सृष्टि आप की दृष्टि हमारी
पुस्तक ः देश-दशा
लेखक ः ऋषिशेष
प्रकाशकः सहयात्रा प्रकाशन
पृष्ठ ः ६०
घण्टों में जो बात पूरी नहीं होती है कवि उन्हे कुछ पंक्तियों में पूरा कर देता है । कवि ऋषिशेष जी ने प्रवास में रहकर दो पुस्तकों की रचना की है, कविता संग्रह ‘देश-दशा’ तथा गजल संग्रह ‘मीठो भूल’ । उन्होंने कविता के माध्यम से सन्देश दिया है कि अपना देश छोटा हो या बडÞा बहुत प्यारा होता है । प्रवास में रहकर मातृभूमि की बहुत ही याद आती है । वे लिखते है ‘ती खोला, ती नाला, ती पाखा-पधेंरी, ती हरियाली डाँडा, ती रमणीय दृश्य । छाडी मातृभूमि आज मरुभूमिमा, दर्ुइ पैसा हुँदैमा के बन्ला भविष्य ।। उन्हांेने प्रवास में रहकर भी देश की चिन्ता व्यक्त की है । नेपाल वन जंगल, झरना, कृषि तथा पहाडÞ ही पहाडÞ का देश हैं । यहाँ पर राजनीतिक दल अगर्रर् इमानदार होते तो र्स्वर्ग से सुन्दर अपना नेपाल होता । कवि ऋषिशेष जी बचपन की बात को स्मरण कर लिखते है ‘सानो छँदा हामीले पढ्थ्यो, हरियो वन नेपालको धन, ठूलो हुँदा हर्ेनु पर्यो, उजाड वन पहाड खन ।।’ उन्होने यह भी लिखा है कि ‘पहिलो छिमेकीले भन्ने गर्दे, र्सर्ूय अस्त नेपाल मस्त, अचेल षड्यन्त्र रच्दै गर्यो, र्सर्ूय उदय नेपाल विलय ।।’
देश-दशा कविता संग्रह ६० पृष्ठों का है और उनमे ३६ कविता संग्रहित है । अधिकांश कविता में देश की चिन्ता व्यक्त हर्ुइ है । कवि ऋषिशेष जी ने अपने बचपन के अध्ययन अध्यापन से लेकर प्रवास के दुःख पीडÞा का वर्ण्र्ााकिया है । यहाँ के वीर पुरुष, हिमाल, पहाडÞ, मधेश तर्राई के रहन-सहन, वेष भूषा और नेता के चरित्र का वर्ण्र्ााकविता द्वारा दर्शाने की कोशिश की गई है । वास्तव में यह कविता संग्रह अपने आप में बहुत कुछ सन्देश देता है । खासकर युवाओं को देश के विकास के लिए ललकारने का प्रयास किया गया है । वह लिखते हैं ‘देशको माटो विकासको बाटो, नलडौं आपसमा लडीबडी, हाम्रो देशको भेष अति राम्रो, नगरौं अरुको देखासिकी ।।’ ‘मिलेर हामी भएरसाक्षर भविष्य आफ्नो सपार्नेछौं, राम रहीम, जनक, बुद्ध, सबैलाई पुनः उतार्नेछौं ।’
साहित्य में कथा, विचार, लेख, रचना से ज्यादा कठिन कविता को माना गया है । वैसे भी कहते हैं जहाँ का साहित्य प्रबल होता है वह देश, समाज प्रबुद्ध एवं विकास की ओर हमेशा बढÞता रहता है । एक उक्ति है कि अगर किसी देश को कमजोर करना हो तो सबसे पहले उस देश के साहित्य और भाषा को खत्म कर दो । कवि ने अन्तिम में सबसे आग्रह किया है कि ‘लेखिरहेछु सम्पर्ूण्ा रचना, हे दुनियाँ पढी रमाईदिनू, तिमी पनि अर्समर्थ भईदिए, चितासँगै मेरो जलाई दिनू ।
प्रस्तुतिः कैलाश दास