयल घर नहीं बना सकते । बना भी लें तो चैन से नहीं रह सकते । ठीक उसी प्रकार पहाडी और मधेशी भले ही साथ रहने की असहज कोशिशें कर लें, वे आराम से नहीं रह सकते । पहाडी कौवे मधेशी कोयल को आराम से नहीं रहने दे सकते । वे कभी उसके घर तोडेंगे, कभी उसके पंख नोचेंगे तो कभी उसके रास्ते रोकेंगे । यही पहाडी और मधेशी का विज्ञान है । यही पहाडियों द्वारा मधेशियों पर शासन करने का इमान है और शासित बनकर जीने का मधेशियों का मनोविज्ञान है । नक्कली भावनाओं के नारों पर मधेशी जीना छोड दें ।

इसके समाधान के लिए मधेश को ठोस, कडा और निर्दयी निर्णय लेना ही होगा । एक काम चलाउ उपाय पूर्ण समानुपातिक निर्वाचन प्रणाली, समग्र मधेश एक स्वायत्त प्रदेश और मधेश में अनियन्त्रित पहाडी बसाई सराई पर प्रतिबन्ध का कानुनी प्रावधान हो सकता है । बाँकी पहलूओं पर भी मधेश स्वतन्त्र और शान्त ढंग से विचार कर सकता है ।

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