Thu. Mar 28th, 2024
himalini-sahitya

कितावें आपकी, नजर हमारी

पुस्तक ः रिमा
विधाः आख्यान -कहानी संग्रह)
कथाकार ः कविता पौडेलKabita-Paudel
प्रकाशक ः प्रश्रति प्रष्ठिान नेपाल, रुपन्देही
सम्पादकः डा. कपिलदेव लामिछाने
मूल्यः रु. १३१।-
पृष्ठ ः ११७
मुद्रकः आइडियल प्रिर्ंर्टस, बुटवल
कविता पौडेल नेपाली साहित्य में एक स्थापित नाम है। मैंने सबसे पहले इनकी आत्मकथा ‘काँढेघारीको यात्रा’ पढÞी थी। जिसने मुझे अभिभूत किया, हृदयस्पर्शिता के मामले में।
उक्त आत्मकथा पढÞते हुए लगता है- मैं सामने कोई चलचित्र देख रहा हूँ। पाठक को बाँधे रखने की गजब की शैली इनकी खाशियत हैं। ‘बालचीत्कार’, ‘हीरा’ और ‘आमाहरु’ इनके उपन्यासों को पाठकों ने सराहा है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘रिमा सत्रह कहानियों का संग्रह है। नेपाली सामाजिक पृष्ठभूमि में रचित इन कहानियों को पढÞने पर लेखिका को नारीवादी आख्यानकार कह सकते हैं। इन कहानियों के जरिए पाठक नेपाली जनजीवन को नजदीक से पहचान सकता है। प्रायः हर कहानी नारी पात्र को केन्द्रविन्दु में रखते हुए घूमती है। प्रगतिशील दृष्टिकोण को कथाकार ने मजबूती से आत्मसात् करते हुए प्रस्तुति का माध्यम बनाया है। ग्रामीण समाज के जातिभेद, छुवाछूत, आर्थिक विपन्नता, झारफूक, धामी-डायन, तंत्रमंत्र, अंधविश्वास, अशिक्षा, जालसाजी,-धर्ूतता, ठगी, सामन्तों द्वारा शोषण, अज्ञान का अन्धकार आदि सभी पक्ष कहानियों में झाँकते नजर आएंगे।
आख्यानकार को हमारी शुभकामनाः-
आख्यानों की इस अमर्राई में,
कविता-कोकिल कूजती रहे !
विकृतियों को निर्मूल करने,
लेखनी सदैव कूदती रहे !!

==============================

पुस्तक ः बाबासँग का सम्झनाहरु -पिता के संग गुजरे पल)
विधा ः संस्मरणात्मक निबंध संग्रह
रचनाकार एवं प्रकाशक ः रम्भा पौडेल -ज्ञवाली)Rambha-Paudel
पृष्ठ ः ७२
मूल्य रु. १००।-
मुद्रक ः सीएनएन प्रेस, काठमांडू
नवोदित लेखिका रम्भा पौडेल -ज्ञवाली) की यह प्रथम प्रकाशित कृति है। अपने स्वर्गीय पिता लेखनाथ ज्ञवाली की सुमधुर यादों की लडÞी को निबंध की माला में पीरो कर लेखिका ने नाम दिया है- बाबासँगका सम्झनाहरु अर्थात् पिता की यादें।
सामान्यतया आज की नई पीढÞी अपने जन्मदाता माता-पिता को बडÞी आसानी से भुला देती है। ऐसे बेगैरत बेशरम माहौल में कोई बेटी अपने स्वर्गीय पिता की याद में साहित्य-सृजना करती है तो स्वयं में यह एक प्रशंसनीय बात है। भगवान करें, आजके बच्चे नवोदित निबंधकार के इस सत्प्रयास से कुछ सीखें।
प्रस्तुत संस्मरणात्मक निबन्धों के माध्यम से स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त शिक्षिका रम्भा पौडेल -ज्ञवाली) ने खुद को योग्य पिता की योग्य पुत्री के रुप में स्थापित किया है। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति और समाजसेवा में सक्रिय लेखिका के पिता लेखनाथ ज्ञवाली प्रगतिशील साहित्यकार और पत्रकार थे। उनके बारे में लिखित यह संस्मरण बहुत ही सरल, मर्मस्पर्शी और यथार्थपरक है। बेटी के द्वारा अपने पिता का मूल्यांकन भला गलत कैसे हो सकता है ! किसी खास पार्टर्ीीे अर्न्तर्गत राजनीति में सक्रिय रहते हुए भी वे अन्य दलों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखते थे- ऐेसा बेटी का मानना है।
बहुत ही रोचक शैली में प्रस्तुत पुस्तक में बेटी द्वारा अपने पिता की विभिन्न अवस्थाओं का चित्रण किया गया है। अपने पिता के साथ बेटी की किसी समय में वैचारिक मत भिन्नता भी थी- इस तथ्य को भी लेखिका नर्ेर् इमान्दारी के साथ स्वीकार किया है। जगह-जगह पिता की कमजोरियों को भी इंगित किया गया है। इस लेखकीयर् इमानदारी के लिए नवोदित लेखिका को साधुवाद तो देना ही होगा।
यहां एक और बात गौरतलब है। अपने पिता के उपचार क्रम में रम्भाजी ने राजधानी के अस्पताल एवं चिकित्सकों के बारे में कुछ कडÞवे सच का जिक्र किया है। सभी सम्बन्धित पक्षों को चिकित्सालयों में आवश्यक सुधार के लिए आगे आने की आवश्यकता महसूस होती है।
पिता के सदगुणों से सीख लेकर उन गुणों को अपनाने का प्रण करती हैं, लेखिका। बहुत सी जगहों में कारुणिक दृश्यों का शब्दचित्र पाठकों के दिलो-दिमाग में हलचल पैदा करता है। स्वाभाविक रुप से आंखें नम हो आती हैं। उदीयमान लेखिका के ये तेवर यकीनन कबिले तरीफ हैं।
शुभेच्छाः
साहित्य में आपका तशरीफ लाना, बडÞी खुशी की बात है।
दूर ही सही रोशनी तो नजर आई, बडÞी अंधेरी रात है।।
हाँ, किताब का गेटअप कलात्मक और आकर्ष हैै। पारिवारिक रंगीन तस्वीरों ने आकर्षा को और बढÞाया है। मगर किताब में अशुद्धियों को हटाने में कुछ लापरवाही बरती गई है।
=====================================================

पुस्तक ः मोफसलको मधुरिमा
विधाः नियात्रा संग्रह -यात्रा विवरण)Basudev-guragae
लेखक ः वासुदेव गुरागाईं
पृष्ठ ः १९२
मुद्रक ः हाइडल प्रेस प्रा.लि. काठमांडू
मूल्य ः रु. ३००।-
नेपाली साहित्य में ख्याति प्राप्त हास्यव्यंग्य लेखक श्री वासुदेव गुरागाई की नवीनतम कृति यात्रा संस्मरण विधा अर्न्तर्गत ‘मोफसलको मधुरिमा’ नाम से प्रकाशित हर्ुइ है। सुधी पाठकों ने इसे सराहा है। इससे पहले इनकी ‘स्वागत’, ‘नेता चिरंजीवी भव’, ‘थोते हाँसो’, ‘बास उठेका चराहरु’ नामक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। ये महोदय मेरी ही विरादरी के हैं। अर्थात् हास्यव्यंग्य विधा ही इनकी मूल लेखकीय प्रवृत्ति मानी जाती है।
प्रस्तुत पुस्तक पढÞने पर पाठक को लगेगा कि वह लेखक के साथ नेपाल के दर्ुगम सुन्दर-सुन्दर जगहों में खुद विचरण कर रहा है। प्रकृति की मधुरिमा से नेपाल लबालव भरा हुआ है। सिर्फहमारे पास इन्हें देखने-परखने की पारखी नजर की जरूरत है।
इस किताब में अठरह यात्रा-संस्मरण संग्रहित हैं। सुगम जगहों में तो कोई भी आसानी से जा सकता है, मगर हमारे लेखक दोस्त ने दर्ुगम विकट सुदूर जगहों में प्राप्त अनुभवों को रोचक शैली मेर्ंर् इमानदारी के साथ लिपिवद्ध किया है। निश्चय ही लेखक साधुवाद के पात्र हैं।
वासुदेवजी वर्षों से सरकार और साहित्य दोनों की एक साथ सेवा कर रहे हैं। सरकारी सेवा के क्रम में स्थानान्तरण -ट्रान्सफर) एक सहज प्रक्रिया है, जिसे टाला नहीं जा सकता। विद्वान मित्र ने इस अनिवार्य परिस्थिति का भरपूर सदुपयोग करते हुए व्यंग्य से उछलकर यात्रा साहित्य में भी कलम तोडÞ कर रख दी हैं। वरिष्ठ लेखक की प्रौढ शैली इस पुस्तक में मिलेगी, और हर निबन्ध में हास्यव्यंग्य का जायकेदार तडÞका भी मिलेगा।
वैसे मुझे यात्रा साहित्य के बारे में कोई विशेष ज्ञान तो है नहीं, मैैंने खुद भी इस साहित्यिक विधा में शायद एक दो बार ही कलम चलाई है। फिर भी मेरा मानना यह है कि यात्रा साहित्य के लेखक के पास दो खूबी होना जरूरी है। पहली तो सूक्ष्म नजर, दूसरी लेखकीयर् इमान्दारी। यिन दोनों चीजों को इस पुस्तक में लेखक ने कभी नहीं छोडÞा है।
यात्रा-साहित्य की पहली पुस्तक ही इतनी शानदार-मजेदार लिखना यह लेखक की बहुत बडÞी खूबी है। उन्हें दिली मुबारकवादः
ऐ यार तेरी कलम ऐसे ही चलती रहे !
दरिया में जैसे लहरें, मचलती रहें !!
इस पुस्तक में कही कविहृदय, कहीं व्यंग्यकार तो कहीं पर गहरी पैनी नजरवाला यात्री मिल जाएगा। आप जिससे मिलना चाहें मिल लीजिए।



About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: